सुरेश हिन्दुस्थानी
भारत हमेशा से ही विदेशी कंपनियों की साजिश का शिकार बना है। आज मैगी का मामला भले ही सामने आ गया हो, लेकिन जिस प्रकार से विदेशी कंपनियाँ अपने उत्पादों में रासायनिक तत्वों का उपयोग करतीं हैं, वह मानव के जीवन के लिए अत्यंत ही घातक हैं, केवल इतना ही नहीं कई वस्तुयों में पशुओं के मांस होने की भी पुष्टि मिली है। भारतीय लोग केवल विज्ञापनों के भंवरजाल में फँसकर विदेशी कंपनियों के उत्पादों का प्रयोग करने लगते हैं। लेकिन क्या हमको इस बात का पता है कि यह विदेशी कंपनियाँ भारत के लोगों से पैसा कमाकर अपनी कंपनी और अपने देश को ही मजबूत बनाने का काम कर रहे हैं। हमें एक बात पर विचार जरूर करना होगा कि हमारे देश का धनवान व्यक्ति धनवान होता जा रहा है और गरीब व्यक्ति और गरीब। इसके पीछे के छिपे सत्य को तलास किया जाये तो एक बात यह भी सामने आती है कि हमारे देश में गरीब व्यक्ति ही छोटे छोटे व्यापार के माध्यम से अपनी वस्तुयोन का क्रय करता है, और हमारे देश का ग्राहक हमेशा बड़ी कंपनी के उत्पाद खरीदने में अपनी शान समझता है, जो अत्यंत ही मूर्खता पूर्ण कदम है।
कहते हैं कि किसी उत्पाद की जितनी ज्यादा बिक्री होगी वह उतना ही ज्यादा लाभ में होगा, आज विदेशी कंपनियों के उत्पादों पर यही कहानी लागू हो रही है, हमारे बाजार विदेशी उत्पादों का कब्जा है। लघु उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुओं को नहीं खरीदने के कारण ही आज देश से छोटे छोटे ऐसे उद्योग बंद होते जा रहे हैं जिनसे गरीब लोग अपना पेट पालते हैं। जबकि नेस्ले जैसी कंपनी ने केवल मैगी जैसे उत्पाद पर भारतीय उपभोक्तायों से लागत मूल्य से 50 गुना ज्यादा मुनाफा कमाया। एक आंकड़े के मुताबिक मैगी के उत्पाद पर नेस्ले कंपनी ने गुणवत्ता पर जितना पैसा व्यय किया उससे कई गुना ज्यादा उसके प्रचार पर खर्च कर दिया। यहाँ यह बात ध्यान देने लायक है कि मैगी के विज्ञापन पर खर्च होने वाली राशि का भार आखिर जनता पर ही आता है।
इन सब बातों से पहले हम सभी भारतीयों को एक बात हमेशा ही ध्यान रखनी है कि देश में जब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में व्यापार करने आई थी, तो उसने पूरे भारतीय व्यापार पर कब्जा कर लिया और भारत के उपभोक्ताओं को पूरी तरह से अपने आधीन कर लिया, जिससे भारत की छोटी छोटी इकाइयां या तो बंद हो गईं या फिर इन विदेशी कंपनियों ने खरीद लिया। वर्तमान में भारत देश में लगभग वैसे ही हालात हैं। भारत के बाजार पर विदेशी कंपनियाँ पूरी तरह से हाबी हैं। इतना ही नहीं वालमार्ट जैसी कंपनी अभी भी भारत में प्रवेश करने के लिए हाथ पैर मार रही है। कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी के इशारे पर काम करने वाली पिछली सरकार ने वालमार्ट को भारत में अपने स्टोर खोलने की अनुमति प्रदान कर दी थी, लेकिन देश भर में हुए व्यापक विरोध के चलते वालमार्ट कंपनी कई शहरों में अपने बिक्री केंद्र नहीं खोल सकी।
वर्तमान में बात भले ही मैगी जैसे उत्पाद को लेकर शुरू है, लेकिन इसके दूर तक जाने की संभावना लग रही है। कई लोग इस बात को नहीं जानते होंगे कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के जो उत्पाद भारत के बाजार पर छाए हैं, उनमें ये कंपनियाँ विभिन्न प्रकार के संकेत का उपयोग करके कई वस्तुओं में मृत पशुओं के अवशेष मिला रही हैं, तो कई उत्पादों में हाल ही में जन्म लेने वाले जीवों का मांस तक मिलाते हैं। इसके अलावा कई उत्पादों में ऐसे रसायनों का उपयोग कर रहे हैं, जिनका विदेश के कई देशों में प्रतिबंध है। इसके फलस्वरूप हमारे देश में ऐसी बीमारियाँ फैलती जा रहीं हैं, जो भारत में कभी नहीं हुईं। विदेशी कंपनियों के उत्पादों के सेवन से भारत के छोटे छोटे बच्चे अपने बढ़ते हुए वजन को लेकर परेशान हैं, इसके अलावा भी कई लोगों के शरीर वसा की मात्रा बढ़ने से बेडोल हो रहे हैं।