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मोदी की चाणक्य−नीति

modi jiप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस विदेश यात्रा में सबका ध्यान उनकी चीन−यात्रा पर सबसे ज्यादा गया। जाना भी चाहिए था, क्योंकि चीन एशिया का सबसे बड़ा राष्ट्र है और भारत के साथ उसके संबंध उलझनभरे भी हैं लेकिन इस पूरी यात्रा में उनके मंगोलिया और दक्षिण कोरिया जाने का अपना कूटनीतिक और सामरिक महत्व है। मंगोलिया और दक्षिण कोरिया चीन के कुछ−कुछ वैसे ही पड़ौसी हैं, जैसे कि पाकिस्तान हमारा है। पाकिस्तान से हमारे संबंध जितने शत्रुतापूर्ण रहे हैं, उतनी शत्रुता ये दोनों छोटे−छोटे देश चीन से नहीं रख सकते लेकिन इन दोनों देशों को चीन से भयंकर शिकायतें रही हैं। मंगोलिया का बहुत−सा क्षेत्र अभी भी चीन के कब्जे में हैं और दक्षिण कोरिया पर कब्जा करने के लिए चीन हमेशा उत्तर कोरिया को उकसाता रहा है। चीन के ऐसे दो पड़ौसी देशों में भारतीय प्रधानमंत्री का जाना और चीन जाने के साथ−साथ जाना, वास्तव में आचार्य चाणक्य की नीति का अनुसरण करना है। कौटलीय अर्थशास्त्र में लिखा है कि पड़ौसी का पड़ौसी याने पड़ौसी का प्रतिद्वंदी हमारा मित्र होता है। यदि चीन ने पाकिस्तान से अपनी घनिष्टता बढ़ा रखी है तो हम मंगोलिया, द. कोरिया, वियतनाम वगैरह से क्यों नहीं बढ़ाएं? भारत और चीन की इन नीतियों को कुछ विशेषज्ञ एक−दूसरे के घेराव की रणनीति भी कह सकते हैं लेकिन इसे मैं निर्भय और स्वतंत्र विदेश नीति का परिचायक मानता हूं। भारत के लगभग सभी पड़ौसी राष्ट्रों में चीन ने अपने पांव फैला रखे हैं तो हम उसके सभी पड़ौसी राष्ट्रों की तरफ दोस्ती का हाथ क्यों नहीं बढ़ाएं?

मोदी ने मंगोलिया और कोरिया में भारत के प्राचीन सांस्कृतिक संबंधों और बौद्ध परंपरा की दुहाई दी। मंगोलिया में एक अरब डॉलर लगाने और कोरिया के 10 अरब डॉलर भारत में लगाने के समझौते हुए। कोरिया के साथ होनेवाला 16 अरब डॉलर का व्यापार भी अब तेजी से बढ़ेगा। संयुक्तराष्ट्र संघ में भी कोरिया और सं.रा. के महासचिव बान की मून अब भारत का डटकर समर्थन करेंगे। मोदी की अनौपचारिकता और खुले व्यवहार ने भारत के लिए इस वर्ष मित्रता के अनेक नए आयाम खोल दिए हैं। हमारे विदेश मंत्रालय के अफसरों को शाबाशी देनी होगी, जो भारतीय विदेश नीति में चाणक्य−नीति का समावेश कर रहे हैं।

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