भारत की शिक्षा—प्रणाली को सुधारने के लिए यह सरकार कृत–संकल्प दिखाई पड़ रही है लेकिन पूरा साल निकल गया और यह पत्ता भी नहीं हिला सकी जबकि इसके तेवर ऐसे हैं, जैसे कि यह पहाड़ हिलाने जा रही है। यह पूरा साल उसने सिर्फ सोच—विचार में काट दिया, इसका मतलब क्या यह नहीं कि शिक्षा के बारे में इसका दिमाग खाली है ? अपने खाली दिमाग को भरने के लिए अब इसने देशभर के लोगों और संस्थाओं से सुझाव मांगें हैं।
मेरा पहला सुझाव तो यही है कि शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलें। मानव संसाधन मंत्रालय जैसा गन्दा नाम तो इस
दूसरा सुझाव ! इस मंत्रालय की मंत्री स्मृति ईरानी हैं । उनपर कोई डिग्री नहीं है, इससे सारा शिक्षा समाज खफा है लेकिन मेरे लिए डिग्री का कोई खास महत्व नहीं है । महत्व है, शिक्षा–जैसे गंभीर मामले की समझ का ! स्मृति ने इसका भी कोई प्रमाण नहीं दिया है। मौलाना आज़ाद, श्रीमाली, डॉ.त्रिगुण सेन, डॉ. मुरली मनोहर जोशी जैसे महान शिक्षाविदों की कुर्सी में बैठनेवाले में कुछ योग्यता तो होनी चाहिए ?
तीसरा सुझाव ! भारत की सम्पूर्ण शिक्षा—प्रणाली से अंग्रेजी का प्रभुत्व तत्काल ख़त्म होना चाहिए । अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई पर क़ानूनी प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। विदेशी भाषाओँ का सिर्फ दो वर्ष का विशेष पाठ्यक्रम होना चाहिए, वह भी ऐच्छिक !
चौथा सुझाव ! मेडिकल की पढाई में प्रवेश के लिए एक—एक दो—दो करोड़ की रिश्वत ली जाती है । ऐसे सभी गैर—सरकारी शिक्षा संस्थान बंद किए जाने चाहिए। ये शिक्षा नहीं, भ्रष्टाचार सिखाते हैं ।
पाँचवा सुझाव ! लगभग हर छात्र और छात्राओं के लिए काम–धंधों का प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिए, सिर्फ किताबी उच्च अध्ययन को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
छठा सुझाव ! जो माता—पिता अपने बच्चों को पढ़ाने नहीं भेजते, उन्हें कम से कम छह माह की सजा होनी चाहिए।
सातवाँ सुझाव ! प्रत्येक छात्र—छात्रा को योगासन और चरित्र–निर्माण की शिक्षा अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए।