उनका कहना है कि वे निजामे—मुस्तफा कायम करना चाहते हैं लेकिन उनके कारनामों को देखकर खुद मुस्तफा दांतों तले उंगली दबा लेंगें। अगर यही निजामे—मुस्तफा है तो निजामे—काफिराना कैसा होगा ? इस्लाम की कौनसी किताब में लिखा है कि मुसलमान—मुसलमान में फर्क करो? सब मुसलमान बराबर हैं और भाई—भाई हैं, यह बात कुरान शरीफ और हदीसों में लिखी है या नहीं ? लेकिन ‘इस्लामी राज्य’ के लिए लड़नेवाले कुछ भारतीय मुस्लिम जवानों ने जो अपने अनुभव बताए हैं,वे रोंगटे खड़े करने वाले हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी के सामने पेश हुए अरीब मजीद ने लिखकर दिया है कि ‘इस्लामी राज्य’ के सरगना लोग कई आदमियों और औरतों को अपनी यौन—पिपासा शांत करने का साधन बनाए हुए हैं और भारतीय मुसलमानों को वे घटिया दर्जे का नागरिक मानते हैं। उनसे वे घटिया काम लेते हैं और यदि वे युद्ध में घायल हो जाएँ तो उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है । पिछले साल मुंबई से वहाँ लड़ने गए चार मुसलमान जवानों ने अपने उक्त अनुभव बताए हैं ।
‘इस्लामी राज्य’ के नाम पर ये लोग आम आदमियों से जबर्दस्ती रोजाना वसूली करते हैं। उनकी आमदनी कम से कम ६—७ करोड़ रुपये रोज़ की है। २०१४ के साल में इन आतंकवादियों ने लगभग सवा अरब डॉलर झपटे। तेल के कुओं से उन्हें अलग आमदनी होती है। बैंकों और सरकारी खजानों को भी रोज़ लूटा जाता है और ये सब काम इस्लाम के नाम पर किए जाते हैं। जैसे पश्चिम एशिया के शाहों और बादशाहों ने आम जनता को लूटा, उससे भी बदतर तरीके से अब इस्लाम के नाम पर लूट—पाट मची हुई है।