किसी भी आर्थिक गतिविधि में सामान्यतः पांच घटक कार्य करते हैं – भूमि, पूंजी, श्रम, संगठन एवं साहस। हां, आजकल छठे घटक के रूप में आधुनिक तकनीकि का भी अधिक इस्तेमाल होने लगा है। परंतु पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में चूंकि केवल पूंजी पर ही विशेष ध्यान दिया जाता है अतः सबसे अधिक परेशानी, श्रमिकों के शोषण, बढ़ती बेरोजगारी, समाज में लगातार बढ़ रही आर्थिक असमानता और मूल्य वृद्धि को लेकर होती है। पूंजीवाद के मॉडल में उपभोक्तावाद एवं पूंजी की महत्ता इस कदर हावी रहते हैं कि उत्पादक लगातार यह प्रयास करता है कि उसका उत्पाद भारी तादाद में बिके ताकि वह उत्पाद की अधिक से अधिक बिक्री कर लाभ का अर्जन कर सके। पूंजीवाद में उत्पादक के लिए चूंकि उत्पाद की अधिकतम बिक्री एवं अधिकतम लाभ अर्जन ही मुख्य उद्देश्य है अतः श्रमिकों का शोषण इस व्यवस्था में आम बात है। आज तक भी उत्पादन के उक्त पांच/छह घटकों में सामंजस्य स्थापित नहीं किया जा सका है। विशेष रूप से पूंजीपतियों एवं श्रमिकों के बीच टकराव बना हुआ है। पूंजीपति, श्रमिकों को उत्पादन प्रक्रिया का केवल एक घटक मानते हुए उनके साथ कई बार अमानवीय व्यवहार करते पाए जाते हैं। जबकि, श्रमिकों को भी पूंजी का ही एक रूप मानते हुए, उनके साथ मानवीय व्यवहार होना चाहिए। क्योंकि, किसी भी संस्थान की सफलता में श्रमिकों का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है। बिना श्रमिकों के सहयोग के कोई भी संस्थान सफलता पूर्वक आगे नहीं बढ़ सकता। इसीलिए संस्थानों में कार्य कर रहे श्रमिकों को “श्रम शक्ति” की संज्ञा दी गई है। हमारे देश में भी दुर्भाग्य से श्रमिकों के शोषण की कई घटनाएं सामने आती रही हैं। यथा, श्रमिकों को निर्धारित मजदूरी का भुगतान नहीं करना एवं उनसे निर्धारित समय सीमा से अधिक कार्य लेना आदि, प्रमुख रूप से शामिल हैं।
भारत में श्रमिकों की विभिन्न समस्याओं के निदान करने एवं उन्हें और अधिक सुविधाएं उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य श्रम कानून से जुड़े तीन अहम विधेयक केंद्र सरकार ने संसद में पास कराए हैं। जिनमें सामाजिक सुरक्षा बिल 2020, आजीविका सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता बिल 2020 और औद्योगिक संबंध संहिता बिल 2020 शामिल हैं। इससे पहले तक देश में 44 श्रम कानून थे जो कि अब चार लेबर कोड में शामिल किए जा चुके हैं। श्रम कानूनों को लेबर कोड में शामिल करने का काम वर्ष 2014 में शुरू हो गया था। ऐसा कहा जा रहा है कि उक्त ऐतिहासिक श्रम कानून, कामगारों के साथ साथ कारोबारियों के लिए भी मददगार साबित होगें।
केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारें तो अपने स्तर पर श्रमिकों के हितार्थ विभिन्न कानून बनाने का कार्य करती रही हैं और आगे भी करती रहेंगी परंतु आज जब भारत विश्व का सबसे युवा राष्ट्र कहा जा रहा है क्योंकि देश की दो तिहाई जनसंख्या की उम्र 35 वर्ष से कम है (देश की 36 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 15 से 35 वर्ष के बीच है और देश में 37 करोड़ युवाओं की आयु 15 से 29 वर्ष के बीच है) तो इतने बड़े वर्ग को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु इन्हें केवल श्रमिक न बनाकर इनमें उद्यमिता का विकास कर इन्हें स्वावलंबी बनाए जाने की आज महती आवश्यकता है। हालांकि सरकारें विभिन्न स्तरों पर इस दिशा में अपना कार्य बखूबी कर रही हैं परंतु देश के प्रत्येक नागरिक को यदि स्वावलंबी बनाना है तो अन्य स्वयंसेवी, धार्मिक, सामाजिक, औद्योगिक एवं व्यापारिक संगठनों को आपस में मिलकर इस नेक कार्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास करने चाहिए। इसी क्रम में, भारत में बेरोजगारी की समस्या को हल करने के मुख्य उद्देश्य से अभी हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अन्य कई संगठनों को अपने साथ लेकर एक स्वावलंबी भारत अभियान की शुरुआत की है। संघ द्वारा सहकार भारती, लघु उद्योग भारती, ग्राहक पंचायत, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भाजपा एवं स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठनों एवं कई अन्य सामाजिक, आर्थिक एवं स्वयंसेवी संगठनों को भी इस अभियान के साथ जोड़ा जा रहा है।