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एक ही काम है भारतीय बाजार को पूरी तरह से अपने कब्जे में लेना, आज तक इस षड्यंत्र में वह पूरी तरह से सफल होती दिखाई दे रही है। जरा सोचिए हमारे देश के उपभोक्ताओं के पैसे किस कंपनी को और किस देश को फायदा पहुंचाने का कार्य कर रहीं हैं। हम आज इस बारे में नहीं सोचे तो आने वाले समय में स्थिति इतनी खराब हो जाएगी कि नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा। हमारे देश के नागरिकों का दुर्भाग्य यह है कि हम किसी भी समस्या के लिए देश की सरकार को जिम्मेदार ठहरा देते हैं, हालांकि यह सत्य तो है ही कि देश की सरकार इसके लिए जिम्मेदार है लेकिन ऐसी सरकार से क्या अपेकषा की जा सकती है जो केवल विदेश के या विदेशियों के इशारे पर ही चलती हो, हम बात कर रहे हैं कांग्रेस सरकार की, उसने कभी भी ऐसा कोई प्रयास नहीं किया जिससे भारत का बाजार और भारत के लघु उद्योग फिर से मजबूत हो जाएँ। वह तो सीधे तौर पर पूरे बाजार को विदेशी कंपनी के हवाले करने के लिए आतुर दिखाई दे रही थी।
यह तो सारा विश्व जानता है कि शुद्धता के मामले में भारतीय भोजन का कोई मुक़ाबला नहीं है, भारतीय भोजन में जीवन के विकास के लिए वे सारे तत्व मौजूद हैं जो एक व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए चाहिए होते हैं। विदेशी भोजन और फास्ट फूड के नाम पर बिक रहे भोज्य पदार्थों में अनेक प्रकार की ऐसी सामाग्री का समावेश मिलता है जो प्रथम दृष्टया शरीर के लिए अत्यंत ही हानिकारक है। इसके अलावा ये कंपनियाँ भारत के लोगों की मानसिकता को इस प्रकार से बदलने का प्रयास कर रहीं हैं, कि भारतीय लोग धीरे धीरे ही सही उनके उत्पादों के प्रति लगाव प्रदर्शित करे। हम जानते हैं कि भारत में मांसाहारी व्यक्तियों के लिए जो दुकानें संचालित की जातीं थीं, वे किसी समय पर्दे के पीछे इस प्रकार लगाई जातीं थीं, कि किसी को दिखाई न पढे, लेकिन आज ये दुकानें खुलेआम लगाई जा रहीं हैं, इतना ही नहीं कई मार्गों पर तो इन दुकानों में मांस सरेआम लटका दिया जाता है। हम जानते हैं कि जिन व्यक्तियों का मन मांस के टुकड़ों को देखकर अच्छा नहीं रहता, इस प्रकार के बाजार देखने से और रोज रोज देखने से उसकी नफरत समाप्त होने लगती है, और अंततः उसे मांस की वह प्रदर्शनी सामान्य लगना लगती है। यह मामला भारतीय व्यक्ति की मानसिकता बदलने के लिए किया जा रहा है और हम भारतीय जान बूझकर अंजान बने हुए हैं।
वर्तमान में भारत में अब एक ऐसे प्रधानमंत्री पदासीन हुए हैं जो स्वतंत्र भारत में पैदा हुए। नरेंद्र मोदी की सरकार ने जिस प्रकार से विदेशों में भारत का मान बढ़ाया है, उससे विदेश के लोग तो बराबर का दर्जा देने लगे हैं, साथ ही विदेशों में बड़े भारतीय मूल के लोगों में गौरव का एहसास हुआ है। इनसे भारत के लोगों की अपेक्षा है कि प्रधानमंत्री ने जिस प्रकार से भारत को विकास के रास्ते पर ले जाने का काम किया है, उसी प्रकार इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की देश विघातक नीतियों पर भी रोक लगाने का काम करेंगे. नहीं तो जिस प्रकार से व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आई ईस्ट इण्डिया कंपनी ने भारत पर कब्जा कर लिया था, वैसे ही आज भारत में व्यापार कर रहीं कम्पनियां भी एक दिन भारत को गुलाम बना लेंगी.