ढाका में मोदी का सफल जन-संपर्क
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सारी विदेश-यात्राओं के मुकाबले बांग्लादेश-यात्रा सबसे अधिक सफल रही है। ये बात अलग है कि इस सफलता की नींव भी मनमोहन सिंह सरकार ने रखी थी। यदि कांग्रेस और तृणमूल के संबंध सहज होते और ममता बेनर्जी डॉ. मनमोहन सिंह के साथ ढाका चली जातीं तो मोदी को भूमि-सीमा समझौता करने का न तो मौका मिलता और न ही श्रेय मिलता।
कांग्रेस सरकार ने उस समझौते की पूरी तैयारी कर ली थी लेकिन ममता के विरोध के कारण वह अधर में लटक गया। कांग्रेस सरकार ने बांग्ला सरकार को 1 अरब डालर देने की घोषणा की थी। अब दो अरब डालर दिए गए हैं। याने भाजपा सरकार ने कांग्रेस सरकार की परंपरा को ही आगे बढ़ाया है। इसका अर्थ यह नहीं कि इस सफल-यात्रा में मोदी का योगदान नगण्य है। वास्तव में मोदी को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने ममता को पटाया। यदि ममता तैयार नहीं होतीं तो वे भी मनमोहनसिंह की तरह खाली हाथ लौटते। ममता के इतने आसानी से पट जाने का कारण क्या है ? इस पर राहुल गाँधी का इशारा उस शारदा चिट फंड घोटाले की तरफ़ है,जिसकी वजह से ममता की गर्दन मोदी के हाथों में है ।भारतीय संसद में सभी दलों ने इस सीमा-समझौते का जो उत्साहपूर्ण समर्थन किया, उसकी प्रतिध्वनि बांग्लादेश में भी हुई।
बेगम खालिदा ज़िया और जमाते-इस्लामी ने भी स्वागत किया। मोदी की इस खूबी पर हमारी नजर जाए बिना नहीं रहती है कि वे अपूर्व जन-संपर्क विशेषज्ञ साबित हुए हैं। उन्होंने हसीना वाजिद का मन मोह लिया है। उन्होंने शुद्ध शाकाहारी भोजन करके बांग्ला लोगों को थोड़ा निराश किया। वे उनको अपने मछली-व्यंजन खिलाना चाहते थे लेकिन मोदी ने बंगाली मिठाइयों की जबर्दस्त तारीफ करके भरपाई कर दी। इसी प्रकार सीमा-समझौते, दो अरब डालर के विनियोग तथा कोलकाता-ढाका-अगरतला और गुवाहाटी से बस-यात्रा, दोनों देशों की 54 नदियों के पानी का बंटवारा, बिजली उत्पादन और चिटगांव बंदरगाह का भारतीय जहाजों के लिए खुल जाना और व्यापार का संतुलन ठीक करना ये सब वे तथ्य हैं, जो इस यात्रा को अद्वितीय बनाते हैं। लगभग 4 हजार कि.मी. की सीमा पर तार लगाने और गैर-कानूनी घुसपैठ को रोकने के बारे में भी बात हुई है। मोदी ने अपनी यात्रा के माहौल को बांग्लादेश की मुक्ति के माहौल से तुलना करके अतिरेक का परिचय जरुर दिया है लेकिन इस तरह का अतिरेक बेहतर जन-संपर्क के लिए काफी उपयोगी होता है।