मोदी सरकार का एक वर्ष पूरा हुआ
नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अपना एक साल पूरा कर लिया है । भारत जैसे बड़े देश में नीतिगत परिवर्तनों और उसके क्रियान्वयन के लिये एक साल ज़्यादा मायने नहीं रखता , लेकिन जब एकबारगी में सत्ता की अवधि पाँच साल के लिये निश्चित हो , तो ज़ाहिर है एक साल का महत्व भी बढ़ जाता है और सत्ताधारी दल को इस अल्प अवधि में ऐसे क़दम जरुर उठाने होंगे , जिनका प्रभाव आम जनता को स्पष्ट दिखाई दे । भाजपा सरकार का इसी लिहाज़ से लेखाजोखा लिया जाना जरुरी है , क्योंकि २६ मई को नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का पद संभाले हुये एक साल हो जायेगा ।
इसमें कोई शक नहीं कि मोदी के सत्ताकाल में विदेशों में भारत का रुतबा बढ़ा है । इतना ही नहीं विदेशों में बसे भारतीयों में भी आत्मगौरव का संचार हुआ है । यह ध्यान रखा जाना चाहिये कि विदेशों में जो भारतीय बसते हैं , वे व्यक्तिगत तौर पर वहाँ कितनी भी उन्नति क्यों न कर लें , लेकिन दूसरे देश में उनके सामाजिक स्थान का ताल्लुक़ कुछ बहुत हद तक भारत की शक्ति से ही जुड़ा रहता है । यह सूत्र कमोवेश विदेश में रहने वाले सभी देशों के लोगों पर लागू होता है । कुछ दशक पहले विदेशों में रहने वाले चीनियों का सामाजिक रुतबा कम था लेकिन जैसे जैसे चीन आर्थिक व सामरिक उन्नति करता गया , त्यों त्यों विदेशों में चीनियों का रुतबा भी बढ़ता गया । एक साल के इस काल में यही मनोवैज्ञानिक परिवर्तन विदेशों में बसे भारतीयों के मामले में हुआ है । दूसरे देशों का भारत के प्रति नज़रिया बदलने का एक कारण यह भी हो सकता है कि तीन दशकों बाद भारत में कोई ऐसी सरकार आई है , जिसे जनता ने अपने बलबूते सत्ता संभालने का अधिकार दिया है । खिचड़ी सरकारों में दूरगामी प्रभाव वाले निर्णय लेने की क्षमता नहीं रहती । ख़ास कर उस स्थिति में जब दूसरे देशों की सरकारों की भी इस बात में रुचि रहती हो कि भारत कोई ऐसा नीतिगत निर्णय न करे जिससे उनके हित प्रभावित होते हों । मोदी सरकार मोटे तौर पर इस प्रकार के बाहरी प्रभावों से मुक्त है ।
विदेश नीति के मामले में मोदी सरकार की सबसे बड़ी सफलता , उसकी आस पड़ोस के देशों से सम्बंध बनाने और बढ़ाने में कहीं जा सकती है । आज तक भारत की विदेश नीति यूरोप केन्द्रित या फिर अमेरिका से प्रभावित रही है । पड़ोसियों को फ़लांग कर यूरोप अमरीका की ओर छलाँग लगाने की हमारी विदेश नीति के कारण हमारे पड़ोसी देश हतोत्साहित ही नहीं हुये बल्कि चीन ने इसका लाभ उठाकर , उन्हीं के माध्यम से भारत की घेराबन्दी करने की कोशिश भी की । मोदी ने सत्ता संभालने के बाद विदेश नीति की इन्हीं ग़लतियों को सुधारने का प्रयास किया । इससे पड़ोसी देशों में भारत को लेकर सकारात्मक प्रभाव ही उत्पन्न नहीं हुआ बल्कि बल्कि चीन का भय भी कम हुआ । मोदी की शुरुआती विदेश यात्राएँ भूटान ,नेपाल इत्यादि की रहीं । मोदी और उनकी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने वियतनाम , म्यांमार , जापान , कोरिया , मंगोलिया इत्यादि की यात्राएँ कीं , जिससे पूरे दक्षिण एशिया में भारत के प्रति सकारात्मक भाव उत्पन्न हुआ । अमेरिका और चीन से भारत अब बराबरी से बात करता है । चीन के मामले में तो १९६२ के बाद से ही भारत की नीति कुल मिला कर बचाव की ही रही है । साउथ ब्लाक यही देखता रहता था कि हमारी किसी बात से चीन नाराज़ न हो जाये । लेकिन मोदी ने चीन में ही जाकर सार्वजनिक रुप से सीमा विवाद पर ही बात नहीं की बल्कि स्टैपल वीज़ा का मामला भी उठाया और चीन को भारत के प्रति अपना नज़रिया बदलने की सलाह दी । पहले की तरह चीन ने नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा से पहले शह मात की पुरानी शैली में भारतीय नेताओं के अरुणाचल प्रदेश में जाने पर आपत्ति ज़ाहिर करने का बयान देकर कूटनीतिक चाल चली तो भारत ने तुरन्त दिल्ली स्थित चीनी राजदूत को बुला कर जम्मू कश्मीर के पाकिस्तान अनधिकृत गिलगित बल्तीस्तान में चीनी सेनी की उपस्थिति पर आपत्ति ज़ाहिर की । भारत के पुराने व्यवहार को देखते हुये चीन को शायद ऐसी आशा नहीं रही होगी । चीन और भारत की दोस्ती विश्व शान्ति के लिये महत्वपूर्ण है , इसमें कोई शक नहीं , लेकिन इसके लिये चीन को विवादास्पद मुद्दों को सुलझाना होगा – ऐसा संकेत शायद पहली बार मोदी ही चीन के प्रधानमंत्री को दे पाये ।
इसी प्रकार भारत के लिये अमेरिका की दोस्ती महत्वपूर्ण है , लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अमेरिका अपनी तथाकथित ग़ैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से भारत में करोड़ों डालर झोंक कर यहाँ की मूल नीतियों को प्रभावित करता रहे । मोदी सरकार ने फोर्ड फाऊंडेशन की गतिविधियों पर लगाम लगाई । कुल मिला कर कहा जा सकता है कि विदेश नीति के मामले में मोदी सरकार ने एक वर्ष के अल्पकाल में ही महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं और दुनिया का भारत के प्रति दृष्ठिकोण बदला है । मोदी ने ठीक ही कहा है कि इक्कीसवीं सदी एशिया की हो सकती है और उसमें भी भारत नेतृत्व की भूमिका में आ सकता है ।
लेकिन मुख्य प्रश्न जो पूछा जा रहा है कि मोदी सरकार देश में क्या कर रही है ? यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है और इसका सही उत्तर दिये बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता । सबसे बड़ा प्रश्न इस देश के आम आदमी का है । पिछले कुछ साल से आम आदमी हाशिए पर पहुँच रहा था । वह धीरे धीरे सरकार के पूरे सिस्टम से ही बाहर हो रहा था और तथाकथित प्रगति की दौड़ में पिछड़ कर अपना नाम व पहचान दोनों ही खो रहा था । मोदी सरकार ने जन धन योजना के माध्यम से इस आम आदमी की पहचान ही नहीं स्थापित की बल्कि उसे प्रतिष्ठा भी प्रदान की । जन धन योजना का अर्थ केवल बैंक में खाता खुल जाना नहीं है । उस खाते के साथ भविष्य व वर्तमान की सुरक्षा के लिये अनेक योजनाएँ जुड़ी हुई हैं । भविष्य बीमा योजना है और अग्रिम धन राशि निकालने की सुविधा है । देश का आम ग़रीब आदमी , जिसे बैंक वाले भी आज तक बैंक के समीप खड़े नहीं होने देते थे , उसे मोदी सरकार ने देश के बैंकिंग सिस्टम से जोड़ा है । कभी राजीव गान्धी ने कहा था कि सरकार की ओर से ग़रीब के लिये जो एक रुपया चलता है , वह ग़रीब तक पहुँचते पहुँचते चार आना रह जाता है । लेकिन अब यह ग़रीब भी बैंकिंग सिस्टम का हिस्सा है , अत इसके लिये चला एक रुपया सीधा इस के बैंक खाते में जमा हो जायेगा ।
