कल कराची में इस्माइलिया संप्रदाय के लगभग 50 औरत-आदमियों को मौत के घाट उतार दिया गया। बस में यात्रा कर रहे बेक़सूर लोगों को सिर्फ इसलिए मार दिया गया कि उनसे बदला निकालना था। बदला यह कि वे शिया हैं और पश्चिम एशिया में ‘इस्लामिक स्टेट’ के सुन्नियों से ईरान और इराक के शिया लोग लड़ रहे हैं। सुन्नी लड़ाकों का वहाँ बस नहीं चल रहा है तो वे पाकिस्तान में इसका बदला निकाल रहे हैं ।
पाकिस्तान में सरकार का इकबाल नहीं के बराबर है। कभी किसी चर्च को जला दिया जाता है, कभी किसी मस्जिद पर बम फेंक दिया जाता है, कभी किसी मंदिर को ढहा दिया जाता है। क्या ये सब स्थान अल्लाह के स्थान नहीं हैं? क्या इन सबकी रक्षा करना हर अच्छे मुसलमान का फ़र्ज़ नहीं है? अल्लाह के स्थानों पर हमला करना क्या काफिराना हरकत नहीं है? वह काफिराना हरकत है या नहीं लेकिन यह तो पक्का है कि वह गैर-कानूनी हरकत है। आज तक पकिस्तान की सरकार ने इस तरह के हमलावरों को कितनी सजा दी है?
सच्चाई तो यह है कि पाकिस्तान की अलग-अलग सरकारों ने जिन्ना के सपनों पर पानी फेर दिया है। उन्होंने मजहब के आधार पर भेदभाव करने को बिल्कुल गलत बताया था लेकिन उनके बाद आने वाले नेताओं ने पाकिस्तान को मजहब के नाम पर अराजकता की सराय बना दिया है। इतना ही नहीं, उन्होंने इस्लाम के नाम पर आतंकवाद की पीठ ठोकी है। पड़ौसी मुल्कों को तंग करने वाले इन्हीं आतंकवादियों ने अब पाकिस्तान के लोगों को ही मारना शुरू कर दिया है।
अब इन आतंकवादियों ने अरब आतंकवादियों से हाथ मिला लिया है। इस सांठ-गाँठ का खतरा अब सिर्फ पाकिस्तान को ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया को होगा। इस खतरे का मुकाबला सिर्फ फौज और पुलिस नहीं कर सकती। इसके लिए जरूरी है कि पाकिस्तान की फौज,नेताओं और जनता की सोच बदले।