उदयन देव की मृत्यु और रानी
रानी के जीवन में कई ऐसे अवसर आए जब उसे नियति ने कड़ी मार लगाई। पहले पिता का वध किया गया । उसके पश्चात पति का देहांत हुआ और फिर दूसरे पति उदयन देव से विवाह किया तो अब वह भी साथ छोड़ गया। यह सन 1338 की घटना है।
उस समय तक नाम का मुस्लिम अपनी शक्ति में पर्याप्त वृद्धि कर चुका था। वह रानी के विरुद्ध पहले भी सक्रिय रहा था ।
रानी को पता था कि यदि उसे राजा की मृत्यु का समाचार मिल गया तो वह निश्चित ही रानी को उत्पीड़ित करने के लिए सक्रिय हो जाएगा। इसलिए रानी ने बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए राजा उदयन देव की मृत्यु का समाचार 5 दिन तक गोपनीय रखा। शासन प्रशासन पर अपनी पूरी पकड़ बनाने के पश्चात उसने राजा की मृत्यु का समाचार सार्वजनिक किया। रानी ने भिक्षण भट्ट के माध्यम से अपने आपको कश्मीर की महारानी घोषित कर दिया। जब शाहमीर को इस घटना की जानकारी हुई तो वह रानी को पराजित करने के लिए सक्रिय हो गया। वास्तव में शाहमीर एक जहरीला नाग था जो हमारी ही भूलों का परिणाम था। नागों को दूध पिलाने से उनकी प्रकृति नहीं बदलती है वे जब जहां दिखें तभी कुचल दिए जाने उचित होते हैं।
गद्दार शाहमीर और रानी
शाह मीर ने नाटक करते हुए अपने आप को रोगग्रस्त घोषित कर दिया। जब रानी को यह सूचना मिली तो उसने शिक्षण भट्ट को कुछ सुरक्षाकर्मियों के साथ शाहमीर के घर जाकर उसका हालचाल पूछने के लिए भेजा। शाहमीर ने भिक्षण के सुरक्षाकर्मियों को बाहर रहने के लिए कहकर अकेले शिक्षण भट्ट को ही भीतर बुलाया । जब भिक्षण भट्ट भीतर जाकर उसके पास बैठा तो पहले से बनी हुई योजना के अंतर्गत तलवार से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया गया। शिक्षण भट्ट वहीं ढेर हो गया। जब रानी को यह समाचार मिला तो वह बहुत अधिक दुखी हुई।
इसी समय कश्मीर के एक क्षेत्र में भयानक अकाल पड़ गया। रानी अकाल पीड़ितों की सेवा के लिए वहां पहुंच गई। शाहमीर को जब यह समाचार प्राप्त हुआ कि रानी राजधानी में नहीं है तो उसने राजधानी पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। जब रानी अकाल ग्रस्त क्षेत्र से वापस लौटी तो शाहमीर के कृत्य को देखकर अत्यंत दु:खी हुई। परंतु अब तक शाहमीर बहुत अधिक शक्ति प्राप्त कर चुका था । उसने रानी को गिरफ्तार करने के उद्देश्य जयपुर के किले की ओर प्रस्थान किया। रानी किले के अंदर अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ फंस चुकी थी।
अब रानी ने शाह मीर के पास संदेश भिजवाया कि वह उसे राजगद्दी सौंपने और उसके साथ विवाह करने को तैयार है। इस प्रस्ताव को सुनकर शाहमीर खुश हो गया। रानी उसके पास जाने को तैयार हो गई। रानी ने सुंदर सुंदर परिधान पहनकर अपना पूर्ण श्रंगार किया और एक खंजर अपने वस्त्रों के नीचे छुपा कर उस नीच के कक्ष की ओर चली गई। शाहमीर ने भी उसे अपने शयनकक्ष में ही बुलाया था । रानी आज इस राक्षस को भी यमलोक पहुंचाने की इच्छा से दवे कदमों से उसके शयनकक्ष की ओर जा रही थी । दुर्भाग्य से जब रानी ने अपने खंजर का वार उस राक्षस पर किया तो वह वर उस राक्षस तक नहीं पहुंच सका। शाहमीर ने आगे बढ़कर जैसे ही रानी को अपनी बाहों में लेने का प्रयास किया तो रानी ने अपना खंजर अपनी छाती में भोंककर अपना ही जीवन समाप्त कर लिया। इस प्रकार रानी देश और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान हो गई।
इसके पश्चात शाहमीर कश्मीर के सिंहासन पर बैठकर शासन करने लगा। यहां से कश्मीर के इतिहास की धारा बदल गई। हिंदुत्व के भगवा ध्वज को उतारकर जब शाहमीर ने इस्लामिक धर्मांधता के प्रतीक अपने ध्वज को कश्मीर में फहराया तो मानो अत्याचारों की बाढ़ का रास्ता ही प्रशस्त हो गया।
डॉक्टर राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत