सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आधारशिला पर खड़ा होता भारत
“राष्ट्र सर्वोपरि” यह कहते नहीं बल्कि उसे जीते है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। पिछले कुछ दशकों में भारतीय जनमानस का मनोबल जिस प्रकार से टूटा था और अब मानों उसमें उड़ान का एक नया पंख लग गया है और अपने देश ही नहीं दुनिया भर में भारत का सीना चौड़ा करके शक्ति संपन्न राष्ट्रों एवं पड़ोसी देशों से कन्धे से कन्धा मिलाकर कदमताल करने लगा है भारत।
किसी भी देश,समाज और राष्ट्र के विकास की प्रक्रिया के आधारभूत तत्व मानवता, राष्ट्र,समुदाय,परिवार और व्यक्ति ही केंद्र में होता है। जिससे वहां के लोग आपसी भाईचारे से अपनी विकास की नैया को आगे बढ़ाते हैं। अपने एक साल के कार्यकाल में मोदी इसी मूल तत्व के साथ आगे बढ़ रहे हैं। एक वर्ष पहले जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत से केंद्र में सरकार बनाई तब इनके सामने तमाम चुनौतियां खड़ी थीं और जन अपेक्षाएं मोदी के सामने सर -माथे पे। ऐसे में प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिपरिषद के सहयोगियों के लिए चुनौतियों का सामना करते हुए विकास के पहिये को आगे बढ़ाना आसान राह नही थी। परन्तु मात्र 365 दिन में ही मोदी के कार्ययोजना का आधार बताता है कि उनके पास दूर दृष्टि और स्पष्ट दृष्टि है। तभी तो पिछले एक साल से समाचार- पत्रों में भ्रष्टाचार,महंगाई ,सरकार की ढुलमुल निर्णय,मंत्रियों का मनमर्जी ,भाई -भतीजावाद ,परिवारवाद अब नहीं दिखता।
किसी भी सरकार और देश के लिए उसकी छवि महत्त्वपूर्ण होती है मोदी इस बात को बखूबी समझते हैं। इसलिए दुनिया भर के तमाम देशो में जाकर भारत को याचक नहीं बल्कि शक्तिशाली और समर्थ देश के नाते स्थापित कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी जिस पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में आज प्रधानमंत्री बने हैं, उस भारतीय जनता पार्टी का मूल विचार एकात्म मानव दर्शन एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है और दीनदयाल उपाध्याय भी इसी विचार को सत्ता द्वारा समाज के प्रत्येक तबके तक पहुचाने की बात करते थे। समाज के सामने उपस्थित चुनौतियों के समाधान के लिए सरकार अलग-अलग समाधान खोजने की जगह एक योजनाबद्ध तरीके से काम करे। लोगों के जीवन की गुणवत्ता,आधारभूत संरचना और सेवाओं में सुधार सामूहिक रूप से हो। प्रधानमंत्री इसी योजना के साथ गरीबों ,वंचितों और पीछे छूट गए लोगों के लिए प्रतिबद्व है और वे अंत्योदय के सिद्धांत पर कार्य करते दिख रहे हैं।
भारत में आजादी के बाद शब्दों की विलासिता का जबर्दस्त दौर कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने चलाया। इन्होंने देश में तत्कालीन सत्ताधारियों को छल-कपट से अपने घेरे में ले लिया। परिणामस्वरूप राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत जीवनशैली का मार्ग निरन्तर अवरूद्ध होता गया। अब अवरूद्ध मार्ग खुलने लगा है। संस्कृति से उपजा संस्कार बोलने लगा है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का आधार हमारी युगों पुरानी संस्कृति है, जो सदियों से चली आ रही है। यह सांस्कृतिक एकता है, जो किसी भी बन्धन से अधिक मजबूत और टिकाऊ है, जो किसी देश में लोगों को एकजुट करने में सक्षम है और जिसमें इस देश को एक राष्ट्र के सूत्र में बांध रखा है। भारत की संस्कृति भारत की धरती की उपज है। उसकी चेतना की देन है। साधना की पूंजी है। उसकी एकता, एकात्मता, विशालता, समन्वय धरती से निकला है। भारत में आसेतु-हिमालय एक संस्कृति है । उससे भारतीय राष्ट्र जीवन प्रेरित हुआ है। अनादिकाल से यहां का समाज अनेक सम्प्रदायों को उत्पन्न करके भी एक ही मूल से जीवन रस ग्रहण करता आया है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे को नरेंद्र मोदी इसी रूप में पूरा कर रहे है।
पिछले पांच दशकों में भारत के राजनीतिक नेत्तृत्व के पास दुनिया में अपना सामर्थ्य बताने के लिए कुछ भी नही था। सच तो ये है की इन राजनीतिक दुष्चक्रों के कारण हम अपनी अहिंसा को अपनी कायरता की ढ़ाल बनाकर जी रहे थे। आज पहली बार विश्व की महाशक्तियों ने समझा है कि भारत की अहिंसा इसके सामर्थ्य से निकलती है। जो भारत को 60 वर्षो में पहली बार मिली है। सवा सौ करोड़ भारतीयों के स्वाभिमान का भारत अब खड़ा हो चुका है और यह आत्मविश्वास ही सबसे बड़ी पूंजी है। तभी तो इस पूंजी का शंखनाद न्यूयार्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन से लेकर सिडनी ,विजिंग और काठमांडू तक अपने समर्थ भारत की कहानी से गूंज रहा है। 365 दिन के काम का आधार मजबूत इरादों को पूरा करता दिख रहा है। नरेंद्र मोदी को अपने इरादे मजबूत कर के भारत के लिए और परिश्रम करने की जरुरत है।