उगता भारत ब्यूरो
भारत पर राज्य करने वाले अधिकांश मुस्लिम शासक अनपढ़ थे तथा उन्हें इस्लाम का विशेष ज्ञान न होता था। इसी कारण मदरसों में पढे़ उलेमाओं का शासक पर निरतंर दबदबा बना रहता था। मदरसों में पढे़ इस्लामी विद्वानों को सरकारी नौकरियों में ऊँचे पदों पर नियुक्त किया जाता था। ये अधिकांश विदेशी मुसलमान ही होते थे।
छोटे वर्ग के हिन्दुस्थानी मुसलमानों को नौकरियों में नियुक्त नहीं किया जाता था। उलेमा, जो मज़हब के ज्ञाता माने जाते थे, सुल्तानों को मज़हब के अनुसार शरिया कानून आधारित शासन करने पर विवश करते थे। किसी भी शासक को उलेमा के खिलाफ चलने की हिम्मत न होती थी।
इसी कारण इस्लामी विद्वान आज भी मोहम्मद-बिन-कासिम, महमूद गज़नी, मोहम्मद गौरी, बाबर, औरंगजे़ब या टीपू सुल्तान पर जो कट्टर मुस्लिम शासक रहे, नाज़ करते है लेकिन सम्राट अकबर पर नहीं।
शासकों पर उलेमा सर्वदा कड़ी नज़र रखते थे और जब-जब शासन में विकृतियाँ आईं मदरसों में पढे़ इन्हीं उलेमाओं ने सभी प्रकार के जिहादी तरीके अपनाए और स्थिति को संभाला।
मुख्यतया ऐसा दो बार देखने को मिला। पहला तो जब अकबर ने शरिया कानन आधारित शासन न किया तथा उलेमाओं की न चली तो अकबर के निधन के तुरंत बाद मौलाना शेख अहमद सरहिन्दी ने कमांड संभाली और अपनी परी ताकत लगाकर जहाँगीर को विवश किया कि वह अपने पिता अकबर के रास्ते पर न चले तथा केवल शरिया कानून आधारित शासन करे।
मौलाना सरहिन्दी के प्रयत्नों के फलस्वरूप जहाँगीर ने वायदा किया।
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8वीं शताब्दी के विख्यात, मुस्लिम जगत के जाने-माने उलेमा शाह वलीउल्लाह ने जो भारत में जन्मे थे, अफगानिस्तान के बादशाह अहमद शाह अब्दाली को पत्र लिखकर हिन्दुस्थान पर आक्रमण करवाया ताकि मुस्लिम शासन पुनः मज़बूत हों तथा दूसरी काफ़िर ताकतों ( मुख्यतः महाराष्ट्र के मराठाओं) को कुचला जा सके। शाह वलीउल्लाह दिल्ली के प्रसिद्ध मदरसे रहीमिया में हदीस की शिक्षा देते थे जिसे उनके उत्तराधिकारियों ने चालू रखा जिससे वह देश का प्रसिद्ध मदरसा बना रहा।
19वीं शताब्दी में इसी मदरसे में पढे़ विशिष्ट इस्लामी ज्ञानी सईद अहमद ने सन् 1826 ई. में 2400 कि.मी. का दुर्गम रास्ता पार करके अपने अनेक मौलानाओ व मौलवियो को साथ लेकर उस काल के भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग (अब पाकिसतान में) जाकर सिख ताकतों के साथ तलवारों द्वारा जिहाद किया।
शाह वलीउल्लाह द्वारा स्थापित मदरसे से निकले मौलाना नानौतवी ने 19वीं शताब्दी में देवबंद में मदरसा स्थापित किया, जो आज एक विश्व विख्यात मदरसा है।
यह एक छोटा सा विवरण है जो मदरसों की शक्ति का इतिहास बताता है। आज भी भारत के मदरसे गजवा ए हिन्द के विचार को आगे बढ़ा रहे हैं।
(साभार)