घट भीतर परमात्मा, जाग सके तो जाग
बिखरे मोती
आत्म – साक्षात्कार के संदर्भ में:-
आतम भावना जी सदा,
देह – भाव को त्याग।
घट भीतर परमात्मा,
जाग सके तो जाग॥1677॥
जिनके कारण मनुष्य का रिश्ता कहलाता है:-
कीर्ति जैसा धन नहीं,
माता जैसा देव।
संयम जैसा गुण नहीं,
नर होता भूदेव॥1678॥
भूदेव – अर्थात् पृथ्वी का देवता
भूल की भूल आत्मा का पतन करती है उत्थान नहीं :-
विवेक विरोधी सम्बन्ध से,
धोखा दे विश्वास।
वृत्ति कृति और मति,
आत्मा का करे नाश॥1678॥
भावार्थ:- प्रायः मनुष्य मन,बुद्धि, प्राण, शरीर और अहम को अपना समझता है, इस संसार को अपना समझता है जबकि ये मनुष्य के हाथ में नहीं है। ये सब परमात्मा के हाथ में है। इन पर शासन ईशान का है, इन्सान का नहीं। कैसी विडम्बना है मनुष्य इन्हें जीवनभर अपना समझता है। जीवन पर्यन्त इनके मोह-जाल में फंसकर विवेक विरोधी विश्वास को पाले रखता है, जो बहुत बड़ा धोखा है, आत्मप्रवचना है। फलस्वरुप मनुष्य की मति,कृति और वृत्ति बिगड़ जाती है, शुभ करने की बजाय दुष्कर्म करने लगता है, सारा जीवन अकारथ जाता है, आत्मा का हनन होता है, बहुत बड़ा ह्रास होता है। इसलिए सारांश यह है कि अपने वास्तविक सम्बन्ध को जानिए और उसे मानिए,जीवन में उसे आत्मसात कीजिए। तुम आनन्द लोक से आए हो और वही तुम्हारा गन्तव्य है। उस परम ब्रह्म से अपनी सायुज्यता बनाइये। मूल की भूल को समय रहते सुधारये। मति, कृति और वृति को पवित्र बनाइये तभी आपकी आत्मा का उत्थान होगा, आपका आभामण्डल सौम्य और दिव्य होगा।
क्रमश: