ओ३म्
-वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में समापन दिवस कार्यक्रम-
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वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का दिनांक 11-5-2022 से चल रहा ग्रीष्मोत्सव दिनांक 15-5-2022 को सोल्लास सम्पन्न हुआ। प्रातः 4.00 बजे से योग, आसन, प्राणायाम का प्रशिक्षण एवं अभ्यास कराया जाता रहा। पांचों दिन प्रातः 6.30 बजे से वृहद आंशिक अथर्ववेद पारायण यज्ञ आरम्भ किया गया। सायं 3.30 बजे से भी यज्ञ किया जाता रहा। रविवार 15-5-2022 को यज्ञ की पूर्णाहुति सम्पन्न हुई। यज्ञ के ब्रम्हा स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी थे। धर्माचार्य पं. सूरतराम शर्मा जी ने यज्ञ की विधि का संचालन एवं मार्गदर्शन किया। रविवार को पूर्णाहुति के दिन मंच पर डा. वागीश आर्य मुम्बई, पं. उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ आगरा, साध्वी प्रज्ञा जी, केन्द्रीय आर्य युवा परिषद के महामंत्री श्री अनिल आर्य जी दिल्ली, पं. शैलेशमुनि सत्यार्थी जी हरिद्वार, पं. कुलदीप आर्य भजनोपदेशक, श्री रुवेल सिंह आर्य भजनोपदेक, पं. रमेश चन्द्र स्नेही भजनोपदेशक, यज्ञ में अथर्ववेद के मन्त्रों का पाठ करने वाले गुरुकुल पौंधा देहरादून के दो ब्रह्मचारी विद्यमान थे। आश्रम के प्रधान एवं मंत्री जी भी कार्यक्रम में उपस्थित थे। यज्ञ में बड़ी संख्या में ऋषिभक्तों ने पूर्ण श्रद्धापूर्वक भाग लिया।
यज्ञ की पूर्णाहुति होने पर स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने समर्पण प्रार्थना कराई। उन्होंने कहा कि हे करुणानिधान, दयानिधान, कृपासिन्धु! हमारा किया गया यह यज्ञ आपको समर्पित है। इसमें हमारा अपना कुछ नहीं है। हमने इस यज्ञ को आपके द्वारा बनाये और प्रदान किये पदार्थों से ही किया है। इसके लिए हम आपका आभार व्यक्त करते और धन्यवाद करते हैं। हे प्रभु! आप उदार हैं, हम सबको भी उदार बनायें। आपने इस विशाल सृष्टि को बनाया है। आपकी कृपा से ही हमें अपने जीवन को चलाने व सुखी करने के सभी पदार्थ प्राप्त होते हैं। हम आपका पुनः पुनः वन्दन एवं धन्यवाद करते हैं। हे जगदीश्वर! आपने हमें वेद एवं ऋषियों के इस देश आर्यावर्त वा भारत में जन्म दिया है। यह देश वेद, यज्ञ एवं योग का देश है। हम आपका बार बार वन्दन करते हैं। स्वामी जी ने प्रार्थना करते हुए धर्म व देश के पतन सहित धर्म एवं संस्कृति के पतन का चित्रण किया। स्वामी जी ने ऋषि दयनन्द जी का जन्म तथा उन दिनों देश की विपरीत विषम परिस्थितियों का भी उल्लेख किया। स्वामी जी ने कहा कि वेद के ज्ञान तथा वैदिक शिक्षाओं को व्यवहार में लाकर ही हमारे सभी दुःख दूर हो सकते हैं। प्रभु से उन्होंने प्रार्थना की कि हे प्रभु हमारे देश में पुनः पुनः बड़ी संख्या में ऋषि आत्मायें जन्म लें। देश में पुनः वैदिक स्वर्णिम युग लौट आये। सब प्रजा सुख से रहे। रोगियों व दुखियों के कष्ट दूर हों। देश सभी क्षेत्रों में उन्नति करे। सबको हर प्रकार से सुख व शान्ति मिले। ओ३म् शान्तिः शान्तिः शान्तिः।
इसके बाद यज्ञ प्रार्थना हुई जिसे आर्य भजनोपदेशक श्री कुलदीप आर्य जी ने बहुत ही मधुर स्वर तथा अनूठे अन्दाज में प्रस्तुत की जिससे सभी भक्तजन भाव विभोर हो गये। यज्ञ प्रार्थना के साथ ही वैदिक साधन आश्रम के यशस्वी प्रधान एवं मन्त्री श्री विजय आर्य जी, श्री प्रेम प्रकाश शर्मा, श्री योगराज जी, श्री अशोक वर्मा जी आदि ने मिलकर मंचस्थ सभी विद्वानों का शाल, मोतियों की माला व दक्षिणा देकर सम्मान तथा सत्कार किया। इस प्रातःकालजीन यज्ञ-सत्र के समापन से पूर्व आश्रम के प्रधान श्री विजय गोयल जी का सम्बोधन हुआ जिसमें उन्होंने मुख्यतः सभी विद्वानों, अतिथियों एवं ऋषिभक्तों का आश्रम के उत्सव में पधारने, पांच दिन यहां रहकर सत्संग का लाभ उठाने तथा असुविधाओं में रहकर भी शिकायत न करने के लिये सराहना की और धन्यवाद किया। प्रधान जी ने वैदिक साधन आश्रम का महत्व भी बताया और सबका आभार व्यक्त किया। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी की प्रधान जी ने सराहना की। इसके बाद का समापन कार्यक्रम आश्रम के वृहद एवं भव्य सभागार में हुआ जहां डा. वागीश आर्य जी, श्री उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ, स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती, डा. अन्नपूर्णा जी, पद्मश्री डा. बीकेएस संजय, विश्वपाल जयन्त जी, वैदिक विद्वान आचार्य आशीष दर्शनाचार्य जी, प्रेम प्रकाश शर्मा जी, श्री गोविन्द सिंह भण्डारी जी, डा. रूपकिशोर शास्त्री जी, कुलपति, गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय, हरिद्वार, श्रीमती सुखदा सोलंकी जी तथा श्रीमती इन्दुबाला आदि के सम्बोधन तथा श्री प्रवीण आर्य, दिल्ली, श्री राजकुमार भण्डारी गाजियाबाद, श्री कुलदीप आर्य भजनोपदेशक, श्री रूवेल सिंह आर्य भजनोपदेक आदि के भजन व गीत हुए।
इस कार्यक्रम में देहरादून के कवि श्री वीरेन्द्र कुमार राजपूत जी द्वारा सम्पन्न ऋग्वेद काव्यार्थ के प्रथम दशांश का लोकार्पण डा. वागीश आर्य तथा डा. रूपकिशोर शास्त्री जी आदि विद्वानों के कर-कमलों से किया गया। कार्यक्रम सोल्लास सम्पन्न हुआ। इस उत्सव में निकटवर्ती एवं दूरस्थ स्थानों से सहस्रों ऋषिभक्त पधारे। सबके लिये आवास एवं भोजन की उत्तम व्यवस्था की गई थी। आश्रम इस उत्सव को सफलतापूर्वक आयोजित कर प्रसन्नता एवं सुख की अनुभूति कर रहा है। सभी अतिथियों का आश्रम की कार्यकारिणी धन्यवाद करती है और भविष्य में भी आश्रम के कार्यक्रमों में भाग लेकर तथा आर्थिक सहयोग कर आश्रम की उन्नति में सहयोगी बनने की अपील करती है। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य