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आजादी से पहले उसके पश्चात कुछ समय तक हमारे देश में मोटे अनाज खाने का ही व्यापक प्रचलन था.. भारत के जनजातियां समाज में तो आज भी है| हमारे पूर्वज मोटे अनाज को खाकर.. या यूं कहें मिलाजुला खाते थे मिल जुल कर रहते थे.. शरीर स्नायु लोहे की तरह मजबूत विचारों से धनी थे|
अफ्रीकी जनजातिया तो इन्हें ही खाती हैं कैसे लंबे तगड़े होते है|
मोटा अनाज क्या है? कृषि विशेषज्ञों ने गेहूं धान को छोड़कर समा ,कांगनी, ज्वार , झगोरा, कोदो, चीना आदि को मोटे अनाज में शामिल किया है| इनकी खासियत है यह विषम भौगोलिक परिस्थिति कम उपजाऊ क्षेत्रों में कम पानी अतिसीत अति गर्मी को भी झेल लेते हैं वहीं इनकी पोषक तत्व पर कोई फर्क नहीं पड़ता|
मोटे अनाजों में फाइबर अधिक होता है जो पेट को साफ रखता है कैंसर डायबिटीज को नहीं होने देता रक्त में Gylasemic इंडेक्स को कंट्रोल करता है.. हृदय की की रक्षा करने का गुण पाया जाता है मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत होने से अस्थमा माइग्रेन के अटैक को कम करता है.. लौह तत्व तो सर्वाधिक पाया जाता है खून की कमी का तो सवाल ही नहीं उठता आज आधा भारत एनीमिया अर्थात खून की कमी से ग्रस्त है.. माता बहने विशेष तौर से पीड़ित हैं |
लेकिन हमारा दुर्भाग्य देखिए हमने अनाज को भी गरीब अमीर में बांट दिया मोटे अनाज को गरीबों का अनाज घोषित कर दिया… लेकिन यूरोप अमेरिका में मोटे अनाज की खासियत को पहचान लिया है वहां बड़े बड़े रिटेल स्टोरों पर मोटे अनाज से बने बेकरी उत्पाद की जबरदस्त मांग है.. आप कह सकते हैं निर्धन का पारंपरिक अन्न स्वास्थ्य हेतु खा रहा है संपन्न वर्ग|
पहाड़ी राज्यों में आदिवासी समाज को छोड़कर मैदानी भागों में कम ही प्रचलन है मोटे अनाज को खाने का.. लेकिन धीरे-धीरे लोग का मोटे अनाज कि स्वास्थ्य से जुड़े पहलू से परिचित हो रहे हैं|
मनुष्य के साथ-साथ मोटे अनाज का भूसा चारा जानवरों के कुपोषण को भी दूर करता है|
एक बात और इन अनाजों का नाम मोटा जरूर है लेकिन यह शरीर को पतला करते हैं.. क्योंकि इन में कार्बोहाइड्रेट गेहूं चावल से कम होता है|
आर्य सागर खारी ✒✒✒