कश्मीर का आतंकवाद, अध्याय 7 जब मिटाया गया कश्मीर का हिंदू स्वरूप 1
शाहमीर के शासन काल से ही मुस्लिमों के लिए कश्मीर को सुरक्षित बनाने की प्रक्रिया आरंभ हो गई। कहने का अभिप्राय है कि भविष्य की धारा 370 और उससे उपजी जटिलताओं का श्रीगणेश इसी काल में हुआ। इसके शासनकाल में एक नहीं अनेक विदेशी मुस्लिम बड़ी सहजता से कश्मीर में प्रवेश पाने में सफल हो गए। ये सारे विदेशी सय्यद संप्रदाय के थे। उस समय के ‘उदार हिंदू’ ने उनके प्रवेश पर कोई आपत्ति नहीं की। उन्होंने एक सीधी सादी भेड़ की तरह अपने आपको सहज रूप में इन अतिथियों की सेवा में प्रस्तुत कर दिया । उस समय के उदार हिंदू को नहीं पता था कि आने वाले यह सैयद लोग अतिथि नहीं थे बल्कि अतिथि के रूप में भेड़िया थे। जिन्होंने कश्मीर में आकर इस्लाम का खुला प्रचार करना आरंभ कर दिया। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है कि जब कोई विदेशी शासक किसी देश या प्रदेश की राजनीतिक सत्ता पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेता है तो उसके पश्चात वह उस क्षेत्र में अपने विचारों को थोपने का भी प्रयास करता है। जिससे कि वहां के लोगों का वह विश्वास जीत सके।
कश्मीर का इस्लामीकरण और शाहमीर
सत्ता प्राप्त करने में सफल हुए शाहमीर के सामने भी कश्मीर के लोगों का हित करना उद्देश्य नहीं था । उसका उद्देश्य अब केवल एक ही रह गया था कि जैसे भी हो कश्मीर का इस्लामीकरण हो। भारत के लोगों से उसका कोई लेना-देना नहीं था। यहां रहकर वह उन लोगों को ही अपना समझता था जो उसके मत के अनुयायी हो चुके थे या होते जा रहे थे। उन्हें वह अपना दीनी भाई मानता था। इस्लाम की यह विशेषता भी है कि अपने दीनी भाइयों की खिदमत के लिए काम किया जाए। उनकी उन्नति और समृद्धि के लिए शेष लोगों का यदि विनाश भी किया जाना हो तो किया जा सकता है । ऐसी धार्मिक शिक्षाओं के आधार पर जो संप्रदाय आगे बढ़ता हो, उससे किसी भी प्रकार से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह मानवता का कहीं ध्यान रखेगा।
दुर्भाग्य से कश्मीर अब एक ऐसे संक्रमण काल में प्रविष्ट हो चुका था, जहां से दूर तक एक अंधेरी सुरंग ही दिखाई देती थी और उसमें से निकलने का कोई भी रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था। बकरी और कसाई दोनों इस अंधेरी सुरंग में थे । हो सकता है कि बकरी को कसाई दिखाई नहीं दे रहा हो, पर कसाई को बकरी अवश्य दिखाई दे रही थी। कश्मीर और कश्मीरियत अब एक ऐसे गहरे सन्नाटे की ओर बढ़ते जा रहे थे जिसमें मौत की सांय – सांय के अतिरिक्त और कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।
इस काल में जितने भी सैयद कश्मीर में प्रवेश करने में सफल हुए वे गिद्ध के रूप में थे, जो कश्मीरियत को नष्ट करने के उद्देश्य को सामने रखकर आ रहे थे। मुस्लिम इतिहासकार मुहम्मद दीन फाक ने ‘हिस्ट्री ऑफ कश्मीर’ में बताया है कि इस काल में सैयद ताजुद्दीन, उसका छोटा भाई सैयद हुसैन सिमनानी, उसके दो शिष्य सैयद मसूद और सैयद यूसुफ भी कश्मीर में आए। उन्होंने कश्मीर की वैदिक संस्कृति को मिटाकर उस पर इस्लाम कर रंग बिखेरने का काम करना आरंभ किया। दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि कश्मीर की तथाकथित इस्लामिक कश्मीरियत जिसे गंगा जमुनी संस्कृति का बेजोड़ नमूना कहा जाता है, अपनी प्रक्रिया को मजबूत करने में यहीं से सक्रिय हुई। यहीं से इस्लाम के प्रचारकों ने कश्मीर में मानवता के पक्षधर वैदिक धर्म को मिटाकर इस्लाम की खूनी तलवार से खून की खेती करनी आरंभ की।
हमारे बच्चे रहने का कारण
हिंदू समाज के कई लोग इस बात को अब तक भी नहीं समझ पाए हैं कि इस्लाम ने राजनीतिक सत्ता प्राप्त करके अपने धार्मिक विचारों को फैलाने का काम किया है। वृहत्तर भारत में जहां- जहां वे अपने इस काम में सफल हो गए वहीं -वहीं आज एक अलग देश बना हुआ हम देख रहे हैं। शेष भारत में यदि वह सफल नहीं हो पाए तो इसका कारण यह नहीं था कि इस्लाम के शासक और प्रचारक भारत के धर्म से प्यार करते थे और भारत के लोगों के साथ समन्वित होकर रहने में विश्वास रखते थे। इसके विपरीत इसका एक ही कारण है कि भारत के लोगों ने उनका जमकर प्रतिकार किया और उनके इन प्रयासों को सफल नहीं होने दिया। जिस कारण भारतवर्ष के कई क्षेत्रों में आज भी हिंदू बहुसंख्यक के रूप में दिखाई देता है। इस प्रकार हमें यह मानना चाहिए कि हम अपने पूर्वजों के पराक्रम के कारण अपने अस्तित्व को बचाने में सफल हुए हैं ना कि इस्लाम के मानने वालों की उदारता के कारण।
सैयद अली हमदानी और सैयद मोहम्मद हमदानी ने कश्मीर के मूल धर्म को मिटाने में विशेष सक्रियता दिखाई थी। सैयद अली हमदानी सन 1372 में अपने 700 सैयद साथियों के साथ भारतवर्ष में आया था। उसने कश्मीर में पहुंचकर अपने संगठन का विस्तार किया और बड़ी कुशलता से संगठन को खड़ा कर कश्मीर के मौलिक धर्म को मिटाने का कार्य आरंभ किया। उसे कश्मीर की तत्कालीन सत्ता व शक्ति का समर्थन और सहयोग प्राप्त था। जिसके बल पर वह अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ने लगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत