*राष्ट्र-चिंतन*
*आचार्य श्री विष्णुगुप्त*
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मुस्लिम आतंकवादियों की टारगेटेड हत्या का नया शिकार राहुल भट्ट हुए हैं। माखनलाल विंद्रु से लेकर राहुल भट्ट तक, कई हिन्दू टारगेटेड हिंसा का शिकार होकर अपनी जानें गंवायी है। इसके अलावा कई प्रवासी मजदूर भी टारगेटेड हिंसा में अपनी जानें गंवायी है। आगे भी टारगेटेड हिंसा में कश्मीरी हिन्दू और प्रवासी मजदूर अपनी जान गंवाते रहेंगे। कश्मीर में मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा टारगेटेड किलिंग का खूनी खेल कोई अप्रत्याशित नहीं है। मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा कश्मीर से हिन्दुओं को खदेड़ने का प्रथम लक्ष्य था, जिस पर वे आज भी कायम है। यह नीति आईएसआई की थी और आईएसआई ने इस नीति को अपने मोहरे मुस्लिम आतंकवादियों से लागू कराने का काम किया। 1980 से लेकर 1990 के दौर में जब कश्मीर में मुस्लिम आतंकवाद ने सिर उठाया था तब कश्मीरी हिन्दुओं को ही निशाना बनाया गया था। मस्जिदों से सरेआम एलान होता था कि हिन्दू कश्मीर छोड़ दें या फिर मुसलमान बन जायें, हम बन्दूक के बल पर हिन्दुओं का नरसंहार कर सफाया कर देंगे, फिर हम पाकिस्तान में मिल कर इस्लाम का परचम लहरायेंगे। उस दौर में भारत की सत्ता पर राज करने वाले शासक बहुत ही कमजोर अदूरदर्शी थे, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि उनकी धार्मिक दृष्टि बहुत ही घृणित और एकंागी थी। शासकों पर मजहबवाद हावी था। उदाहरण के लिए राजीव गांधी, वीपी सिंह, देवगौड़ा, गुजराल के नाम लिये जा सकते हैं। राजीव गांधी कश्मीर की समस्या को लेकर उदासीन थे और भ्रमित थे, उनमें मुस्लिम आतंकवादियों को सबक सिखाने की दृष्टि नहीं थी, वे शाहबानों मामले में मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगोश में कैद हो गये थे। जबकि वीपी ंिसंह अति मुस्लिम सोच के शिकार थे और अपने गृहमत्री मुफ्ती मोहम्मद सईइ के चाल में फंसे रहें। मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी के अपहरणकांड में वीपी सिंह की कमजोरी साफ थी और मुस्लिम आतंकवादियों की संतुष्टि की नीति राष्ट्र के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हुई। गुजराल और देवगौड़ा की राजनीतिक हैसियत बहुत ही सीमित थी, इसलिए वे सिर्फ सत्ता चलाने की खानापूर्ति करते थे। पीवी नरसिंह राव के मंत्रिमंडल में एक मंत्री भेदिया था जो अग्रिम सूचना अमेरिका तक पहुंचा देता था। सिर्फ तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन ने मुस्लिम आतंकवादियों की हिन्दुओं के संहार करने की नीति के खिलाफ सख्ती दिखायी थी। जगमोहन को अफवाह और मजहबी साजिश का शिकार बना कर बदनाम किया गया था।
धारा 370 के हटने के बाद बौखलाहट बढ़ी हैं। बौखलाहट सिर्फ मुस्लिम आतंकवादियों के अंदर ही नहीं बढ़ी है बल्कि बौखलाहट तो पाकिस्तान-आईएसआई की बढ़ी है, बौखलाहट तो कश्मीर के मुस्लिम राजनीतिक दलों में भी बढ़ी है। जब मुस्लिम आतंकवादियों और विखंडनकारियों की कुइच्छा की पूर्ति नहीं होगी है, जब उनकी हिंसा पर जवाब मिलेगा, जब उनकी हिंसक सक्रियाएं कूचली जाने लगेगी तो फिर उनके अंदर हताशा, निराशा और बौखलाहट बढनी स्वाभाविक है। अब यहां यह प्रश्न उठता है कि खासकर मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की कूइच्छाएं क्या थी जो कूचली गयीं। वास्तव में पाकिस्तान, आईएसआई, मुस्लिम आतंकवादी संगठनों और कश्मीर की मुस्लिम पार्टियों को यह उम्मीद थी कि अगर भारत सरकार धारा 370 हटायी तो कश्मीर में विद्रोह होना निश्चित है, कश्मीरी बगावत पर उतर आयेंगे, पाकिस्तान भारत पर हमला कर देगा, दुनिया के लगभग 60 मुस्लिम देश भारत की गर्दन मरोड़ देगे। इस प्रकार कश्मीर भारत से अलग हो जायेंगा। पर उन्हें यह मालूम नहीं था कि भारत की सत्ता पर राजीव गांधी नहीं, वीपी सिंह नहीं, पीवी नरसिंह राव नहीं, देवगौड़ा नहीं, गुजराल नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी बैठा है जो न केवल देश की एकता और अखंडता के प्रश्न पर दृढ़ निश्चियी है बल्कि कठोर भी है और हिंसक प्रतिक्रिया देने से भी पीछे नहीं हटता है। कश्मीर में धारा 370 हटाने के बाद की शेष कहानी जगजाहिर ही है।