देश में कुछ लोग औद्योगिक विकास को जन विरोधी और कृषि विरोधी बताने का प्रयास करते रहे हैं । उद्योग को और उद्योगों को वे अब भी मार्क्सवादी शब्दावली में सर्वहारा के शत्रु के रुप में देखते हैं । इसी नज़रिए के कारण देश औद्योगिक उन्नति में भी पिछड़ गया और उसके कारण रिसर्च एंड डिज़ाइन में भी ज़्यादा प्रगति हुई । दरअसल उद्योग और कृषि एक दूसरे के पूरक हैं । नरेन्द्र मोदी की सरकार ने पिछले एक साल से देश में नये उद्योगों की स्थापना , विदेशी निवेश, और मेक इन इंडिया के अभियान को सफल बनाने का प्रयास किया है । विदेश से भारत में निवेश हो इसके लिये सरकार ने अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं । मोदी की विदेश यात्राओं का मुख्य उद्देष्य चाहे दिशाहीन हो चुकी विदेश नीति को गतिशील बनाना होता है , लेकिन इसके साथ ही उससे सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर आर्थिक अनुबन्ध करना भी होता है । इसमें सरकार को पर्याप्त सफलता मिली है । लेकिन विपक्ष इस नीति को किसान विरोधी समझने की ज़िद कर रहा है । इससे भी हैरानी की बात यह है कि विपक्ष ने मोदी को किसान विरोधी सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी सोनिया गान्धी और उनके बेटे पर डाल दी है । यही कारण है कि जब माँ बेटा भारत के किसानों को जान लेने का दावा करते हैं तो स्थिति गंभीर होने की बजाए हास्यस्पद दिखाई देने लगती है । युवा पीढ़ी को रोज़गार चाहिये , और बिना औद्योगिक विकास के रोज़गार के अवसर बढ़ना मुश्किल है । मोदी इसी दिशा में गतिशील हैं । सरकार इस हेतु देश में आधारभूत संरचना के निर्माण की दिशा में गतिशील हैं ।
सोनिया कांग्रेस की सरकार ने देश में निराशा का वातावरण पैदा कर दिया था । मंत्रिमंडल में व राजनैतिक नेतृत्व प्रदान करने वालों ने कारपोरेट जगत के साथ मिल कर एक प्रकार से देश के संसाधनों की लूट मचा दी थी । इससे पूरे देश में व्यवस्था को लेकर ही अविश्वास पनपने लगा था । पूर्व सरकार का कोलगेट स्कैंडल तो मात्र इसका एक उदाहरण कहा जा सकता है । इस मामले में तो मोर्चेबन्दी इतनी मज़बूत थी कि मनमोहन सिंह जैसा प्रधानमंत्री भी असहाय बना रहा और परोक्ष रुप से इसमें सहायक ही सिद्ध होने लगा था । मोदी सरकार ने एक साल के भीतर ही देश को निराशा के उस वातावरण में से निकालने का ऐतिहासिक काम किया है । चुनाव में लोगों की आशाएँ आसमान छूने लगीं थीं , इसलिये इस दिशा में सरकार की गति को लेकर तो बहस हो रही है , लेकिन सरकार की नियत को किसी ने प्रश्नित नहीं किया । विपक्ष भी ज़्यादा हल्ला गति को लेकर ही डाल रहा है , नीयत को लेकर नहीं । सरकार की दिशा निश्चित है । मोदी देश को उस दिशा में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं । पूर्व में सरकार एक प्रकार से दिशाहीन ही हो गई थी । इसलिये उसमें जड़ता आ गई थी । दिशा को लेकर मत विभिन्नता होना लाज़िमी है । वह वैचारिक मुद्दा है ।
देश में आधारभूत संरचना के निर्माण का जो कार्य शुरु हुआ है , उससे सभी को लाभ होगा । किसान भी इससे उसी प्रकार लाःान्वित होंगे , जिस प्रकार व्यवसाय करने वाले लोग । इतना ही नहीं वर्तमान संरचना एवं सुविधाओं की गुणवत्ता बढ़ाने की दिशा में भी सरकार अग्रणी है । सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की दिशा में काम हुआ है । दरअसल पिछले कुछ दशकों से बिना किसी स्पष्ट नीति , काल और दिशा के सरकारी चलतीं थीं , इसलिये देश का वह ढाँचा , जो साधनहीन या ग़रीब लोगों , चाहे वे शहरी