‘वनस्पति, हानिकारक कीटाणु, जीवाणु इन सब पर यज्ञ के स्थूल स्तर के परिणामों का अध्ययन इससे पूर्व अनेक बार किया गया है; परंतु ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ द्वारा किए आध्यात्मिक शोधकार्य से यह पाया गया कि मानव, प्राणी, वनस्पति तथा वातावरण पर भी यज्ञ का सकारात्मक परिणाम होता है तथा इस कारण समाज कल्याण हेतु बडी मात्रा में सकारात्मक ऊर्जा की निर्मिति होती है, ऐसा प्रतिपादन ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के श्री. शॉन क्लार्क ने किया । वे १४ वीं ‘इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ सोशल फिलासॉफी कॉन्फरन्स’ तथा ८ वीं ‘इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ योगा एंड स्पिरिच्युअल सायन्स कॉन्फ्रेंस’ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक परिषद में बोल रहे थे । इस परिषद का आयोजन हुबळी, कर्नाटक के ‘ईश्वरीय विश्वविद्यालय’ ने किया था ।
श्री. शॉन क्लार्क ने इस समय ‘यज्ञ वातावरण की आध्यात्मिक शुद्धि करते हैं ? यदि करते हैं, तो कितनी ?’, यह शोधनिबंध प्रस्तुत किया । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय के संस्थापक परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी इस शोधनिबंध के लेखक हैं और श्री. क्लार्क सहलेखक हैं । महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से वैज्ञानिक परिषदों में किया गया यह 92 वां प्रस्तुतीकरण था । श्री. क्लार्क ने ‘आध्यात्मिक शोधकेंद्र’ में जनवरी 2020 में किए गए विविध 6 यज्ञों के आध्यात्मिक (स्पंदनों के) स्तर पर हुए परिणामों का अध्ययन किया । इसके लिए यज्ञ के पूर्व तथा यज्ञ के उपरांत किए विविध परीक्षणों के समय विस्तार से जानकारी दी ।
पहले परीक्षण में यज्ञस्थल से 16 कि.मी. दूर रहनेवाले साधना करनेवाले तथा साधना न करनेवाले पडोस के घर की मिट्टी, पानी और हवा के नमूने लिए । ‘युनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ (यू.ए.एस.) उपकरण की सहायता से इन नमूनों के परीक्षण किए गए । यज्ञ के पूर्व साधना न करनेवालों के घर से लिए तीनों नमूनों में नकारात्मक ऊर्जा बडी मात्रा में थी । सकारात्मक ऊर्जा नहीं थी । 3 यज्ञ होने के उपरांत यह ध्यान में आया कि साधना करनेवालों के घर की मिट्टी, पानी और हवा की सकारात्मकता बहुत बढ गई थी । इसके विपरीत साधना न करनेवालों के घर की मिट्टी, पानी और हवा में थोडी सकारात्मकता बढी; परंतु मिट्टी और पानी के नमूनों की तुलना में हवा के नमूनों में यज्ञ से प्रक्षेपित सकारात्मकता ग्रहण करने की क्षमता अधिक थी, यह विशेष रूप से ध्यान में आया । साधना करनेवालों के घर की हवा के नमूनों में सकारात्मकता का प्रभामंडल (यज्ञ के पूर्व 0.54 मीटर) बढकर 15.06 मीटर हो गया । यह बढोतरी 2688 प्रतिशत थी ।
मुंबई, वाराणसी तथा जर्मनी के ‘आध्यात्मिक शोध केंद्रों’ के यज्ञ पूर्व तथा यज्ञोपरांत के छायाचित्रों का इसी प्रकार अध्ययन करने पर यह पाया गया कि प्रत्येक यज्ञ के उपरांत, छायाचित्रों की सकारात्मकता बढती गई, जबकि नकारात्मकता घटती गई । जर्मनी स्थित केंद्र के छायाचित्र की सकारात्मकता में सर्वाधिक 1330 प्रतिशत की बढोतरी पाई गई । इस शोधकार्य से यह स्पष्ट होता है कि यज्ञ का लाभ लेने में ‘दूरी’ कोई सीमा नहीं है ।
श्री. क्लार्क ने आगे कहा, यह एक भ्रांति है कि यज्ञों के कारण वातावरण प्रदूषित होता है । प्रत्यक्ष में यज्ञ में आध्यात्मिक उपचार करने की क्षमता है । इससे वातावरण की स्थूल तथा सूक्ष्म से आध्यात्मिक स्तर पर शुद्धि होती है । साथ ही यदि हम साधना करेंगे, तो यज्ञों की सकारात्मकता ग्रहण करने की हमारी क्षमता बढती है । साथ ही इससे मिट्टी, पानी और हवा भी सकारात्मकता से संचारित होते हैं, ऐसा पाया गया । इससे यही स्पष्ट होता है कि यज्ञ की आध्यात्मिक शक्ति संसार की आध्यात्मिक सकारात्मकता बढाने का एक शक्तिशाली माध्यम है । समापन करते हुए श्री. क्लार्क ने कहा, आज अखिल विश्व में रज-तम बहुत बढ गया है, यह ‘आध्यात्मिक प्रदूषण’ है । इसका संसार पर सूक्ष्म स्तर पर प्रतिकूल परिणाम होता है । परिणामतः युद्ध, प्राकृतिक आपदाएं जैसे संकट आते हैं । यज्ञ आध्यात्मिक प्रदूषण घटाने का अद्वितीय साधन है; परंतु यज्ञ की सकारात्मकता ग्रहण करने तथा उसे अबाधित रखने के लिए समाज द्वारा सात्त्विक जीवनशैली का अंगीकार एवं साधना करना महत्त्वपूर्ण है ।
आपका नम्र,
श्री. रुपेश लक्ष्मण रेडकर,
शोधकार्य विभाग, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय,
(संपर्क : 95615 74972)
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