1 मई को नव जनपद गौतम बुद्ध नगर के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुश्री मायावती द्वारा सृजन करने की 25वी वर्षगांठ के अवसर पर विशेष आलेख।
वर्तमान जिला गौतम बुद्ध नगर का गौरवपूर्ण इतिहास।
वर्तमान जनपद गौतम बुद्ध नगर की भूमि को हम लोग देखते हैं उसका बहुत ही प्राचीन इतिहास है जो निम्न प्रकार है ।परंतु मैं अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार जितना जानता हूं उस ही के अनुसार लिख रहा हूं ।इसमें संशोधन की और परिवर्धन की भी आवश्यकता है। जो विद्वान साथी इस विषय में कुछ बेहतर जानते हैं वे जानकारी उपलब्ध करा सकते हैं।
1 मई 1997 को मई दिवस के अवसर पर मेरठ शहर में तत्कालीन मुख्यमंत्री बहन मायावती द्वारा जिला गाजियाबाद की दादरी तहसील, बुलंदशहर जनपद के दनकौर नगर पंचायत और जेवर कस्बे को मिलाकर नए जनपद के सृजन की घोषणा की गई थी जिसका नाम गौतम बुध नगर रखा गया था। गौतम बुध नगर की जनता बहन मायावती के प्रति ऋणी है कि उन्होंने इस क्षेत्र को एक जनपद के रूप में पहचान दी। 6 मई 1997 को प्रथम जिला अधिकारी की नियुक्ति सरकारी गजट में प्रकाशन के पश्चात की गई थी।
यद्यपि वर्ष 2004 में तत्कालीन सपा सरकार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा नवसृजित जनपद को समाप्त कर दिया गया था जिसके लिए जनपद गौतम बुद्ध नगर की जनता ने आंदोलन किया और माननीय उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को विवश होकर गौतम बुध नगर जनपद को यथावत बना रहने दिया ।
इसलिए आज भी गौतम बुध नगर की जनता सपा के लोगों को पसंद नहीं करती और चुनाव में हर बार सपा को सबक सिखाती है।तथा बहन मायावती का आभार व्यक्त करती है और प्रतिवर्ष बहन मायावती का जन्मदिन बहुत ही भव्यता एवं दिव्यता के साथ जनता के द्वारा मनाया जाता है।
वर्तमान गौतम बुध नगर का प्राचीन इतिहास।
1 .त्रेता युग में महीराष्ट्र का राजा महिदंत था ।जिसकी राजधानी महिष्मति थी। जिसको वर्तमान में मैसूर कहते हैं। राजा महि दंत एक चक्रवर्ती राजा था ।उस समय लंका भी उसके अधीन थी। पुलस्त्य ऋषि का पुत्र था मनीचंद्र (जिसको विश्वश्रवा अर्थात जिसे सारा विश्व श्रवण करता हो या सुनता हो) की उपाधि प्राप्त थी।
जिसका का पुत्र था वरुण।
वरुण को ही रावण कहते हैं।
रावण की शादी मही राष्ट्र के राजा की पुत्री से हुई थी राजा महीदंत से कुबेर ने लंका को छीन लिया जब रावण अपनी पत्नी जो मही की विदुषी पुत्री थी ,को विदा कराकर चला तो लोगों ने कहा कि राजा मही ने अपनी पुत्री को उचित दान नहीं दिया ।इस पर राजा मही ने कहा कि कभी मैं चक्रवर्ती राजा था। आज मेरे पास कुछ नहीं है ।मेरा लंका का राज कुबेर ने छीन लिया है । बाद में रावण ने विशाल सेना एकत्र करके लंका पर हमला कर विजय प्राप्त करके लंका को राजा महि को दिया। परंतु राजा मही ने लंका को अपनी पुत्री को दहेज में दे दिया था ।बाद में यही रावण भूमंडल पर राज करने वाला बना। कुबेर से पूर्व लंका शिव की नगरी थी ।इस प्रकार हम देखते हैं कि शिव ने सोने की लंका रावण को दान में नहीं दी थी बल्कि कुबेर से जब रावण ने राज जीतकर अपने ससुर महि को दी थी तो राजा मही ने रावण को दहेज में दी थी ।शिवजी ने केवल ऋषि को एक सोने का महल लंका में उस समय बनवा कर दिया था। जब वह शिव की नगरी कही जाती थी कुबेर से पहले।
