मोदी की तीन बड़ी बातें
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अन्य देशों की तरह चीन में रहनेवाले भारतीयों को संबोधित किया। पांच हज़ार भारतीयों की सभा चीन जैसे देश में हो जाए, यह ही अपने आप में बड़ी बात है । भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने आज तक चीन में भारतीयों की इतनी बड़ी सभा को संबोधित नहीं किया। मोदी की यह विशेषता मानी जाएगी कि उन्होंने विदेश नीति को सीधे जनता से जोड़ने की कोशिश की है । मोदी की इन सभाओं पर कांग्रेस ने काफी व्यंग्य-वाण छोड़े हैं, जो कि स्वाभाविक है। यदि इन सभाओं में वे चुनावी–भाषण देंगें तो यही होगा लेकिन मोदी की सीखने की रफ़्तार काफी तेज़ है । उन्होंने जो गल्तियाँ अमेरिका में कीं, उन्हें चीन में नहीं दोहराया । उनके भाषण को चीन के सभी भारतीयों ने तो सुना ही, भारत में भी वह सुना गया। उसने भारतीय विदेश–नीति के मंतव्यों को दोहरे रूप में सिद्ध किया । चीन में रहनेवाले भारतीयों के दिलो-दिमाग में एक नया जोश भर गया।
इस भाषण में नरेन्द्र मोदी ने अपने बारे में जो तीन बातें कहीं, वे इतनी बढ़िया हैं कि उनसे मोदी के अपने व्यक्तित्व का विकास तो होगा ही, आम जनता और खास कर नेतागण को भी बड़ी राहत मिलेगी। मोदी ने कहा कि यह तथ्य है कि वे लगभग हर माह विदेश जाते रहे हैं। विपक्ष इसकी निंदा करता है। क्या विपक्ष यह नहीं देखता कि मोदी ने साल भर में एक दिन भी छुट्टी नहीं ली। जबकि विपक्षी नेता और उनके पिता हफ़्तों देश से गायब हो जाते हैं। जहाँ तक मोदी की फ्रांस, जर्मनी और कनाडा का यात्रा का सवाल है, वे काफी सफल रही हैं और चीन–यात्रा तो अपूर्व रही है। उनके ठोस फायदे धीरे—धीरे सामने आयेगें ही।
मोदी ने दूसरी बात यह कही कि ‘’मुझे अनुभव नहीं है। मैं सीखूँगा’। यह अपने आप में बड़ी बात है । ऐसा कहना किसी भी प्रधानमंत्री के लिए अकल्पनीय है । यह सच्ची विनम्रता है । यदि यह बात उन्होंने पूरी ईमानदारी से कही है तो वे वैसे ही ऐतिहासिक प्रधानमन्त्री बनेगें, जैसे कि मैंने तालकटोरा स्टेडियम की सभा में डेढ़ साल पहले अपने भाषण में कहा था।
तीसरी बात मोदी ने यह कही कि “मैं गलत नीयत से कोई काम नहीं करूँगा।” यह अद्भूत बात है लेकिन प्रधानमन्त्री की नीयत हमेशा अच्छी रहे, उसके लिए मोदी को क्या—क्या करना चाहिए, इसका उन्हें अभी शायद ठीक से पता नहीं है। शायद अनुभव उन्हें सिखाएगा।