मुसलमान बनो या कश्मीर छोड़ो
इस प्रकार कश्मीर का पुराना वैभव और सांस्कृतिक समृद्धि इस्लाम की निर्दयी तलवार और निर्मम हथौड़ा की भेंट चढ़ने लगी। जितने ही अधिक अत्याचार बढ़ते जाते थे सुल्तान सिकंदर और हमदानी उतने ही अधिक प्रसन्न होते थे। इस प्रकार कश्मीर की शांति इस्लाम की इस नई तथाकथित क्रांति के खून में लथपथ हो गई। उनके इसी दरिया से कश्मीर आज तक उबर नहीं पाया है। आज इतने पत्थर बाज और देश विरोधी लोग कश्मीर में दिखाई देते हैं वे सभी शांति के धर्म इस्लाम की इस तथाकथित खूनी क्रांति की पैदाइश हैं।
उस समय हिंदुओं के लिए अनिवार्य कर दिया गया था कि यदि उन्हें हिंदू ही बना बने रहना है तो या तो कश्मीर छोड़ना होगा या फिर इस्लाम कबूल करना होगा अन्यथा जजिया कर की यातनापूर्ण स्थिति को झेलने के लिए तैयार रहना होगा।
इस समय कश्मीर में मुस्लिम अत्याचारी खुले दरिंदों की भांति घूमते थे, जो किसी भी समृद्ध हिंदू के घर पर कभी भी आक्रमण कर उसे लूट लेते थे ।।लूट में परिवार की स्त्रियां भी होती थीं। जिन्हें अरबी भाषा में माल – ए-गनीमत कहा जाता था। जजिया देना उस समय किसी साधारण हिंदू के बस की बात नहीं थी, क्योंकि वह बहुत ही भयानक और कष्टदायक होता था। इसलिए कई लोग जजिया देने के स्थान पर मृत्यु को स्वीकार कर लेते थे या फिर इस्लाम में दीक्षित हो जाते थे।
इस समय हिंदुओं के अनेकों धर्म ग्रंथों और पुस्तकालयों को भी अग्नि की भेंट कर दिया गया। सिकंदर ने संस्कृत ग्रंथ और ज्ञान के भंडार बड़े-बड़े पुस्तकालयों को जलाकर राख कर दिया था। उनमें इतनी अधिक पुस्तकें थीं कि उनकी आग 6 महीने तक भी बुझ नहीं पाई थी। 6 महीने की बड़ी अवधि तक आग का ना बुझना ही बता देता है कि उन विश्वविद्यालयों या पुस्तकालयों में कितनी बड़ी संख्या में पुस्तकें उपलब्ध रहती होंगी और उनमें किस-किस प्रकार का अनोखा ज्ञान छिपा रहता होगा ? जिसे हमारे भारतीय ऋषि पूर्वजों ने दीर्घकाल की अपनी भक्ति और साधना के परिणाम स्वरूप संचित, संकलित और लिपिबद्ध किया था।
सैय्यदों के अत्याचार की भयंकर कहानी
उस समय हिंदू दमन और दलन के जिस चक्र को झेल रहा था उसमें रहते हुए वह त्राहिमाम कर उठा था।
श्रीवर राजतरंगिणी में लिखते हैं :- ‘सैय्यदों के अत्याचार की कहानी अति भयंकर है। वह मानवता एवं क्रूरता की सीमा पार कर गए थे। वैद्य पंडित भुवनेश्वर को सैय्यदों ने मारकर उसके चंदनलिप्त मस्तक को काटकर राजपथ पर रख दिया था। सैय्यदों ने जनता में भय उत्पन्न करने के लिए कटे सिरों को वितस्ता के तट पर कोयलों और लकड़ियों पर रख दिया।’
इस प्रकार के अत्याचारों में सैफुद्दीन ( जो पूर्व में हिंदू था ) ने ब्राह्मणों पर जजिया लगा कर कठोरता और अत्याचारों की सारी सीमाएं लांघ दी थीं। उसके बारे में राजतरंगिणी जोनराज से हमें पता चलता है कि – ‘इस कुटिल व्यक्ति ने दूज के चांद पर समारोहों और जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया। उसे ईर्ष्या थी कि निर्भीक ब्राह्मण विदेशों में जाकर अपनी जाति को बनाए रखेंगे। इसलिए उसने सड़कों पर दस्ते तैनात करवा दिए जो बिना