वह भी सिर्फ एकपात्रीय नाटक की तरह ! यदि नहीं तो फिर साल भर काट दिया और अभी तक प्रधानमन्त्री ने कोई पत्रकार परिषद् क्यों नहीं की? मंदिर और धारा 370 के सवाल पर राजनाथ सिंह अपने अध्यक्ष जी अमित भाई की तरह हवाई उड़ानें नहीं भर रहे थे। अमित शाह कहते हैं कि जब जनता हमें 370 सीटें देंगी, तब हम मंदिर बना देंगे। भला, तुम्हे 370 क्यों चाहिए? 272 का बहुमत काफी क्यों नहीं है? अगर तुम में दम नहीं है तो तुम 540 सीटें मिलने पर भी सिर्फ गाल बजाते रह जाओगे। फिजूल की लंतरानियां करने की बजाय राजनाथसिंह ने ठीक कहा कि मंदिर और धारा 370 हमारे मुद्दे हैं लेकिन इस वक्त सरकार की प्राथमिकता विकास है।
उनकी यह बात भी तर्कसंगत लगती है कि अभी मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। यदि वह भी इसे हल नहीं कर पाया तो इसे हम बातचीत से हल करेंगे। जहाँ तक धारा 370 का प्रश्न है, कश्मीर में अभी-अभी गठबंधन सरकार बनी है। यदि वह सफलतापूर्वक कार्य करती रही तो धारा 370 अपने आप गल जाएगी। यों भी व्यवहारिक रूप से उसका होना न होना एक बराबर है।
राजनाथ सिंह से पत्रकारों ने कुछ अटपटे सवाल भी पूछे लेकिन वे घबराये नहीं। मंजे हुए राजनीतिज्ञ की तरह उन्होंने सधे हुए जवाब दिए। उन्होंने स्वीकार किया कि वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक हैं और सहिष्णु भारत के पक्षधर हैं। ऐसे भारत के जिसमें इस्लाम के 72 संप्रदाय और सभी ईसाई फिरके आनंदपूर्वक रह रहे हैं। उन्होंने इसे भी नकारा कि वे उपराज्यपाल को ‘आप’ सरकार के विरुद्ध इस्तेमाल कर रहे हैं। वे तो यह चाहते हैं कि सभी सरकारें संविधान के दायरे में रहकर काम करें। उन्होंने प्रधानमन्त्री मोदी के मंत्रियों की निर्बलता पर किए गए व्यंगात्मक सवाल को भी हवा में उड़ा दिया। कहा कि सब सबल हैं। कोई निर्बल नहीं। इसके अलावा वे कह भी क्या सकते थे? सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि कोई तो बोला। नीरसता टूटी।
ऊब छूटी।