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गौ और गोवंश

गौहत्या पर प्रतिबन्ध के विरोध में दिए जा रहे कुतर्कों की समीक्षा

डॉ. विवेक आर्य

हरियाणा सरकार द्वारा गौ हत्या पर पाबन्दी लगाने एवं कठोर सजा देने पर मानो सेक्युलर जमात की नींद ही उड़ गई है। एक से बढ़कर एक कुतर्क गौ हत्या के समर्थन में कुतर्की दे रहे है। इनके कुतर्कों की समीक्षा करने में मुझे बड़ा मजा आया। आप भी पढ़े।
कुतर्क नं 1. गौ हत्या पर पाबन्दी से महाराष्ट्र के 1.5 लाख व्यक्ति बेरोजगार हो जायेंगे जो मांस व्यापार से जुड़े है।
समीक्षा- गौ पालन भी अच्छा व्यवसाय हैं। इससे न केवल गौ का रक्षण होगा अपितु पीने के लिए जनता को लाभकारी दूध भी मिलेगा। ये व्यक्ति गौ पालन को अपना व्यवसाय बना सकते हैं। इससे न केवल धार्मिक सौहार्द बढ़ेगा अपितु सभी का कल्याण होगा।
कुतर्क नं 2. गौ मांस गरीबों का प्रोटीन हैं। प्रतिबन्ध से उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव होगा।
समीक्षा- एक किलो गौ मांस 150 से 200 रुपये में मिलता हैं जबकि इतने रुपये में 2 किलो दाल मिलती हैं। एक किलो गौमांस से केवल 4 व्यक्ति एक समय का भोजन कर सकते हैं जबकि 2 किलो दाल में कम से कम 16-20 आदमी एक साथ भोजन कर सकते हैं। मांस से मिलने वाले प्रोटीन से पेट के कैंसर से लेकर अनेक बीमारियां होने का खतरा हैं जबकि शाकाहारी भोजन प्राकृतिक होने के कारण स्वास्थ्य के अनुकूल हैं।
कुतर्क नं 3. गौ मांस पर प्रतिबन्ध अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हैं क्योंकि यह उनके भोजन का प्रमुख भाग है।
समीक्षा- मनुष्य स्वाभाव से मांसाहारी नहीं अपितु शाकाहारी हैं। वह मांस से अधिक गौ का दूध ग्रहण करता है। इसलिए यह कहना की गौ का मांस भोजन का प्रमुख भाग हैं एक कुतर्क है। एक गौ अपने जीवन में दूध द्वारा हज़ारों मनुष्यों की सेवा करती हैं जबकि मनुष्य इतना बड़ा कृतघ्नी हैं की उसे सम्मान देने के स्थान पर कसाइयों से कटवा डालता है।
कुतर्क नं 4. अगर गौ मांस पर प्रतिबन्ध लगाया गया तो बूढ़ी एवं दूध न देनी वाली गौ जमीन पर उगने वाली सारी घास को खा जाएगी जिससे लोगों को घास भी नसीब न होगी।
समीक्षा- गौ घास खाने के साथ साथ गोबर के रूप में प्राकृतिक खाद भी देती हैं जिससे जमीन की न केवल उर्वरा शक्ति बढ़ती हैं अपितु प्राकृतिक होने के कारण उसका कोई दुष्परिणाम नहीं है। प्राकृतिक गोबर की खाद डालने से न केवल धन बचता हैं अपितु उससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती हैं। साथ में ऐसी फसलों में कीड़ा भी कम लगता हैं जिनमें प्राकृतिक खाद का प्रयोग होता है। इस कारण से महंगे कीट नाशकों की भी बचत होती हैं। साथ में विदेश से महंगी रासायनिक खाद का आयात भी नहीं करना पड़ता। बूढ़ी एवं दूध न देनी वाली गौ को प्राकृतिक खाद के स्रोत्र के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
कुतर्क नं 5. गौहत्या पर प्रतिबन्ध अल्पसंख्यकों के अधिकारों का अतिक्रमण है।
समीक्षा- बहुसंख्यक के अधिकारों का भी कभी ख्याल रखा जाना चाहिए। इस देश में बहुसंख्यक भी रहते है। गौहत्या से अगर बहुसंख्यक समाज प्रसन्न होता हैं तो उसमें बुराई क्या है।
कुतर्क नं 6. गौहत्या करने वाले को 10 वर्ष की सजा का प्रावधान हैं जबकि बलात्कारी को 7 वर्ष का दंड है। क्या गौ एक नारी के शील से अधिक महत्वपूर्ण हो गई?
समाधान- हम तो बलात्कारी को उम्रकैद से लेकर फांसी की सजा देने की बात करते है। आप लोग ही कटोरा लेकर उनके लिए मानव अधिकार के नाम पर माफी देने की बात करते है। सबसे अधिक मानव अधिकार के नाम पर रोना एवं फांसी पर प्रतिबन्ध की मांग आप सेक्युलर लोगों का सबसे बड़ा ड्रामा है।
कुतर्क नं 7. गौहत्या के व्यापार में हिन्दू भी शामिल है।
समाधान- गौहत्या करने वाला हत्यारा है। वह हिन्दू या मुसलमान नहीं है। पैसो के लालच में अपनी माँ को जो मार डाले वह हत्यारा या कातिल कहलाता हैं नाकि हिन्दू या मुसलमान। सबसे अधिक गोमांस का निर्यात मुस्लिम देशों को होता है। इससे हमारे देश के बच्चे तो दूध के लिए तरस जाते हैं और हमारे यहाँ का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता हैं।
कुतर्क नं 8. अगर गौ से इतना ही प्रेम है तो उसे सड़कों पर क्यों छोड़ देते हैं।
समाधान- प्राचीन काल में राजा लोग गौ को संरक्षण देने के लिए गौशाला आदि का प्रबंध करते थे जबकि आज की सरकारें सहयोग के स्थान पर गौ मांस के निर्यात पर सब्सिडी देती है। विडंबना देखिये मुर्दों के लिए बड़े बड़े कब्रिस्तान बनाने एवं उनकी चारदीवारी करने के लिए सरकार अनुदान देती हैं जबकि जीवित गौ के लिए गौचर भूमि एवं चारा तक उपलब्ध नहीं करवाती। अगर हर शहर के समीप गौचर की भूमि एवं चारा उपलब्ध करवाया जाये तो कोई भी गौ सड़कों पर न घूमे। खेद हैं हमारे देश में अल्पसंख्यकों को लुभाने के चक्कर में मुर्दों की गौ माता से ज्यादा औकात बना दी गई है।
कुतर्क नं 9. गौ पालन से ग्रीन हाउस गैस निकलती है जिससे पर्यावरण की हानि होती हैं।
समाधान- यह वैज्ञानिक तथ्य हैं की मांस भक्षण के लिए लाखों लीटर पानी बर्बाद होता हैं जिससे पर्यावरण की हानि होती है। साथ में पशुओं को मांस के लिए मोटा करने के चक्कर में बड़ी मात्र में तिलहन खिलाया जाता हैं जिससे खाद्य पदार्थों को अनुचित दोहन होता है। शाकाहार पर्यावरण के अनुकूल हैं और मांसाहार पर्यावरण के प्रतिकूल हैं। कभी पर्यावरण वैज्ञानिकों का कथन भी पढ़ लिया करो।
कुतर्क नं 10. गौमांस पर प्रतिबन्ध भोजन की स्वतंत्रता पर आघात है।
समाधान- मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्रता हैं मगर सामाजिक नियम का पालन करने के लिए परतंत्र है। एक उदाहरण लीजिये आप सड़क पर जब कार चलाते हैं तब आप यातायात के सभी नियमों का पालन करते हैं अन्यथा दुर्घटना हो जाएगी। आप कभी कार को उलटी दिशा में नहीं चलाते और न ही कहीं पर भी रोक देते हैं अन्यथा यातायात रुक जायेगा। यह नियम पालन मनुष्य की स्वतंत्रता पर आघात नहीं हैं अपितु समाज के कल्याण का मार्ग है। इसी नियम से भोजन की स्वतंत्रता का अर्थ दूसरे व्यक्ति की मान्यताओं को समुचित सम्मान देते हुए भोजन ग्रहण करना है। जिस कार्य से समाज में दूरियां, मनमुटाव, तनाव आदि पैदा हो उस कार्य को समाज हित में न करना चाहिये।
इन कुतर्कों का मुख्य उद्देश्य युवा मस्तिष्कों को भ्रमित करना है। इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करके अपने मित्रों को बचाये।

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