” काव्य-मुक्तक” (वन्देमातरम)
काश्मीर की बातों पे जो मुँह को ताकने लगते हैं,
भारत माँ के जयकारे पे बगल झाँकने लगते हैं,
कैसे उनसे त्याग समर्पण वाली बातें कर लें हम,
वन्देमातरम कहने पर जो होंठ कांपने लगते हैं,
जिनको अमृत का भी ढंग से पान नहीं करना आया,
जिनको अपनी मात्रभूमि का गान नहीं करना आया,
उनके मुख से राष्ट्र्वंदना का कैसे स्वर फूटेगा,
जिनको वीर शहीदों का भी मान नहीं करना आया,
जो ह्रदय में अपने राष्ट्रप्रेम घोल न सके,
मन के विचारों को कभी जो तोल न सके,
कैसे आज उनको भला अपना मान लें,
जो वन्दे मातरम भी कभी बोल न सके,
स्वर वन्देमातरम का जो भी गान छोड़ दें,
माँ भारती जय घोष का जो मान छोड़ दें,
इक मशविरा है उनको मेरा आज बस यही,
वो जियें मरें कहीं भी हिन्दुस्तान छोड़ दें,
राष्ट्र के सम्मान का है तंत्र वन्देमातरम,
मात्रभूमि प्रेम का है यंत्र वन्देमातरम,
इस माँ की पूजा करने वालो जान लो जरा,
भारती की आरती का मन्त्र वन्देमातरम,
ये मन्त्र है प्रणाम इसमें भारती का है,
सबको मात्रवत स्नेह से दुलारती का है,
ह्रदय में अपने बात ये बिठालो आज ही,
ये शब्द राष्ट्रवन्दना की आरती का है,