जब सरकार की हनक बढ़ती है, दृढ़ता बढ़ती है, अपने नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बढ़ती है तब विश्वास बढ़ता है। नरेन्द्र मोदी सरकार से पूर्व की सरकारों का कश्मीर में न तो हनक होती थी और न ही दृढ़ता होती थी, अपने नागरिकों की सुरक्षा का भाव भी नहीं होता था। कहने का अर्थ है कि कश्मीर में हिन्दू सिर्फ अपने भाग्य भरोसे किसी तरह ंिजंदा थे, जिन पर हिंसा के लपटें कभी भी उठ सकती थी और शिकार कर सकती थी। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने निश्चित तौर पर कश्मीर में हिन्दुओं को सुरक्षा का विश्वास दिया है। यही कारण है कि कश्मीरी हिन्दू अच्छी संख्या में घाटी में लौटे हैं और अपनी खेती तथा व्यापार में लगे हुए हैं। खासकर धर्म स्थलों की सुरक्षा और रौनक भी बढ़ी है। भारत सरकार की पुर्नवास नीति भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। पुर्नवास नीति के तहत वैसे हिन्दू परिजनों को सहायता मिली है जिनके सदस्यों की हत्या हुई थी या फिर जिनकी संपत्तियों का संहार मुस्लिम आतंकवादी संगठनों ने किया था। आज स्थिति यह है कि हिन्दू संख्या में कम जरूर हैं पर कश्मीर में दृढ़ता के साथ जमें हुए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कश्मीर के हिन्दुओं को सरकार के साथ ही साथ देश की जनता का साथ भी मिल रहा है।
मुस्लिम आतंकवादी संगठनों ने यह मान लिया कि अब आतंकवादी हिंसा के बल पर भारत को झुकाया नहीं जा सकता है, भारतीय सुरक्षा बलों के इरादों को तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता है। भारतीय सुरक्षा बलों की मजबूत सक्रियता के कारण मुस्लिम आतंकवादी सरगनाएं मारे भी जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में इनकी नीति सिर्फ यही है कि डर-भय का वातावरण तैयार करना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने लिए प्रचार पाना तथा भारत सरकार की छवि को नुकसान पहुुंचाना। इसी लिए टारगेटेड किलिंग बढ़ती जा रही है। हिन्दू हथियार विहीन हैं, संख्या में भी कम है। इसलिए उनके नाम पूछ कर हत्या करने में उन्हें आसानी होती है। इसके पीछे एक चाल यह भी है कि अगर कश्मीर से हिन्दुओं को पूरी तरह से खदेड़ दिया जाये तो फिर उनकी आतंकवादी नीति काफी सुरक्षित हो जायेगी, उनके छुपने के लिए सुरक्षित जगह मिल सकती है। इसके अलावा प्रवासी मजदूरों की हत्या के पीछे भारत सरकार की विकास योजनाओं की गति को रोकना है। भारत सरकार ने कश्मीर के विकास के लिए कई योजनाएं चला रखी हैं। इन योजनाओं को पूरा करने के लिए बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे जगहों से भारी संख्या में प्रवासी मजदूर आये हैं। प्रवासी मजदूर सिंर्फ सरकारी योजनाओं में ही लगे नहीं है बल्कि प्रवासी मजदूर फलों की खेती में भी अपना योगदान दे रहे हैं।
सबसे बड़ी बात कश्मीर की राजनीतिक पार्टियों का हिन्दू विरोधी चरित्र और पाकिस्तान समर्थक चेहरे का है। कश्मीर में मुख्यतः दो बड़ी पार्टियां है। एक पीडीपी है और दूसरी नेशनल काफ्रेंस है। पीडीपी के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद की कट्टरपंथी बोल जगजाहिर है। महबूबा मुफ्ती अपने पिता की फोटो कॉपी है। इसके अलावा नेशनल काफ्रेंस के बाप-बेटे फारूख अब्दुला और उमर अब्दुला की समय-समय पर राष्ट्र विरोधी बोल भी जगजाहिर है। कहने का अर्थ है कि पीडीपी और नेशनल काफ्रेस के नेता अभी मुस्लिम आतंकवादियों की किसी न किसी प्रकार से आईकॉन और शक्ति बनें हुए हैं। ये भारतीय सुरक्षा बलों को खलनायक करार देकर मुस्लिम आतंकवादियों की हिंसा का अप्रत्यक्ष समर्थन करते हैं।
टारगेटेड किलिंग का शिकार हिन्दू आगे भी होंगे। भारत सरकार को अभी भी समय चाहिए। आतंकवादी संमर्थकों को जब तक संहार नहीं किया जायेगा तब तक हिन्दुओं पर टारगेटिंग किलिंग की हिंसा रूकने वाली नहीं है। सिर्फ मुस्लिम आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान ही नहीं बल्कि पीडीपी व नेशनल कांफ्र्रेंस जैसी पार्टियों और तथाकथित बुद्धिजीवियों तथा पुलिस-प्रशासनिक हलकों में बैठे हुए विखंडनकारी तत्वों का भी संहार करना होगा। विधान सभा क्षेत्रों के परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार नियंत्रित सरकार के गठन के बाद ही विखंडनकारी तत्वों पर प्रभावी नियंत्रण संभव है। फिर भी भारत सरकार को कश्मीर में हिन्दुओं और प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा की चाकचौबंद व्यवस्था करनी ही होगी।