पाकिस्तान का फालतू हल्ला
भारत सरकार के कुछ मंत्रियों के बयानों को लेकर भारत के अंदर और बाहर अनावश्यक तूफान उठा हुआ है। एक मंत्री ने कह दिया कि पाकिस्तान डर के मारे चिल्ला रहा है, क्योंकि भारत की फौज ने बर्मा के अंदर घुसकर बागियों को मारा है। पाकिस्तान के जिन नेताओं ने इस बयान पर प्रतिक्रिया जाहिर की है, उनमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तो हैं ही, जनरल मुशर्रफ भी हैं। उन्होंने कह दिया कि तुम पाकिस्तान को बर्मा मत समझ लेना। यहां तक तो उनकी बात ठीक है। यह तो हमने परसों ही लिख दिया था लेकिन मेरे समझ में यह नहीं आता कि यहां परमाणु बम बीच में कैसे आ गए?
नवाज़ शरीफ और मुशर्रफ दोनों ने यह भी कह दिया कि याद रखना, हम किसी से डरने वाले नहीं हैं। हमारे पास परमाणु−बम भी है। हमारी संप्रभुता का कोई उल्लंघन करके तो देखे!
इन पाकिस्तानी नेताओं की मजबूरी है कि वे ऐसे बयान जारी करें लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि वे किनके बयानों पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं? जिन दो मंत्रियों ने ये बयान दिए हैं, वे केंद्रीय सरकार में पहली बार आए हैं और उन्होंने कोई नीति−वक्तव्य नहीं दिए हैं। नेताओं की आदत के अनुसार व्यक्तिगत प्रतिक्रिया कर दी है। ऐसे बयान न तो प्रधानमंत्री ने दिए हैं, न विदेश मंत्री ने और न ही सरकारी प्रवक्ता ने!
भारत सरकार को पता है कि वह चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ौसियों से ऐसे मामलों में कोई सहयोग प्राप्त नहीं कर सकती। पड़ौसी देश में घुसकर कोई सैनिक कार्रवाई तभी की जा सकती है, जब या तो उसकी सहमति हो या वह बिल्कुल अशक्त हो या आप पर पूरी तरह निर्भर हो। पाकिस्तान पर ये तीनों बातें लागू नहीं होतीं! यह जानते हुए पाकिस्तानी नेताओं की उत्तेजना अतिरंजित मालूम पड़ती है।
इसी प्रकार ढाका में मोदी ने पाकिस्तान पर आतंकवाद फैलाने का चलते−चलते जो आरोप लगाया था, उस पर पाकिस्तानी सीनेट में निंदा प्रस्ताव पारित करके बाल−बुद्धि का परिचय दिया है। यह ठीक है कि दूसरे देश में जाकर तीसरे देश की आलोचना करना कूटनीतिक दृष्टि से अनुचित है, फिर भी पाकिस्तान की सीनेट अपने आप को इतने नीचे स्तर पर क्यों उतार रही है?