मनीचंद्र अर्थात विश्वश्रवा जिस स्थान पर रहते थे उसको विश्व रक्षक कहते थे। क्योंकि लोग विश्व के कोने-कोने से वहां आकर अपनी समस्याओं का निदान पाते थे। इसलिए विश्व रक्षक नाम पड़ा।
विश्व श्रवा इसलिए कहते थे कि पूरा विश्व उनकी बातों का श्रवण करता था। यह उपाधि थी नाम नहीं था।
उसी पावन भूमि को विश्व रक्षक के स्थान पर अपभ्रंश करते हुए बिसरख के नाम से वर्तमान में जानते हैं। जिसमें रावण का प्राचीन मंदिर अवस्थित है।
यह विश्वरक्षक हिंडन नदी के किनारे स्थित था ।तथा इसी हिंडन नदी के किनारे रावण ने काल्पनिक कैलाश पर्वत की स्थापना की थी जो आज गाजियाबाद में कैला भट्टा के नाम से जानी जाती है ।इसके अलावा रावण ने एक शिवजी का विशाल मंदिर जिस स्थान पर बनाया था उसको रावण( दशानन) के नाम पर दशानन कहा जाता था। बाद में अपभ्रंश होकर दशना कहने लगे । जब इसको अंग्रेजी में रूपांतर या लिप्यांतर किया तो अंग्रेजों ने डासना कहना शुरू कर दिया। यही से होकर रावण सूरजकुंड मेरठ अपनी दूसरी ससुराल जाया करते थे।
2 .द्वापर युग के अंत में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान द्रोण गढ़ हुआ करता था। जहां गुरु द्रोणाचार्य को तत्कालीन कौरव शासकों ने जीवन यापन के लिए एक जागीर दी थी।
यहां पर भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य के साले कृपाचार्य, कौरव और पांडव तथा कृष्ण जी के चरण कमल पड़े हैं। उनकी रज कण यहां पर विद्यमान हैं।
जिसको आज स्थानीय भाषा में हम दनकौर कहते हैं। दनकौर में गुरु द्रोणाचार्य का मंदिर है ।जिस में प्रतिवर्ष अगस्त माह में मेला लगता है ,कुश्तियां होती हैं। एकलव्य का मंदिर भी है। देश के कोने-कोने से लोग अगस्त के महीने में कुश्ती देखने व मेले में शामिल होने के लिए आकर के गुरु द्रोणाचार्य की याद करते हैं।
यहीं से द्रोणाचार्य का मूल ग्राम गुरु ग्राम( गुड़गांव)भी अधिक दूरी पर नहीं है।
दनकौर के पश्चिमी किनारे पर यमुना नदी बहती थी और गुरु ग्राम जनपद की सीमाएं यमुना नदी के पश्चिमी किनारे तक हुआ करती थी। आज का ग्राम जगनपुर अफजलपुर जनपद गुरुग्राम का भाग तत्समय हुआ करता था
जो 1912 तक भी गुरुग्राम पंजाब (वर्तमान हरियाणा) का भाग रहा है।
3 . वाराहों द्वारा विजय राज चूड़ा मारा गया। उसके पुत्र देवराज को दाहिद ने बचा लिया जो 10 वर्ष इधर-उधर भटकता रहा और किसी प्रकार अपनी शक्ति संचय करके अपने मामा की सहायता से 852 ईसवी में देरावर, (देरावल) नामक नगर और दुर्ग स्थापित किया। देरावर अथवा देरावल भाटियों की नई राजधानी बनी और रावल की पदवी प्रदान की गई। इससे पहले भाटी राजा अपने आगे राव का प्रयोग करते थे। देवराज का वंशज दुसाज 11 वीं सदी में लोधवा का राजा हुआ। इन के 4 पुत्र हुए जैसल, पवो,पोहड़, विजयराज लांजा। जिन्होंने बड़े पुत्र जैसल के स्थान पर अपनी प्रिय रानी राणावत के पुत्र विजयराज लांजा को उत्तराधिकारी बनाया ।इससे भाटी राजवंश में ग्रह कलह का सूत्रपात हुआ। दुसाज की मृत्यु के बाद विजयराज लांजा लोधवा का शासक बना। उसकी मृत्यु के पश्चात भोजदेव और भोजदेव की मृत्यु के पश्चात जैसल लोधवा का शासक बना।
