गतांक से आगे…
खोजों के मुकदमे में इनके धर्म- प्रचार का जो ढंग जजों ने वर्णन किया है, वही तरीका इस विद्यालय की इस शिक्षाप्रणाली में पाया जाता है और इनका वही ढंग हम यहां भारत में भी देख रहे हैं। इन्होंने इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए जो ग्रन्थरचना की है और हिन्दू बनकर जिस प्रकार हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रपञ्च किया है, उसका हम यहाँ थोड़ा सा नमूना दिखाते हैं। इनके एक ग्रन्थ में आगाखान आदि गुरुओं के लिए मुहमदशाह ने लिखा है कि –
जीरे कृष्ण पहेरतां पीताम्बर धोती।
जीरे आज कलि में कभी न टोपी॥
जीरे कृष्ण चलातां टिलडी काढ़ी।
जीरे आज कलि में बढ़ाई डाढ़ी॥
अर्थात् जहां कृष्ण पीताम्बर पहिनते थे, वहां आज कलियुग में गुरुजी टोपी पहिनते हैं और जहां कृष्ण टिलड़ी संवारते थे, वहां आज कलियुग में गुरुजी डाढ़ी रखते हैं। इसी तरह हजरत मुहम्मद के लिए लिखा है कि –
जीरे भाई रे आज कलयुग माँ ईश्वर आदम नाम भणाया।
गुरु ब्रह्मा ने रची मुहम्मद कहाव्या हो जीरे भाई॥
जीरे भाई रे पुरुख उत्तम विष्णुजी अलीरूप नाम भणाया।
ते तो नाम रखो सरे धायां हो जीरे भाई॥
अर्थात् कलियुग में परमेश्वर ने अपना नाम आदम रक्खा, ब्रह्मा मुहम्मद कहलाये और विष्णु अली नाम से प्रसिद्ध हुए। इनके अतिरिक्त पीर सदरदीन को हिन्दुओं का दसवां अवतार बताया है। एक पद्य में लिखा है कि –
कलजुग मधे अनंत कोडी पीर सहन् शायें वर आलिया।
अवतार दशमो दिलमां धरी घट कलशरूपे सही थापिया॥
अर्थात् कलियुग में दसवां अवतार पीर सदरदीन ही है, जो घट,कलश आदि रखवाते हैं। इसके आगे फिर लिखा है कि –
येजी अलख पुरख शाजी वेजो दातार,
अलख पुरख शासरणी सतार,
श्रेवी श्री इसलामशा दशमो अवतार ।
अर्थात् ये दशवें और इसलाम के बादशाह पीर सदरदीन ही अलखपुरुष हैं। इसके आगे पश्चिम दिशा की प्रशंसा में लिखा है कि –
कृता जुगे द्वार उत्तर मुखे हुआ त्रेता में मुख पूर्व रचायां।
द्वापर दखण आज कलि पच्छिमे मेहदीशा नाम भणायां।
अर्थात् सतयुग में उत्तर मुख का द्वार, त्रेता में पूर्व मुख का, द्वापर में दक्षिण मुख का और आज कलियुग में पश्चिम का द्वार हुआ, जहां मेहदीशाह हुए। इसके आगे अपने घट पाट का वर्णन करते हुए लिखा है कि –
आज कलजुग मधे साहेब नं एक रूप,
पच्छम दिशा वार कोडी सु पीर सदरदीन।
घट पाट स्थापतां, माटीना घट माटीना पाट,
अजा जाग करतबा। अजानु मूल ते सेजादान देतवा।
एशो फलेथी वार कोडी स पीर सदरदीन सीजंता।
अमीर अमरापुर पोंचता।
अर्थात् आज कलियुग में साहब का एक ही रूप है। पश्चिम दिशा में माटी का घट और माटी का पाट स्थापित करके अमीर उमरा सब पीर सदरदिन की सेवा करके अमरपुरी को जाते हैं। इसके आगे दशों अवतारों का वर्णन इस प्रकार है कि –
मछ कोरम वाराह पांई
नरसिंह रूपे स्वामीजी विष्णु भणो
वामन परसराम सोई अवतार्यो
श्री रामें लंकागढ़ नहियो
कानजी बुध दखण अवतर्यो अढ़ार खूणी शानर देर्यो
पाछेमें पात्र निकलंकी नारायण
धेलम देश में शाजो स्थान रच्यो
कीड़ी पंज, सत,नव, चारों अनत ही नारींधो
श्री इसलामशा जो नाम भणांया
अर्थात् विष्णु ने मच्छ, कूर्म, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम आदि अवतार धारण किये। रामचंद्र ने लंका में चढ़ाई की। श्री कृष्ण और बुद्ध भी हुए। इनके बाद सबसे पीछे धेलमदेश में निष्कलंकी नारायण ने अवतार धारण किया। वही श्री इसलामशाह पीर सदरदिन है।
क्रमशः
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।
2 replies on “वैदिक सम्पत्ती तृतीय – खण्ड अध्याय – मुसलमान और आर्यशास्त्र”
यह पूरी सामग्री मेरे लिए नयी है। अतीत में कितना षड्यंत्र हुआ है,हमारे पुरखों को दिग्भ्रमित करने के लिए! हैरान हूं।
मान्यवर सचमुच हमारे इतिहास के साथ बहुत अधिक छेड़छाड़ की गई है जिससे हमारे वीर योद्धाओं का इतिहास छुपकर और दबकर रह गया