कश्मीरी आतंकवाद अध्याय – 6 कोटा रानी और कश्मीर का इतिहास – 2

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विभिन्नताओं को लेकर इतिहास की मान्यता

रिंचन ने कश्मीर की बेटी कोटारानी के पिता रामचंद्र को समाप्त करके कश्मीर के राज्य पर जब अपना अधिकार कर लिया तो पिता के हत्यारे से विवाह करना कोटारानी के लिए बाध्यता हो गई। उस समय प्रशासन में चारों ओर अराजकता का वातावरण व्याप्त था। चारों ओर विद्रोह की आग जल रही थी। कश्मीर और कश्मीरियत दोनों ही नेतृत्व विहीन हो चुके थे। भारत में बौद्ध धर्म ने जब एक नए मत के रूप में मान्यता प्राप्त की तो उसने अपना नया रास्ता भी बनाना आरंभ किया। भारतीयता और भारतीय राष्ट्रीयता से उसका अब कोई किसी प्रकार का लगाव नहीं था। यह माना जा सकता है कि बौद्ध धर्म वैदिक धर्म का ही एक अंग था और उसे हम आज भी सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। पर इतिहास के संदर्भ में हमें अपनी कुछ दूसरी मान्यताओं पर भी विचार करना चाहिए। जिनमें से एक मान्यता यह भी है कि मतों की भिन्नता अनेकता को जन्म देती है। जो धीरे-धीरे दूरी बनाकर मानव को अपने परिवारों तक से दूर कर देती है। इसलिए इतिहास का प्रयास रहता है कि विभिन्नताएं समाप्त होकर ‘एक’ में समाविष्ट हो जाएं। जब इतिहास के ऐसे प्रयास को कोई इतिहासकार सकारात्मक दृष्टिकोण से नहीं देखता या कोई शासक इतिहास के इस प्रयास के साथ सकारात्मक ऊर्जा के साथ कार्य नहीं करता तो विभाजन और विखंडन बढ़ता जाता है । ऐसी स्थिति में ही कोई शासक , समाज या समाज का कोई व्यक्ति विखंडन और विभाजन के नए-नए तरीके खोजकर देश की एकता और अखंडता को खतरा पैदा करता है।

विदेशी राजकुमार की सोच और कोटारानी

बौद्धमत के लोगों ने अब भारत में कुछ ऐसा ही करना आरंभ कर दिया था। तिब्बती राजकुमार रिंचन भी एक बौद्ध था। उसने अपने आपको भारत के साथ समन्वित न करके अपनी अलग राह बनाने में विश्वास रखा। यद्यपि महारानी कोटा ने इस विदेशी से भी विवाह करके इस बात का प्रयास किया कि किसी प्रकार परिस्थितियां अनुकूल बनी रहें और जनता का किसी प्रकार से अहित न होने पाए । परंतु रानी के ऐसे प्रयास असफल ही रहे। रानी ने प्रशासनिक पुनर्गठन करके जनता के हित में कार्य करने का भी साहस दिखाया, सत्ता को अपने हाथों में लेकर उसने जनहित के अनेक कार्य किए।
रानी से गलती केवल एक ही हुई कि उसने राजकुमार रिंचन को अपने राज्य और देश का शत्रु नहीं माना, वह उसे एक पति के रूप में ही मानती रही।
जबकि सच यह था कि राजकुमार हमारे देश के प्रति यदि शत्रु भाव नहीं तो मित्र भाव भी नहीं रखता था। चाणक्य ने कहा है कि ऋण , शत्रु और रोग को समय रहते ही समूल नष्ट कर देना चाहिए अर्थात इन तीनों के बढ़ने का अवसर देने का अभिप्राय है कि समय निकलने के पश्चात चक्रवृद्धि ब्याज सहित मूल लौटाना पड़ेगा। चाणक्य ने बड़े पते की बात कही है कि जब तक शरीर स्वस्थ और आपके नियंत्रण में है उस समय आत्मसाक्षात्कार के लिए उपाय अवश्य ही कर लेना चाहिए, क्योंकि मृत्यु के पश्चात कोई कुछ भी नहीं कर सकता।
रानी को समझना चाहिए था कि राजकुमार रिंचन किस भाव से देश के भीतर रह रहा था? उसने रानी के परिवार का भी विनाश कर दिया था। जब सत्ता का नियंत्रण रानी के हाथों में पूर्णतया आ गया था तो उस समय उसे अपनी शक्ति और सत्ता का सदुपयोग करना चाहिए था। उपयुक्त समय वही था जब रानी अपने परिवार और देश के इस शत्रु को समाप्त कर अपने सारे प्रतिशोध पूर्ण कर लेती।
महामती चाणक्य ने कहा है कि राजा शक्तिशाली होना चाहिए, तभी राष्ट्र उन्नति करता है। इसका अभिप्राय है कि रानी को बौद्धिक चातुर्य और कूटनीतिक उत्कृष्टता का परिचय देते हुए अपनी वास्तविक शक्ति का संज्ञान लेना चाहिए था । चाणक्य के अनुसार राजा की शक्ति के 3 प्रमुख स्रोत हैं- मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक। इन तीनों प्रकार की शक्तियों से संपन्न कोई भी शासक कभी अपनी दुर्बलता का संकेत तक नहीं दे सकता। मानसिक शक्ति उसे सही निर्णय के लिए प्रेरित करती है, उसकी शारीरिक शक्ति उसे शत्रु के समक्ष युद्धक्षेत्र में बलशाली सिद्ध करती है। इसी प्रकार आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न कोई भी राजा आत्मिक धरातल पर अपने आपको अन्य सभी से मजबूत और अनंत ऊर्जावान अनुभव करता है । अपनी इसी आत्मिक ऊर्जा से वह प्रजाहित के कार्य करता रहता है। अनेक शत्रुओं के बीच रहकर भी वह अपने आपको कभी अकेला अनुभव नहीं करता । कमजोर और विलासी प्रवृत्ति के राजा शक्तिशाली राजा से डरते हैं।

डॉक्टर राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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