रावल जैसल ने समस्त भाटी सामंतों को अपने पक्ष में कर लिया तथा जैसलमेर राज्य की 12 जुलाई 1155 को व जैसलमेर दुर्ग की एवम नगर की स्थापना की। तथा जैसलमेर को अपनी राजधानी बनाया।
इस प्रकार राजा भाटी ने भटनेर ,मंडेराय ने मारोठ , तनु ने तनोट ,और देवराज ने देवरावल की , व जैसल ने जैसलमेर की स्थापना की। भाटी शासक एक के बाद एक अपनी राजधानी स्थापित कर निरंतर आगे बढ़ते रहें। समकालीन कौशल गढ़ भी भाटी राजाओं की राजधानी रहा जिसे वर्तमान में कासना कहते हैं। इसी कासना में निहालदे का मंदिर आज भी विद्यमान हैं जो एक विशाल बाग के मध्य में स्थित हुआ करता था।
जो आज गौतम बुध नगर की पहचान एवं शान है।
कासना कस्बा प्राचीन राजधानी के रूप में जनपद गौतम बुद्ध नगर की प्राचीन धरोहर है।
राजपूत शब्द 12 वीं सदी के बाद प्रयोग किया जाने लगा था ।उसी के अनुसार फिर गुर्जर भाटी और राजपूत भाटी अलग-अलग दो शाखाएं बनी। गुर्जर भाटियों के विषय में बताया जाता है (यद्यपि इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है) कि गुर्जर भाटी गुर्जर रानी से पैदा हुई संतान है।
17 वी सदी में रावल के स्थान पर जैसलमेर के शासकों को महारावल की उपाधि मिली।
4 .नारायणगढ़ उर्फ नलगढ़ा हिंडन नदी व यमुना नदी के मध्य स्थित खादर और बीहड़ जंगल में अवस्थित था ।जिसमें वीर शिरोमणि क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह, राजगुरु ,सुखदेव, दुर्गा भाभी, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त आदि ने मिलकर बम बनाया था जो असेंबली में डाला गया था ।जिस पत्थर पर बारूद की आदि पीसा गया था वह आज भी विद्यमान है। इस प्रकार क्रांतिकारियों से भी इस जिले की भूमि अछूती नहीं रही है।
आज के सेक्टर बीटा व गामा में ग्राम रामपुर जागीर की भूमि है ।इसी रामपुर जागीर में राम प्रसाद बिस्मिल ने गुर्जरों के घरों में रहकर उनके पशु जंगल में चुगाए थे। तथा गुप्त रूप से रहते हुए कई पुस्तकों का अनुवाद किया था ।इसलिए रामपुर जागीर राम प्रसाद बिस्मिल की स्मृतियों से जुड़ा हुआ पावन स्थल है।
राम प्रसाद बिस्मिल मैनपुरी षड्यंत्र 1919 के बाद यहां पर गुप्त काल में रह रहे थे जो वेश बदलकर रहते थे।
5. सन 1737 में पेशवा बाजीराव प्रथम ने दिल्ली पर आक्रमण किया था ।उसी समय दादरी नगर के पास शिवाजी के सैनिकों ने मंदिर का निर्माण कराया था जो आज भी विद्यमान हैं।
6 _ 11 सितंबर 1803 में अंग्रेजों और मराठों की लड़ाई ग्राम छलेरा नोएडा में हुई थी। जिसमें मराठों की विजय हुई थी ।और मराठों ने सहारनपुर तक अपना राज्य विस्तार किया था ।इस विजय का विजय स्तंभ आज भी छलेरा ग्राम के पास नोएडा में स्थित है।
