अब दोनों देश थल—सीमा समझौते पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर तो करेंगे ही, तीस्ता नदी के पानी का विवाद भी शायद हल हो जाए। मुझे याद है जब प्रधानमंत्री हरदनहल्ली देवगौड़ा ढाका गए थे, तब उनका कैसा भव्य स्वागत हुआ था। मुझे कई प्रधानमंत्रियों के साथ विदेश जाने का मौका मिला है लेकिन मैंने विदेशियों का इतना उत्साह कभी नहीं देखा। इसका कारण था—फरक्का जल–समझौता। इस समझौते की नींव नरसिंहराव जी के दौर में रखी गई थी। बांग्ला राजदूत फारुक सुभान और मैंने काफी प्रयत्न किया था। यदि इसी तरह तीस्ता का पानी भी बांग्लादेशी लोगों को यथेष्ट मात्रा में मिलने लगे तो यह घटना सारे दक्षिण एशिया में भारत की लोकप्रियता में चार चाँद लगाएगी। हमारे नए नेताओं को एक मूल बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि जब तक पड़ौसी देशों के दिलों पर भारत का सिक्का नहीं जमेगा, वह महाशक्ति कभी नहीं बन सकता।
अपनी ढाका–यात्रा के दौरान मोदी चाहें तो दोनों देशों के बीच सड़क—यातायात को बढाने का भी समझौता कर सकते हैं। फ़रवरी में ममता जब ढाका गईं थीं तो उन्होंने प्रधानमन्त्री हसीना वाजिद से इस संबंध में बात भी की थी। वे चाहती थीं कि कोलकाता से अगरतला तक ढाका होते हुए रास्ता खुल जाए तो बहुत सुविधा हो जाएगी। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कोलकाता—अगरतला बस सेवा चालू करने की भी घोषणा की है। मोदी को चाहिए कि दोनों बांग्ला महिला नेताओं को एक—दूसरे से घनिष्ट संपर्क बनाने दें ताकि वे सभी पड़ौसियों के लिए नमूने की तरह पेश किए जा सकें। बिहार नेपाल—भूटान से, तमिलनाडु श्रीलंका—मालदीव से, पंजाब पाकिस्तान से और पश्चिम बंगाल बांग्लादेश और बर्मा से जुड़े और लद्दाख—अरुणाचल चीन को अपनी तरफ खींचे तो हमारी विदेश नीति को एक नई दिशा मिल सकती है।