स्वावलंबी भारत अभियान को चलाने हेतु एक कार्यक्रम की घोषणा भी की गई है। जिसके अंतर्गत उद्यमिता, रोजगार व अर्थ सृजन को एक जन आंदोलन बनाते हुए युवाओं को श्रम का महत्व समझाया जाएगा एवं उन्हें जॉब सीकर के बजाय जॉब प्रवाइडर बनाने के प्रयास वृहद स्तर पर किए जाएंगे। साथ ही, जॉब सीकर एवं जॉब प्रवाइडर के बीच समन्वय स्थापित करने के प्रयास भी किए जाएंगे। प्रत्येक जिले में वहां के प्रमुख विश्वविद्यालय अथवा महाविद्यालय के सहयोग से एक रोजगार सृजन केंद्र की स्थापना की जाएगी जहां केंद्र एवं राज्य सरकारों की रोजगार सृजन सम्बंधी विभिन्न योजनाओं की जानकारी, उद्यमिता प्रशिक्षण एवं युवाओं में कौशल विकास करने के प्रयास किए जाएंगे। साथ ही उस केंद्र पर बैंक ऋण प्राप्त करने संबंधी मार्गदर्शन, स्वरोजगार के क्षेत्र में आने वाली सम्भावित कठिनाईयों का समाधान एवं सफल स्वरोजगारियों तथा उद्यमियों से संवाद आदि की व्यवस्था भी की जाएगी। युवाओं में कौशल विकसित करने हेतु सबंधित कम्पनियों को आगे आना चाहिए एवं इस सम्बंध में केवल सरकारी योजनाओं पर निर्भर रहने से यह कार्य सम्भव नहीं होगा। इन केंद्रों पर स्थानीय एवं स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने के सम्बंध में नागरिकों में जागरूकता उत्पन्न करने सम्बंधी प्रयास भी किए जाएंगे। साथ ही, ग्रामीण स्तर पर ग्रामोद्योग व ग्रामशिल्प को बढ़ावा देने संबंधी प्रयास किए जाएंगे।
भारत को पूरे विश्व के आर्थिक क्षेत्र में यदि अपना दबदबा कायम करना है तो देश की मानव पूंजी पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करना होगा एवं बेरोजगार युवाओं को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराना ही होगें ताकि देश में उपलब्ध मानव पूंजी का देश हित में उचित उपयोग किया जा सके। जब तक भारत पूर्ण रोजगार युक्त नहीं होता, तब तक वह पूर्ण स्वावलम्बन व वैश्विक मार्गदर्शक के रूप में अपने आप को स्थापित करने सम्बंधी लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता। देश की समस्त जनसंख्या के लिए रोजगार के अवसर निर्मित कर आर्थिक विकास की गति को तेज किया जा सकता है और सही अर्थों में भारत के लिए जनसांख्यिकी का लाभांश तो तभी उपलब्ध होगा।
आज यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाय तो भारत में प्राकृतिक संसाधनों (कच्चे माल) के साथ साथ मानव शक्ति (श्रम) भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है परंतु उसके पास रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं हैं। किसी भी कुटीर अथवा लघु उद्योग को स्थापित करने के लिए मुख्य रूप से कच्चे माल एवं श्रम की आवश्यकता ही रहती है और ये दोनों ही तत्व भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं केवल आवश्यकता है इन दोनों तत्वों को आपस में जोड़ने के लिए एक ऐसा माहौल बनाने की जिसके अंतर्गत भारतीय आगे बढ़कर ग्रामीण इलाकों में कुटीर उद्योगों की स्थापना करें एवं इन्हीं इलाकों में रोजगार के अवसर भी निर्मित करें एवं इन इलाकों के निवासियों का शहरों की ओर पलायन रोकें। इस संदर्भ में संघ का स्पष्ट मत है कि मानव केंद्रित, पर्यावरण के अनुकूल, श्रम प्रधान तथा विकेंद्रीकरण एवं लाभांश का न्यायसंगत वितरण करने वाले भारतीय आर्थिक प्रतिमान (मॉडल) को महत्त्व दिया जाना चाहिए, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था, सूक्ष्म उद्योग, लघु उद्योग और कृषि आधारित उद्योगों को संवर्धित करता है। ग्रामीण रोजगार, असंगठित क्षेत्र एवं महिलाओं के रोजगार और अर्थव्यवस्था में उनकी समग्र भागीदारी जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देना चाहिए। देश की सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप नई तकनीकी तथा सॉफ्ट स्किल्स को अंगीकार करने के गम्भीर प्रयास भी किए जाने चाहिए।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।