कात्यायनी उप्रेती
भारत के शैक्षणिक संस्थानों को अब विदेशी संस्थानों के साथ जॉइंट डिग्री, डुअल डिग्री और ट्वाइनिंग प्रोग्राम (twining) शुरू करने का मौका मिलेगा। इस फैसले के साथ यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमिशन (यूजीसी) ने भारत और विदेशी संस्थानों के बीच अकादमिक साझेदारी को आसान किया है। अब भारत के उच्च शिक्षा संस्थान विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी के लिए आजाद होंगे। इसके अलावा स्टूडेंट्स के विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ने के खर्चे में भी कुछ कमी आएगी।
हालांकि, हर विश्वविद्यालय इस सुविधा का फायदा नहीं उठा पाएगा। वे ही उच्च शिक्षा संस्थान इन प्रोग्राम को स्टूडेंट्स के लिए पेश कर सकेंगे, जो QS वर्ल्ड रैंकिंग और टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग में टॉप 1000 में शामिल हों। इसके अलावा, वे संस्थान भी इन प्रोग्राम को शुरू कर सकेंगे जिनका NAAC (नैशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल) स्कोर 4 में से कम से कम 3.1 हो या वे नैशनल इंस्टिट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) रैंकिंग में टॉप 100 में शामिल हों।
यूजीसी ने मौजूदा रेग्युलेशंस में संशोधन कर विदेशी और भारत के शिक्षा संस्थानों की साझेदारी की राह आसान बनाई है। यूजीसी का कहना है कि इससे शिक्षा का वैश्वीकरण होगा। भारत के स्टूडेंट्स को क्वॉलिटी एजुकेशन मिलेगी और कम कीमत में हर तबके के स्टूडेंट्स को ग्लोबल शिक्षा पाने का मौका मिलेगा।
देशभर के संस्थान तीन तरह के प्रोग्राम ऑफर कर सकेंगे- ट्वाइनिंग प्रोग्राम, जॉइंट डिग्री प्रोग्राम और डुअल डिग्री प्रोग्राम। ये सुविधा सिर्फ फिजिकल मोड की डिग्री के लिए मिलेगी, स्टूडेंट्स को विदेशी संस्थान से 30 प्रतिशत क्रेडिट स्कोर हासिल करना होगा। इन मानदंडों पर खरे उतरने वाले संस्थानों को अलग से मान्यता या स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं है। अब तक संस्थानों को एमओयू साइन करने के लिए यूजीसी से मंजूरी लेनी पड़ती थी। यह लंबी प्रॉसेस थी। हालांकि, प्रफेशनल प्रोग्राम जैसे इंजीनियरिंग, मेडिकल वगैरह के लिए संबंधित बॉडी से मंजूरी अब भी जरूरी होगी।
यूजीसी के नए रेग्युलेशंस के तहत, डुअल डिग्री के लिए प्रोग्राम का करिकुलम भारत और विदेशी संस्थान मिलकर तैयार करेंगे। स्टूडेंट को 30 प्रतिशत कोर्स क्रेडिट विदेशी संस्थान से पूरा करना होगा, डिग्री भारत और विदेश का संस्थान जारी करेगा। इसमें दोनों संस्थानों के क्रेडिट भी लिखे होंगे। जॉइंट डिग्री के लिए दोनों पार्टनर संस्थान एमओयू साइन करेंगे, जिसके तहत इंडियन स्टूडेंट्स को विदेशी विश्वविद्यालय से 30 प्रतिशत से ज्यादा कोर्स क्रेडिट पूरा करना होगा। डिग्री भारत का संस्थान देगा। अगर कोई भारतीय संस्थान किसी विदेशी शिक्षा संस्थान के साथ ट्वाइनिंग प्रोग्राम शुरू करना चाहता है, तो स्टूडेंट को कोर्स क्रेडिट का 30 प्रतिशत विदेशी संस्थान से पूरा करना होगा। यही विदेशी स्टूडेंट्स के लिए भी लागू होगा। विदेशी शिक्षा संस्थान में हासिल किए गए क्रेडिट भारतीय संस्थान से दी गई डिग्री/डिप्लोमा में गिने जाएंगे।
नया ड्राफ्ट (भारत और विदेश के उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच जॉइंट डिग्री, डुअल डिग्री और ट्वाइनिंग प्रोग्राम को लेकर शैक्षणिक सहयोग) यूजीसी ने पास कर दिया है। इससे स्टूडेंट्स को कुछ फायदे जरूर होंगे। अकादमिक उत्कृष्टता के लिए प्रतिबद्ध संस्थान वैश्विक विशेषज्ञता के साथ स्टूडेंट्स के लिए प्रोग्राम डिजाइन करेंगे। विदेश में पढ़ाई के लिए उत्सुक स्टूडेंट्स को भी विकल्प मिलेंगे। यह तय है कि प्राइवेट और डीम्ड विश्वविद्यालय यूजीसी के इस फैसले का फायदा उठाएंगे। वे कई ऐसे कोर्स डिजाइन करेंगे और स्टूडेंट्स को भी अपनी ओर खींचेंगे।
इस पूरी कवायद के पीछे यूजीसी अपना मकसद बताता है कि उसे स्टूडेंट्स को क्वॉलिटी एजुकेशन देनी है। क्वॉलिटी एजुकेशन स्टूडेंट्स को तभी मिल पाएगी, जब कड़ी निगरानी हो। यह जरूरी है, ताकि स्टूडेंट्स जॉइंट, डुअल डिग्री और ट्वाइनिंग प्रोग्राम के चक्कर में ऐसे संस्थानों के जाल में ना फंसें, जो इस प्रोग्राम के तहत सिर्फ पैसा कमाना चाहते हैं।
अब यह तो वक्त बताएगा कि इस योजना के आने के बाद भारतीय संस्थानों के साथ साझेदारी के लिए विदेशी संस्थान कितनी दिलचस्पी दिखाएंगे और वक्त कितना लगेगा। खासतौर पर विदेश के कितने टॉप और क्वॉलिटी संस्थान भारत के संस्थानों के साथ टाई-अप करना पसंद करेंगे। इसके अलावा, यह देखना भी दिलचस्प होगा कि क्या विदेश में पढ़ने की इच्छा रखने वाले स्टूडेंट्स इन प्रोग्रामों में दिलचस्पी लेते हैं और हर साल बाहर जाने वाले स्टूडेंट्स की संख्या में कमी आती है।
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