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कविता

गीता मेरे गीतों में : 15       जो गफलत में जीवन बिताते रहे

तर्ज :- तुम अगर साथ देने का वादा करो .. 

अज्ञान – अविद्या  में  भटके  हुए
जो गफलत में जीवन बिताते रहे।
जानकर भी ना भज सके ईश को
निंदा चुगली की  बातें  बनाते रहे।। टेक।।

वेद  आदि  ग्रंथों  की  मानी  नहीं
मनमानी   ही  बातें  बनाते   रहे।
राक्षस की वृत्ति  को धारण  किया
दिव्य – भावों से  दूरी- बनाते रहे।।
गंदे – गीतों को भावों में लाते रहे पत्थर को यूं ही नहलाते रहे..
अज्ञान-अविद्या में भटके हुए जो गफलत में ……

सब जगह सब में देखा नहीं ईश को
गफलत की आंधी  चली इस  तरह।
नित्य गिरता गया और  घिरता गया
समझा नहीं जा  रहा  किस  तरफ ?
जिंदगी की डगर,है बड़ी संकरी,पौध झाड़ी की इसमें लगाते रहे.. .
अज्ञान-अविद्या में भटके हुए जो गफलत में ……

जो   ईश्वर  की  आज्ञा  के  उल्टा  चले
और आकर जगत में ना सुमिरण  करे।
नष्ट  करता  वह   अपने   जगदीश  को
जगदीश्वर  भी  उसका समापन  करे।।
विषय भोगों से बचकर जो भी चले योगी वही जन कहाते रहे…
अज्ञान-अविद्या में भटके हुए जो गफलत में ……

मीठा  संगीत  सुनने  से   वंचित   रहा,
और  भोजन  भी  स्वादु   कराया  नहीं।
अमृत   सागर  में  बैठा   रहा   आत्मा,
कभी वेदों का अमृत   पिलाया  नहीं।।
‘राकेश’  यूँ ही  चलता रहा,  साथ में जीवन को पापी बनाते रहे..
अज्ञान-अविद्या में भटके हुए जो गफलत में ……

( ‘गीता मेरे गीतों में’ नमक मेरी नई पुस्तक से)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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