पार पत्र के किसी को बाहर नहीं जाने देते थे। जिस प्रकार मछियारा मछलियों को तड़पाता है इस निकृष्ट जाति के व्यक्ति ने इस देश में लोगों को तड़पाया। धर्म परिवर्तन के डर से ब्राह्मण जलती आग में कूद गए। कई ब्राह्मण फांसी लगाकर मर गए । कइयों ने विष खा लिया और कई डूब कर मर गए । असंख्य ब्राह्मणों ने पर्वत से कूदकर जान दे दी। देश घृणा से भर गया । राजा के समर्थक, हजारों में से एक भी व्यक्ति को आत्महत्या करने से न रोक सके। आत्मसम्मानी ब्राह्मणों की एक बड़ी संख्या पगडंडियों द्वारा विदेशों की ओर भाग गई। क्योंकि मुख्य सड़कें बंद थीं। जिस प्रकार लोग इस धरती से विदा होते हैं उसी प्रकार ब्राह्मण विदेशों को चले गए। पिता पुत्र को पीछे छोड़ चला और पुत्र पिता को। मार्ग में आने वाले कठिन देशों खाद्य अभाव , पीड़ादायक रोगों और नारकीय जीवन ने उनके मन से नर्क का भय निकाल दिया। विभिन्न विपत्तियों ,शत्रु का सामना, सर्प- भय, तीव्र गर्मी और अभाव से असंख्य लोग रास्ते में मर गए और शांत हो गए। तब कहां रहते उनके स्नान ध्यान कठोरता और प्रार्थनाएं।’
इस समय हिंदुओं के सौभाग्य से पंडित रत्नाकर भट्ट ने साहस करके उनका नेतृत्व करना आरंभ किया और हिंदुओं को संगठित करके उनमें वीरता और आत्मविश्वास के भावों का संचार किया। जो लोग भय के कारण हिंदू से मुसलमान बन गए थे, उन्होंने भी पंडित रत्नाकर का सहयोग करना आरंभ किया। जिससे हिंदुओं में कुछ नई जान सी पड़ती हुई दिखाई दी। हिंदू से मुस्लिम बने मुलानाउद्दीन नामक मुस्लिम पंडित ने रत्नाकर भट्ट की अनुपम सहायता की। इससे स्पष्ट होता है कि उस समय ऐसे अनेक लोग थे जो हिंदू से मुसलमान बनकर अपने मूल धर्म के विषय में चिंतित थे।
हिंदुओं को संगठित कर और दोबारा उन्हें कश्मीर में बसाने के अनुपम कार्य को करके रत्नाकर भट्ट ने मां भारती की अनुपम सेवा की। उनके योगदान को इतिहास कभी भुला नहीं सकता। यद्यपि उनके विषय में हमारा मुगलिया छाप वर्तमान इतिहास कुछ भी प्रकाश नहीं डालता।
इसी समय रत्नाकर भट्ट के नेतृत्व में जहां हिंदू समाज को संगठित कर मुस्लिम आतंकवाद से लड़ने के लिए कार्य किया जा रहा था वहीं उन्हें समाप्त करने की योजनाओं पर भी काम हो रहा था। क्योंकि जहां लगभग सारे हिंदुओं का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया हो वहां रत्नाकर भट्ट जैसे मुट्ठी भर लोगों के प्रयास को कैसे सहन किया जा सकता था ? अक्सर ऐसा देखा गया है कि चाहे तुर्कों का काल रहा या मुगलों का या फिर अंग्रेजों का शासनकाल रहा अधिकतर हमें अपने लोगों से ही धोखा मिला है। यही रत्नाकर भट्ट और उनके साथी मुलानाउद्दीन के साथ हुआ। एक नए बने मुस्लिम ने गद्दारी करके रत्नाकर भट्ट और मुलानाउद्दीन को गिरफ्तार करा दिया , और उसके पश्चात उस समय के सुल्तान अलीशाह ने उन दोनों को मरवा दिया।
सुल्तान अलीशाह ने भी हिंदुओं के साथ अन्याय और अत्याचार का क्रम जारी रखा। उसके शासन काल के बारे में कहा जाता है कि कश्मीर में केवल 11 हिंदू परिवार ही शेष रह गये थे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत