भारत में आय में हो रही वृद्धि के चलते महंगाई का तुलनात्मक रूप से कम होता असर
महंगाई (मुद्रा स्फीति) का तेजी से बढ़ना, समाज के प्रत्येक वर्ग, विशेष रूप से समाज के गरीब एवं निचले तबके तथा मध्यम वर्ग के लोगों को आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक विपरीत रूप में प्रभावित करता है। क्योंकि, इस वर्ग की आय, जो कि एक निश्चित सीमा में ही रहती है, का एक बहुत बड़ा भाग उनके खान-पान पर ही खर्च हो जाता है और यदि महंगाई (मुद्रा स्फीति) की बढ़ती दर तेज बनी रहे तो इस वर्ग के खान-पान पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है। अतः, मुद्रा स्फीति की दर को काबू में रखना देश की सरकार का प्रमुख कर्तव्य है। इसीलिए भारत में केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक, मौद्रिक नीति के माध्यम से, इस संदर्भ में समय समय पर कई उपायों की घोषणा करते रहते हैं।
वर्ष 2014 में केंद्र में माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार के आने के बाद, देश की जनता को उच्च मुद्रा स्फीति की दर से निजात दिलाने के उद्देश्य से, केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक ने दिनांक 20 फरवरी 2015 को एक मौद्रिक नीति ढांचा करार पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अंतर्गत यह तय किया गया था कि देश में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर को जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत के नीचे तथा इसके बाद 4 प्रतिशत के नीचे (+/- 2 प्रतिशत के उतार चड़ाव के साथ) रखा जाएगा। उक्त समझौते के पूर्व, देश में मुद्रा स्फीति की वार्षिक औसत दर लगभग 10 प्रतिशत बनी हुई थी। उक्त समझौते के लागू होने के बाद से देश में, मुद्रा स्फीति की वार्षिक औसत दर लगभग 5/6 प्रतिशत के आसपास आ गई है। जिसके लिए केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक की प्रशंसा की जानी चाहिए। अब तो मुद्रा स्फीति लक्ष्य की नीति को विश्व के 30 से अधिक देश लागू कर चुके है।
हाल ही के समय में, विशेष रूप से कोरोना महामारी के बाद भारत सहित पूरे विश्व में मुद्रा स्फीति में भारी वृद्धि होती दिखाई दे रही है। अमेरिका एवं अन्य यूरोपीयन देशों में तो मुद्रा स्फीति की दर 8.5 प्रतिशत के आस पास तक पहुंच गई हैं जो इन देशों में पिछले 40 वर्षों के दौरान सबसे अधिक महंगाई की दर है। अमेरिका में तो पिछले लगातार एक वर्ष से अधिक समय से मुद्रा स्फीति की दर सह्यता स्तर अर्थात 2 प्रतिशत से अधिक बनी हुई है। लगभग यही स्थिति यूरोप के अन्य देशों की भी है। अमेरिका की PEW नामक अनुसंधान केंद्र ने विश्व के 46 देशों में मुद्रा स्फीति की दर पर एक सर्वेक्षण किया है एवं इसमें पाया है कि 39 देशों में वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही में मुद्रा स्फीति की दर, कोरोना महामारी के पूर्व, वर्ष 2019 की तीसरी तिमाही में मुद्रा स्फीति की दर की तुलना में बहुत अधिक है।
भारत में भी हाल ही के समय में महंगाई की दर में उच्छाल देखने में आया है और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर 6 प्रतिशत के आसपास पहुंच गई है तो थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर 13 प्रतिशत के आसपास पहुंच गई है।
वैश्विक स्तर पर मुद्रा स्फीति की दर के अचानक इतनी तेजी से बढ़ने के कारणों में कुछ विशेष कारण उत्तरदायी पाए गए हैं। मुद्रा स्फीति की दर में यह अचानक आई तेजी किसी सामान्य आर्थिक चक्र के बीच नहीं पाई गई है बल्कि यह असामान्य परिस्थितियों के बीच पाई गई है। अर्थात, कोरोना महामारी के बाद वैश्विक स्तर पर एक तो सप्लाई चैन में विभिन्न प्रकार के विघ्न पैदा हो गए हैं। दूसरे, कोरोना महामारी के चलते श्रमिकों की उपलब्धि में कमी हुई है। अमेरिका आदि देशों में तो श्रमिक उपलब्ध ही नहीं हो पा रहे हैं, इससे विनिर्माण के क्षेत्र की इकाईयों को पूरी क्षमता के साथ चलाने में समस्याएं आ रही हैं। तीसरे, विभिन्न देशों के बीच उत्पादों के आयात निर्यात में बहुत समस्याएं आ रहीं हैं। पानी के रास्ते जहाजों के माध्यम से भेजी जा रही वस्तुओं को एक देश से दूसरे देश में पहुंचने में (एक बंदरगाह से उत्पादों के पानी के जहाजों पर चढ़ाने से लेकर दूसरे बंदरगाह पर पाने के जहाजों से सामान उतारने के समय को शामिल करते हुए) पहिले जहां केवल 10/12 दिन लगते थे अब इसके लिए 20/25 दिन तक का समय लगने लगा है। कई बार तो पानी का जहाज बंदरगाह के बाहर 7 से 10 दिनों तक खड़ा रहता है क्योंकि श्रमिकों की अनुपलब्धता के कारण सामान उतारने की दृष्टि से उस जहाज का नम्बर ही नहीं आता। चौथे, कोरोना महामारी का प्रभाव कम होते ही विभिन्न उत्पादों की मांग अचानक तेजी से बढ़ी है जबकि इन उत्पादों को एक देश से दूसरे देश में पहुंचाने में ज्यादा समय लगने लगा है। अतः मांग एवं आपूर्ति में उत्पन्न हुई इस असमानता के कारण भी महंगाई की दर में वृद्धि हुई है। इन सभी कारणों के ऊपर, वैश्विक स्तर पर पेट्रोल (ईंधन) की कीमतें आसमान छूने लगी हैं जो 120 डॉलर प्रति बेरल के आसपास पहुंच गई हैं।
अमेरिका में तो केलेंडर वर्ष 2022 के प्रथम तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 1.4 प्रतिशत की कमी आई है क्योंकि वहां के नागरिकों की आसमान छूती महंगाई के चलते क्रय शक्ति ही कम हो गई है। इसलिए कई उत्पादों की मांग ही कम हो गई है। परंतु भारत में केंद्र सरकार द्वारा समय समय पर लिए गए कई आर्थिक निर्णयों (जिनकी कि आज विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, अमेरिका एवं यूरोपीयन देश तारीफ कर रहे हैं) के चलते यहां के नागरिकों पर बढ़ रही महंगाई का असर कम दिखाई दे रहा है। दरअसल कोरोना महामारी के काल में भारत ने 80 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलो मुफ्त अनाज प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत उपलब्ध कराया है, इस योजना को सितम्बर 2022 तक बढ़ा दिया गया है। इसी प्रकार की अन्य योजनाओं के अंतर्गत केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा दालें, मसाले एवं अन्य खाद्य सामग्री भी उपलब्ध कराई जाती रही है। उक्त योजना के अतिरिक्त राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) के अंतर्गत भी प्रति माह काफी सस्ती दरों पर (दो/तीन रुपए प्रति किलो) अनाज गरीब वर्ग को उपलब्ध कराया जाता है। चूंकि उक्त योजनाओं के अंतर्गत गरीब वर्ग को सीधे ही खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है ऐसे में महंगाई के बढ़ने का असर इस वर्ग के नागरिकों पर नहीं दिखाई नहीं दे रहा है। इसके विपरीत अमेरिका ने अपने नागरिकों के खातों में सहायता की एक निश्चित राशि जमा की थी। मान लीजिए यदि किसी नागरिक के खाते में 2000 अमेरिकी डॉलर जमा किए गए थे तो महंगाई की दर के 8.5 प्रतिशत पर आने से उसकी क्रय शक्ति तो केवल 1983 अमेरिकी डॉलर की हो गई जबकि भारत में गेहूं, चावल, दालें, मसाले आदि खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई गई तो यहां के नागरिकों को महंगाई दर के 6 प्रतिशत तक अधिक लाभ मिला क्योंकि इन पदार्थों पर महंगाई को केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों ने वहन किया अर्थात महंगाई की दर तक का अधिक लाभ भारत के नागरिकों को मिला।
दूसरे, भारत में वित्तीय वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद का मूल्य 232.15 लाख करोड़ रुपए (अनुमानित) रहा है जो कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 197.46 लाख करोड़ रुपए (अनुमानित) का रहा था। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय नागरिकों की आय में 17.6 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान रही है, जबकि खुदरा महंगाई की दर तो 6 प्रतिशत के आसपास ही रही है। विश्व बैंक के एक शोध पत्र में भी यह बताया गया है कि भारत में बहुत छोटी जोत वाले किसानों की वास्तविक आय में 2013 और 2019 के बीच वार्षिक 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।
कोरोना महामारी के दौरान भारत में प्रथम सोपान के अंतर्गत गरीब वर्ग को खाद्य सामग्री उपलब्ध करायी गई थी। दूसरे सोपान के अंतर्गत मुफ़्त वैक्सीन दिया जा रहा है जिससे गरीब वर्ग को बीमारियों से बचाए रखा जा सके। अब जब देश में अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से खुल चुकी है तो अब गरीब वर्ग के लिए रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। मनरेगा योजना भी ग्रामीण इलाकों में वृहद स्तर पर चलायी जा रही है एवं इससे भी ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाए जा रहे हैं। निर्माण एवं पर्यटन क्षेत्र भी अब खोल दिए गए हैं जिससे इन क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर वापिस निर्मित होने लगे हैं। भारत में तो धार्मिक पर्यटन भी बहुत बढ़े स्तर पर होता है एवं धार्मिक स्थलों को खोलने से भी रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।। इस प्रकार कुल मिलाकर गरीब वर्ग को कमाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध होने लगे हैं जिससे भारत में गरीब वर्ग पर महंगाई का कम असर होता दिखाई दे रहा है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।