कश्मीरी आतंकवाद अध्याय – 6 कोटा रानी और कश्मीर का इतिहास – 1
भारत का इतिहास विश्व में सर्वाधिक प्राचीन है। अपनी प्राचीनता के कारण इसने अनेक उतार-चढ़ाव भी देखे हैं। मानव के उत्थान – पतन, अनेक मत – मतांतरों के प्रचार – प्रसार , अनेक रक्तिम संघर्ष और राजनीति के अनेक हेरफेरों से निकली भारतीय इतिहास की सरिता अपने अंक में अनेक अनुभवों को समाए हुए है।
सत्ता छल प्रपंचों का खेल होती है। राजनीति सत्ता को प्राप्त करने के लिए लालायित रहती है। कभी-कभी सत्ता का दूध पीकर राजनीति पथभ्रष्ट होती है तो कभी राजनीति की लचीली और कमजोर बातों के चलते सत्ता अपना वैभव खो देती है। कई बार यह भी पता नहीं पड़ पाता कि राजनीति सत्ता के लिए है या सत्ता राजनीति के लिए है ? जब दोनों व्यक्ति के रक्त से लाल होती हैं तो उस समय अच्छे-अच्छे लोगों का मस्तिष्क डोल जाते हैं जो यह अनुमान नहीं लगा पाते कि इन दोनों में से कौन सी ठीक है और कौन सी गलत है? वह नहीं समझ पाते कि सत्ता राजनीति के लिए है या राजनीति सत्ता के लिए है ? अपने मूल स्वभाव में सत्ता और राजनीति दोनों ही आदमी के खून से हवन करने की आदी हैं। जब सत्ता स्वार्थ में डूब जाती है और राजनीति पथभ्रष्ट हो जाती है तो वे अपने धर्म से पतित हो जाती हैं।
सार्वजनिक जीवन की शुचिता
व्यक्ति जब समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित होकर काम करने के लिए रणक्षेत्र में उतरता है तो उसका अपना कोई स्वार्थ नहीं होता और जब तक उसका अपना स्वार्थ नहीं होता तब तक उसका सामाजिक राष्ट्रीय जीवन बहुत ही पवित्र और अनुकरणीय होता है। जैसे ही उस पर अपने व्यक्तिगत हित और स्वार्थ हावी होते हैं वैसे ही उसका जीवन पतित और पथभ्रष्ट हो जाता है। इतिहास में ऐसे अनेक लोग हुए हैं जिन्होंने सामाजिक और राष्ट्रीय हितों के दृष्टिगत कार्य न करके अपने व्यक्तिगत हितों को सर्वोच्चता और प्राथमिकता देते हुए कार्य किया है। जहां-जहां ऐसे लोगों का वर्णन इतिहास में हमें मिलता है वहीं वहीं हम इतिहास को ऐसे दुर्बल दौर से गुजरता हुआ देखते हैं जो हमारे लिए किसी भी दृष्टिकोण से अनुकरणीय नहीं हो सकता।
तुर्कों – मुगलों और अंग्रेजों का इतिहास सत्ता स्वार्थ में डूबे लोगों का इतिहास है। इन्होंने आदमी के खून से हवन कर करके राजनीति को पथभ्रष्ट किया। वास्तव में ऐसे लोगों की राजनीति ही धर्मनिरपेक्ष कही जा सकती है। क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का अभिप्राय धर्म से अर्थात पवित्र कर्तव्य से विमुख हो जाना है । इस प्रकार की कर्तव्य विमुख राजनीति को अपनाकर उन्होंने इतिहास को कलंकित किया। क्योंकि खून बहाना राजनीति का उद्देश्य नहीं है, बल्कि बहते हुए खून को रोकना राजनीति का उद्देश्य है, धर्म है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीति एक समस्या नहीं है, एक समाधान है। एक बीमारी नहीं है बल्कि एक उपचार है। राजनीति ना तो घाव देती है और ना ही घावों को कुरेदती है बल्कि यह घावों का उपचार करती है। यह सेवा करती है और सेवा के माध्यम से नया सृजन करती है। सार्वजनिक जीवन की शुचिता तभी तक सुरक्षित रह सकती है जब तक नए सृजन की पवित्र भावना से प्रेरित होकर लोग इस ओर कदम बढ़ाते हैं।
जब-जब राजनीति एक समस्या बन जाए या एक बीमारी बन जाए तब – तब समझ लो कि वह हमारे लिए हेय हो चुकी है। उस राजनीति का महिमामंडन करना उचित नहीं है, क्योंकि मानवता दानवता के पक्ष पोषण से कभी भी पुष्पित और पल्लवित नहीं हो सकती। इतिहास के प्रत्येक गंभीर विद्यार्थी को इतिहास को इसी दृष्टिकोण से पढ़ना चाहिए।
कोई भी विदेशी भारत-भक्त नहीं हो सकता
हम पिछले अध्याय में बता रहे थे कि तिब्बत का राजकुमार रिंचन भारत में आकर किस प्रकार सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने में सफल हो गया था ? इस विदेशी के आने से भारतीय राजनीति सत्ता स्वार्थ में जा अटकी। जिसने अपने निहित स्वार्थों का खेल खेलते हुए राजनीति को खूनी बनाने में योगदान दिया। वैसे भी इसका उद्देश्य किसी भी दृष्टिकोण से भारत और भारतीयता से प्रेम करना नहीं था।
राजनीति के बारे में हमें यह सदा ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी विदेशी व्यक्ति को कभी अपना शासक स्वीकार नहीं करना चाहिए। क्योंकि वह शासक के गुणों से सर्वथा हीन होता है। इसका कारण केवल एक है कि उसका हमारे देश और हमारी संस्कृति से कोई लगाव नहीं होता। वह अपने देश के विचार , अपने देश की सोच, अपने देश का दृष्टिकोण, अपने देश की संस्कृति लेकर आता है । जिनसे आप का टकराव होना निश्चित है । तुर्क ,मुगल और अंग्रेज भारतवर्ष में इसी दृष्टिकोण के साथ आए थे। वे कभी भी भारतवर्ष को अपना देश नहीं मानते थे। इतना ही नहीं, उनके वैचारिक उत्तराधिकारी भी आज तक भारत को अपना देश नहीं मान रहे हैं । यद्यपि भारतवर्ष में शासन ने अपने आपको धर्मनिरपेक्ष घोषित कर इनको साथ लगाने का भरसक प्रयास किया है, परंतु उनकी सोच में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
यह आवश्यक नहीं कि किसी भी विदेशी की सोच, दृष्टि, दृष्टिकोण और संस्कृति आपके अनुकूल हो ? यह तब और भी विचारणीय हो जाता है कि जब उसकी तथाकथित ऐसी सोच, ऐसा दृष्टिकोण और संस्कृति एकांगी हो, एकपक्षीय हो या फिर आपके हितों को चोट पहुंचाने का काम करने वाली अर्थात टकराव करने वाली हो।
जिन विदेशी राक्षस शासकों के ऐसे दृष्टिकोण को भी भारत के अनुकूल बनाने का प्रयास कुछ इतिहासकारों ने किया है उन्होंने इतिहास के साथ न्याय नहीं किया है। उन्होंने मानव के स्वभाव की अवहेलना करते हुए घटनाओं को अतिरंजित तो किया है पर मानवीय स्वभाव की कमजोरियों को प्रकट नहीं किया है।
डॉक्टर राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत