3 दिन पहले बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई ओक्या परिषद के चटगांव दक्षिण के उपाध्यक्ष जितेंद्र कांति गुहा को चटगांव के पटिया उपजिला में हैदगांव संघ में एक पेड़ से बांधकर पीटा गया। श्री गुहा स्थानीय अवामी लीग के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
इससे पहले मुंसिगंज सदर मे एक विज्ञान अध्यापक हृदय वनिक को यह कहने पर परेशान किया गया कि विज्ञान कुरान से नहीं निकला और अधिकांश वैज्ञानिक यहूदी हैं।
इससे पहले मार्च 2021 मे दुर्गा पाण्डाल मे हनुमान जी की मूर्ति के पैरों मे जानबूझ कर कुरान रख कर दंगा करवाया गया।
18 मार्च 2021 में बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय के एक युवा द्वारा कथित तौर पर सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखने के बाद एक इस्लामी समूह के सैकड़ों समर्थकों द्वारा पूर्वोत्तर में स्थित सिलहट डिवीजन में हिंदुओं के 70-80 घरों पर बर्बतापूर्ण हमला करने का मामला सामने आया।
ढाका ट्रिब्यून अखबार के मुताबिक हिफाजत ए इस्लाम के नेता मामुनुल हक के हजारों अनुयायियों ने सिलहट डिवीजन के सुनामगंज जिले के शल्ला उप जिले में एक हिंदू गाँव पर हमला किया। बताया गया कि काशीपुर, नाचनी, चाँदीपुर और कुछ अन्य मुस्लिम बहुल गाँवों से हक के समर्थक, नवागाँव में एकत्र हुए और उन्होंने स्थानीय हिंदुओं के घरों पर डंडों और देसी हथियारों से हमला किया व 70 से 80 घर तोड़ डाले।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लगभग 70 से 80 हिंदुओं के घरों में तोड़फोड़ की गई थी, लेकिन एक स्थानीय पत्रकार ने दावा किया है कि कम से कम 500 हिंदू घरों में तोड़फोड़ की गई और उन्हें जला दिया गया । इसके अलावा इस्लामी चरमपंथियों ने 8 मंदिरों में भी तोड़फोड़ की। इस हमले को फेसबुक पर लाइव किया गया था।
आजादी के वक्त 13.50% हिंदू थे। 2011 की जनगणना के अनुसार अब 8.54% हिन्दू ही बचे हैं। बांग्लादेश में पहली जनगणना में (जब वह पूर्वी पाकिस्तान था) मुस्लिम आबादी 3 करोड़ 22 लाख थी जबकि हिन्दुओं की जनसंख्या 92 लाख 39 हजार थी। 70 वर्षों बाद हिन्दुओं की संख्या केवल 1 करोड़ 20 लाख है जबकि मुस्लिमों की संख्या 12 करोड़ 62 लाख से अधिक हो गई है। पिछले कुछ वर्षों में यहां हिन्दुओं पर हमलों की कई घटनाएं हुई हैं। हिन्दुओं की संपत्तियों को लूटा गया, घरों को जला दिया गया तथा मंदिरों की पवित्रता को भंग कर उसे आग के हवाले कर दिया गया और ये हमले बेवजह किए गए।
पाकिस्तान का जबरन हिस्सा बन गए बंगालियों ने जब विद्रोह छेड़ दिया तो इसे कुचलने के लिए पश्चिमी पाकिस्तान ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। पाकिस्तान की सत्ता में बैठे लोगों की पहली प्रतिक्रिया उन्हें ‘भारतीय एजेंट’ कहने के रूप में सामने आई और उन्होंने चुन-चुनकर शिया और हिन्दुओं का कत्लेआम करना शुरू कर दिया। 24 साल के भीतर ही यह दूसरा क्रूर विभाजन था जिसमें लाखों बंगालियों की मौत हुई। हजारों बंगाली औरतों का बलात्कार हुआ। एक गैरसरकारी रिपोर्ट के अनुसार लगभग 30 लाख से ज्यादा हिन्दुओं का युद्ध की आड़ में कत्ल कर दिया गया। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ 9 महीने तक चले बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हिन्दुओं पर अत्याचार, बलात्कार और नरसंहार के आरोपों में दिलावर को दोषी पाया गया था।
1988 में संविधान संशोधन कर इस्लाम को बांग्लादेश का राजकीय मजहब बना दिया गया। इससे हिंदुओं की स्थिति कानूनन भी नीची हो गई। उनके विरुद्ध हिंसा, जबरन मतांतरण, संपत्ति छीनने, दुष्कर्म आदि के मामले बढ़ गए। इन्हीं हथकंडों का वर्णन प्रसिद्ध लेखिका तसलीमा नसरीन ने अपनी पुस्तक ‘लज्जा’ में किया, जिससे उन पर मौत का फतवा आया। तबसे उन्हें बाहर भागकर छिप कर रहना पड़ा रहा है। उन्हें कोसा गया, जबकि वह वामपंथी लेखिका रही हैं। उन्हें इसीलिए कोसा गया कि सावधानी से छिपाई गई लज्जा को उन्होंने बाहर ला दिया। उनके बाद अमेरिकी शोधकर्ता रिचर्ड बेंकिन की पुस्तक ‘ए क्वाइट केस आफ एथनिक क्लींसिंग-द मर्डर आफ बांग्लादेशी हिंदू’ ने उसका प्रामाणिक आकलन किया।
सतत संहार एवं उत्पीड़न से ही बांग्लादेश की हिंदू आबादी नाटकीय रूप से गिरी है। उस क्षेत्र में करीब 30 प्रतिशत हिंदू थे, जो 1971 तक 20 प्रतिशत हो गए। आज वे मात्र आठ-नौ प्रतिशत बचे हैं। इस लुप्त आबादी का एक-दो प्रतिशत ही भागकर बाहर गया। शेष मारे गए या छल-बल से मतांतरित करा लिए गए। यह केवल इस्लामी संगठनों, पड़ोसियों, बदमाशों, राजनीतिक दलों द्वारा ही नहीं, सरकारी नीतियों से भी हुआ। कल्पना कीजिए कि भारत सरकार गैर हिंदुओं की संपत्ति लेकर उसे हिंदुओं को दे सकने का कानून बनाए। तब पूरी दुनिया में आलोचना की कैसी आंधी उठेगी, लेकिन ठीक ऐसा ही कानून बांग्लादेश में मजे से चल रहा है, जबकि उसके दुष्प्रभाव से वहां हिंदुओं का विनाश प्रामाणिक तथ्य है। ढाका विवि के प्रो. अब्दुल बरकत की पुस्तक ‘इंक्वायरी इंटू काजेज एंड कांसीक्वेंसेस आफ डिप्राइवेशन आफ हिंदू माइनारिटीज इन बांग्लादेश’ में इसके विवरण हैं।
बहुत से लेख हमको ऐसे प्राप्त होते हैं जिनके लेखक का नाम परिचय लेख के साथ नहीं होता है, ऐसे लेखों को ब्यूरो के नाम से प्रकाशित किया जाता है। यदि आपका लेख हमारी वैबसाइट पर आपने नाम के बिना प्रकाशित किया गया है तो आप हमे लेख पर कमेंट के माध्यम से सूचित कर लेख में अपना नाम लिखवा सकते हैं।