पटेल, गांधी,आंबेडकर के बाद अब मोदी सरकार भगत सिंह के नाम को भुनाने की तैयारी कर रही है। भगत सिंह एक ऐसा नाम है जिसके आसरे युवाओं को लेकर सरकारी कार्यक्रम सफल बनाये जा सकते हैं और भगत सिंह के नाम के सहारे हर तबके, जाति, संप्रदाय में बिखरे युवाओं को एक छतरी तले लाकर हर कार्यक्रम सफल बनाया जा सकता है। और इसकी शुरुआत योग दिवस से ही होगी। यानी 21 जून को जब दुनिया योग दिवस मनायेगी और भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान के जरीये दुनिया को योग का महत्व समझायेगा तो अगला सवाल भारत में ही युवाओ को भी योग के जरीये सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के धागे में पिरोने की पहल शुरु होगी। जिसकी अगुवाई नेहरु युवा केन्द्र करेगा। लेकिन नेहरु शब्द कांग्रेस की राजनीतिक विरासत का प्रतीक है तो नेहरु युवा केन्द्र का नाम भी बदल कर राष्ट्रीय युवा संगठन की तर्ज पर रखा जायेगा । चूंकि वैचारिक पृष्छभूमि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ की रहेगी तो उसी अनुकूल युवा स्वयंसेवकों से लेकर नेशनल कैडेट कोर और स्काउट गाईट तक के छात्र-छात्राओं को एक साथ लाया जायेगा। इसके लिये कितनी वृहद योजना बनायी जा रही है इसके संकेत नेहरु युवा केन्द्र के तीनो वाइस चैयरमैन के बदले जाने से लेकर पहले साल चलने वाले प्रोग्राम से भी समझा जा सकता है। युवाओं के लिये पहले बरस सरकार ने नारा दिया है, ‘ एक साल देश के नाम’ इसी के मातहत शुरुआत 350 ट्रेनी और तीस हजार युवा स्वंयसेवको की नियक्ती के जरिये होगी । पहले साठ दिन देश के सीमावर्ती इलाकों में ट्रेनिग और उसके बाद के दस महीनो में देशभर के युवाओं को जोडने के लिये तमाम युवा संगठनो के बीच योग के जरीये पैठ बनाने की पहल शुरु होगी। जाहिर है यह अपने तरह पहला प्रयोग होगा जो सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की विचारधारा के साथ साथ राजनीतिक तौर पर भी बीजेपी के साथ युवाओ को जोड़ेगा। क्योंकि एनसीसी और स्काउट-गाईट के कार्यक्रम सामान्य तौर पर साल में दो महीने के ही होते है बाकि वक्त खाली रहता है ।ऐसे में नेहरु युवा केन्द्र के कई सरकारी कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिये एनसीसी और स्काउट-गाईड के छात्रों को जोडा जायेगा। दरअसल युवाओ को सिर्फ वोट बैंक के नजरिये से ना देखा जाये बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक तौर पर भी राष्ट्रीय भावना से जोडा जाये इसके लिये भी बदलता नेहरु युवक केन्द्र काम करेगा। इसी के मद्देनजर नेहरु युवक केन्द्र में जिन तीन वाइस चैयरमैन को नियुक्त किया गया तीनों ही वैचारिक तौर पर संघ के करीबी हैं।
इसके अलावे वैचारिक तौर पर संघ के करीबी विनय सहस्त्रबुद्दे तमाम युवा कार्यक्रम को देखेंगे तो सूर्या फाउंडेशन इसमें हर तरीके से मदद करेगा । खास बात यह भी है कि मोदी सरकार नेहरु युवा केन्द्र के उस नजरिये को ही पूरी तरह बदल रही है जो सोच इस केन्द्र को बनाते वक्त रखी गयी थी । राष्ट्रीय युवा फेस्टीवल के जरीये देश भर के युवाओ को जोड़ने के लिये सांस्कृतिक कार्यक्रमों को ही इससे पहले आयोजित
किया जाता था। लेकिन अब सरकार की योजनाओ को लागू कराने में भी देश भर के युवाओं को जोडना चाहिये। यह समझ भी विकसित हुई है । असर इसी का है कि नेहरु युवा केन्द्र के सामने नये कार्यक्रमो में स्वच्छ भारत अभियान भी है और जन-धन योजना भी । सासंद आदर्श ग्राम योजना भी है और संघ की सोच को दर्शाना वाला पुनर्जागरण कार्यक्रम भी । यानी प्रदानमंत्री मोदी की योजनाये और आरएसएस की विचारधारा का समावेश कर कैसे नेहरु युवा केन्द्र को काम पर लगाया जा सकता है । यही काम अपने अपने तरीके से संघ के करीबी विण्णु दत्त शर्मा, शेखर राव पेरेला और दिलिप सैकिया वाइस चैयरमैन के पद पर बैठकर फिलहाल देख रहे हैं। यूं भी मोदी सरकार इस हकीकत को भी समझ रहे है कि नेहरु युवा केन्द्र का अपना जो विस्तार है उसके मातहत कोई भी काम करने से देश भर में जिस तेजी से लाभ मिल सकता है वैसे किसी दूसरे संगठन के जरीये संभव नहीं है।
यहां तक कि बीजेपी का युवा मोर्चा भी इस रुप में सक्षम नहीं है। क्योंकि नेहरु युवा केन्द्र के तहत काम करने वाले हर शक्स को स्टाइपेंड के तौर पर कुछ ना कुछ रकम मिलती ही है । फिर 20 से 29 बरस की उम्र के बीच के जिन तीस हजार युवाओ को नेहरु युवा केन्द्र से जोडने की शुरुआत हो रही है उन्हे भी स्टाइपेंड के तौर पर 25 से 30 हजार के बीच कोई रकम दी ही जायेगी । तो एक लिहाज से युवाओ के लिये यह शुराती नौकरी भी होगी और बडी तादाद में संघ के संवयसेवक भी इस काम में खप जायेंगे। खासबात यह भी है कि योग के तौर पर बाबा रामदेव के संगठन स्वाभिमान ट्रस्ट और खुद बाबा रामदेव को युवाओ को लेकर नयी योजना में कही शरीक नहीं किया गया है । आलम तो यह है कि बाबा रामदेव को 21 जून के किसी योग कार्यक्रम के किसी कमेटी तक में नहीं रखा गया है । और इसकी सबसे बडी वजह संघ के सामने का वह संकट है जिसमें उसे लगने लगा है कि योग और युवाओं को जरीये अगर बाबा रामदेव का विस्तार होता चला गया तो संघ के स्वयसेवक भी एक वक्त के बाद बाबा रामदेव के साथ चले जायेंगे। क्योंकि स्वयंसेवकों के सामने पहली बार दोहरी दुविधा है । एक तरफ मोदी सरकार के उन कार्यक्रमों में भी शरीक होना है जो उनकी विचारधारा में फिट नहीं बैठते है और दूसरी तरफ ऱाष्ट्रवाद और स्वदेशी का प्रचार प्रसार ज्यादा आधुनिक तरीके से बाबा रामदेव कर रहे हैं। और स्वामिमान ट्रस्ट के साथ जुडे युवाओं को रोजगार मिलता है जबकि संघ के स्वयसेवक के तैर पर सेवा करने के एवज में कोई सहुलियत संघ अभी भी नही दे पाता है । खास बात यह है कि दो महीने पहले हरिद्रार के पंतजलि भवन यानी
बाबा रामदेव के हेडक्वाटर में संघ ने अपना कार्क्रम किया । और कायर्क्रम में आये युवा स्वयसेवको का सामने यह सवाल उठा कि अगर पंतजलि तमाम सुविधाओ से लैस होकर स्वदेशी की सोच को जिन्दा रख सकता है और राष्ट्रवाद का नारा भी स्वाभिमान ट्रस्ट के तहत जिवित रख सकता तो फिर संघ के साथ ही क्यो चला
जाये । असल में इसका असर भी यह हुआ कि उत्तखंड के कई युवा स्वयसेवक इस सम्मेलन के बाद बाबा रामदेव के साथ आ गये । और उसके बाद उत्तराखंड के संघ प्रचारको ने निर्णय लिया कि अब पंतजलि में कोई कार्यक्रम संघ का नहीं कराया जायेगा । दरअसल मोदी सरकार यह भी समझ रही है कि अगर देश भर के युवा
एक छतरी तले जाये तो फिर विकास की जिस अवधारणा को लेकर वह देश में नयी लकीर खिंचना चाह रही है उसे खिंचने में भी आसानी होगी ।
क्योकि नेहरु युवा केन्द्र की पकड मौजूदा वक्त में देश के बडे हिस्से में है । करीब तीन लाख महिला मंडल अगर नेहरु युवक केन्द्र के मातहत चल रहा है तो बारह हजार से ज्यादा युवा वालेंटियर भी जुडे हुये है । यानी जो काम कभी काग्रेस ने युवा काग्रेस के विस्तार के लिये किया उसी रास्ते को बीजेपी संघ की विचारधारा के विस्तार से जोडगी ।इसीलिये नेहरु युवा केन्द्र की जोनल से लेकर जिला स्तर तक की कमेटियो को पुनर्गठिक किया जा रहा है । उसके बाद विवेकानंद के साथ दीनदयाल उपाध्याय के बारे में भी देश भर के छात्र छात्राये जाने इस दिशा में भी काम होगा । लेकिन इसके लिये हर उस कार्यक्रम को युवाओ को साथ जोडना होगा जो कार्यक्रम अभी तक कई दूसरे संगठन चला रहे है । असर इसी का है कि 21 जून के अंतर्ऱाष्ट्रीय योग दिवस के लिये 35 पेज की जो पुस्तिका निकाली जा रही है उसमें योग और भारतीय संस्कृति की उन्ही बिन्दुओ का जिक्र किया गया है जिनका जिक्र बाबा रामदेव पंतजलि के तहत करते रहे है । इसीलिये 21 जून को बाबा रामदेव ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में जब अपने योग कार्यक्रम के लिये जगह मांगी तो उन्हे यह कहकर जगह नहीं दी गयी कि सुरक्षा का संकट पैदा हो जायेगा । फिर इसी के सामानांतर बाबा रामदेव के दूसरे शिष्य सत्यवान को महत्व देना शुरु कर दिया । आलम यह है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी ने रामदेव के शिष्य सत्यवान से पीएमओ में मुलाकात की और अब संघ समर्थित सुदर्शन चैनल पर भी सत्यवान के योग कार्यक्रम वैसे ही शुरु हो गये है जैसे कभी बाबा रामदेव के शुरु हुये थे । यानी पहली बार संघ ही नही सरकार भी इस सच को समझ रही है कि अगर देशभर के युवा , योग और भगत सिंह के नाम पर जुडते चले गये तो फिर किसी भी कार्यक्रम को देश भर में लागू कराने में कोई परेशानी तो नहीं ही होगी उल्टे राजनीतिक तौर पर भी वैचारिक जमीन खुद ब खुद तैयार होती चली जायेगी ।