7. दादरी कस्बा गुर्जर भाटी राव उमराव सिंह, राव रोशन सिंह आदि की राजधानी रहा है ।जिन्होंने 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता का बिगुल फूंका था और बुलंदशहर से लेकर दिल्ली तक के क्षेत्र को अंग्रेज विहीन कर दिया था।
गाजियाबाद में हिंडन तट पर अंग्रेजी सेना के साथ राव उमराव सिंह व उनके साथियों का भीषण संघर्ष हुआ जिसमें काफी अंग्रेज अधिकारी मारे गए थे। जिनकी स्मृति स्थल आज भी हिंडन के किनारे गाजियाबाद में बना हुआ है। इसलिए राव उमराव सिंह के साथ 84 लोगों को बुलंदशहर में काला आम पर लटका कर फांसी दे दी गई थी। राव उमरावसिंह
ने मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को दिल्ली का तख्त सौंपा था। स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने का जिम्मा बहादुर शाह जफर को दिया था। मेरठ में कोतवाल धन सिंह चपराना गुर्जर तथा दादरी में राव उमराव सिंह भाटी गुर्जर व माला गढ़ ग्राम के तत्कालीन नवाब के प्रधान सेनापति (जो शहीद विजय सिंह पथिक के बाबा हुआ करते थे ) व अन्य गुर्जरों से तंग आकर ही अंग्रेजों ने गुर्जरों को अपराधी कौम की श्रेणी में डाला था।
8 . महाभारत काल में एक प्रसिद्ध शहर था जिसको उस समय मयूरप्रस्थ कहते थे। जो किसी आक्रमणकारी द्वारा बाद में लूटा और नष्ट किया गया लेकिन उसके अवशेष आज भी उपलब्ध हैं तथा उस स्थान को आज मारी पत् कहते हैं।
जिसके नाम से मारी पत रेलवे स्टेशन दिल्ली कोलकाता रेलवे लाइन पर है।
9 .वर्तमान का जेवर कस्बा गौतम बुद्ध नगर जिले की तहसील है जो ज्वाल ऋषि की तपोभूमि है ।यह तपोभूमि जमुना नदी के किनारे पर हुआ करती थी। जहां पर ज्वाली ऋषि का आश्रम था ।ज्वाल ऋषि के नाम पर ही जेवर कस्बा अपभ्रंश होकर बना है।
10. ग्राम गुलिस्तानपुर के पास एक प्राचीन गुंबज , गड़गज,अथवा गुंबद बनी हुई है। गुंबज का हिंदी में अर्थ एक अर्ध गोल छत ,एक घर या एक निर्णय अथवा राय भी होता है।
इसके विषय में विशेष जानकारी नहीं है कि यह किस समय काल का बना हुआ है?
किस राजा ने बनवाया था?किस लिए बनाया गया था?इसके पीछे क्या स्मृति है? क्या इतिहास है ?
मेरी जानकारी में उपलब्ध नहीं।
11 .ग्राम दुजाना में दादी रामकोर सती हुई थी जिन का मंदिर बना हुआ है और होली के 2 दिन बाद प्रतिवर्ष इस पर मेला लगता है ।लोग दादी रामकोर को श्रद्धा से नमन करने के लिए प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में दूर-दूर से आते हैं।
इतिहास में अन्य बहुत सी बातें छुपी होंगी जो हमारे ज्ञान में नहीं, क्योंकि पश्चिम में पांडवों का इंद्रप्रस्थ तत्कालीन दिल्ली स्थित था तथा उत्तर में हस्तिनापुर और दक्षिण में श्री कृष्ण का मथुरा आदि ऐसे शहर थे जिनके लिए आवागमन का रास्ता भी यहीं से होकर गुजरता होगा ।कितनी पावन भूमि है हमारे जनपद गौतम बुध नगर की ।यहां से कितने ही महापुरुष उन रास्तों से आए गए होंगे और उनके राजकण यहां पड़े होंगे।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन उगता भारत समाचार पत्र
अध्यक्ष पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकास पार्टी।