हो या ग्रामीण क्षेत्रों के , आधारभूत सुविधाएँ मुहैया करवाता था , लगभग ध्वस्त हो गया था और इन क्षेत्रों में रखा गया गया पैसा कुछ बिचौलियों की जेब में चला जाता था । मोदी सरकार ने उस व्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने की कोशिश की है । स्वच्छता अभियान, टीकाकरण अभियान , किसान के खेत की मिट्टी जाँचने का अभियान इसी दिशा में उठाये गये कुछ दूसरे क़दम हैं । मोदी ने देश के प्रत्येक स्कूल में लड़कियों के लिये अलग शौचालय बनाये जाने का अभियान चलाया । यह अपने आप में अभूतपूर्व योजना है । स्कूल में बच्चों के लिये यह न्यूनतम आवश्यकता थी जिसकी ओर आज़ादी के इतने साल बाद भी किसी का ध्यान नहीं गया था । इसी प्रकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना का ज़िक्र किया जा सकता है । पिछले अनेक साल से भ्रूण हत्या की दर में जिस तेज़ी से वृद्धि हुई है , उससे देश में जनसंख्या का अनुपात बिने लगा है । प्रधान मंत्री ने व्यक्तिगत रुचि लेकर लड़कियों की ज़िन्दगी सँवारने के लिये पहल की है । सुकन्या समृद्धि योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा योजना इस दिशा में सरकार द्वारा उठाये गये महत्वपूर्ण क़दम हैं ।
मोदी सरकार के साल भर के काम की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि उसका पाकिस्तान के साथ यथार्थ की भाषा में बात करना है । आज तक पाकिस्तान सीमान्त पर छेड़छाड़ करता रहता था और भारत का रवैया बहुत ही ढीला ढाला होता था । सीमा पर हमारे सैनिकों के हाथ बँधे रहते थे । ऐसा पहली बार हुआ है कि भारत सरकार ने सीमा पर सैनिकों को ईंट का जबाव पत्थर से देने की छूट दी है । अभी तक भारत सरकार हुर्रियत कान्फ्रेंस के प्रतिनिधियों से अपने एजेंटों के माध्यम से बात करती रहती थी , जिससे इन अलगाववादी नेताओं को सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती थी । यह पहली बार हुआ है कि दिल्ली ने इनसे बात करने से इन्कार कर दिया ।
भारत के बारे में विदेशों में अक्सर कहा जाता है कि दुनिया में हिन्दुस्तान पहला देश है जिसने आधिकारिक तौर पर अपनी संस्कृति को अस्वीकार किया है । भारत की इस नीति के चलते दुनिया भर में सरकारी तौर पर भारत विशिष्ट पहचान विहीन देश बनता जा रहा था । मोदी सरकार अंग्रेज़ों के चले जाने के बाद बनी पहली ऐसी सरकार है जिसने अपनी संस्कृति को सार्वजनिक रुप से स्वीकार किया है । मोदी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिये तैयार किया । गंगा सफ़ाई अभियान भी इस दिशा में उठाया गया ऐसा ही क़दम है । आज जब इक्कीसवीं सदी सभ्यताओं के संघर्ष की छवि बन गई है तो हिन्दुस्तान का अपनी संस्कृति के साथ पुनः जागृत हो जाना , निश्चय ही उन देशी विदेशी ताक़तों को चिन्तित कर रहा है जो किसी भी तरह इस सदी में भारत को सदा के लिये इक़बाल के ‘यूनान मिश्र रोमां मिट गये जहाँ से ‘ की कोटि में ले आना चाहतीं थीं । मोदी की सरकार ने साल भर में उस प्रक्रिया को किसी हद तक रोका है । इसलिये निश्चित ही ये ताक़तें किसी भी तरह मोदी सरकार के ख़िलाफ़ वातावरण तैयार करेंगीं ही ।
यह ठीक है कि मोदी सरकार द्वारा शुरु की गई पहल के परिणाम आने में कुछ समय लग सकता है , लेकिन सही दिशा में शुरुआत हो गई है इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता ।