उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जैसी जघन्य घटना हुई, ऐसी पत्रकारिता के इतिहास में पहले कभी सुनने में नहीं आई। जगेंद्रसिंह नामक पत्रकार को जिंदा जला दिया गया। खुद जगेंद्रसिंह का मृत्यु-पूर्व का बयान और उनके पुत्रों का दावा है कि शाहजहांपुर के पुलिस वालों ने उन्हें जिंदा जला दिया। उनका आरोप है कि यह जघन्य कृत्य प्रदेश के मंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे पर किया गया है। आठ-नौ दिन तक मौत से लड़ने के बाद इस बहादुर पत्रकार ने दम तोड़ दिया। स्थानीय पुलिस का कहना है कि इस पत्रकार ने गुस्से में आकर खुद पर घासलेट छिड़क लिया और आग लगा ली।
लेकिन पुलिस की बात पर कोई भरोसा नहीं कर रहा है। जगेंद्र के पुत्रों का कहना है
22 मई को जगेंद्र ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि वर्मा उनकी हत्या भी करवा सकते हैं। जगेंद्र की यह फेसबुक काफी लोकप्रिय हो चुकी थी। स्थानीय अखबार और टीवी चैनल भी उसकी खबरों को उछालते थे। पुलिसवालों का कहना है कि जगेंद्र निराधार और मनगढंत बातें फैलाता रहता था। उसके खिलाफ कई मामले अदालत में चल रहे थे। 1 जून को पुलिस ने उसके घर पर धावा बोल दिया। उसी समय उसका पूरा शरीर आग में जल गया।
सच क्या है, इसकी जांच हो रही है। यदि वर्मा के इशारे पर पुलिस ने जगेंद्र को जिंदा जलाया है तो वर्मा का इस्तीफा काफी नहीं है। वर्मा और अपराधी पुलिस वालों को इतना कठोर दंड शीघ्रताशीघ्र मिलना चाहिए कि भावी अपराधियों की रुह कांप उठे। मान लें कि गुस्से में आकर या हताश होकर जगेंद्र ने आत्महत्या कर ली है तो भी वर्मा और पुलिस वाले दोषमुक्त नहीं हो सकते। इस आत्महत्या के लिए भी वे ही जिम्मेदार होंगे, क्योंकि उन्होंने एक निर्भीक पत्रकार को मौत की खाई में ढकेला है।
उत्तरप्रदेश सरकार ने शाहजहांपुर के थानेदार का तुरंत तबादला कर दिया है और जांच बिठा दी है। इसमें जितनी देरी होगी, अखिलेश सरकार की उतनी ही बदनामी होगी। शाहजहांपुर ही नहीं, सारे भारत का पत्रकार समाज इस घटना से मर्महित हुआ है।