एक ओर जहाँ केन्द्र सरकार ने इक्कीस जून को आहूत अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में से कई मुस्लिम संगठनो के विरोध के बाद सूर्य नमस्कार को हटाने का निर्णय कर लिया है वहीँ दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आनुसंगिक संस्था संस्कार भारती ने केन्द्र सरकार से भारतवर्ष के सभी विद्यालयो मे सूर्य नमस्कार और योग को अनिवार्य करने का आग्रह कर वैदिक सनातन धर्म के समर्थकों के दिलों में गहरे तक पैठ बनाने का काम किया है। मुस्लिम परस्त संगठनों द्वारा सूर्य नमस्कार और योग के विरोध के मध्य संस्कार भारती ने विद्यालयों में सूर्य नमस्कार और योग शिक्षा को अनिवार्य करने की माँग कर प्राचीन भारतीय साभ्यता-संस्कृति के पुनरुत्थान की दिशा में प्राचीन गौरवमयी भारतवर्ष के समर्थकों की आवाज को एक नई ऊँचाई प्रदान करने की कोशिश की है ।गौरवमयी प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता-संस्कृति, साहित्य-इतिहास के उत्कृष्ट मूल्यों के प्रतिस्थापन करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा स्थापित की गई संस्कार भारती की अखिल भारतीय उपाध्यक्ष माधवी ताई कुलकर्णी ने 14 मई रविवार को कहा कि केन्द्र सरकार को भारतवर्ष के सभी विद्यालयो मे योग के पाठ्यक्रम और अभ्यास को अनिवार्य कर देना चाहिए। माधवी ताई कुलकर्णी कहती है कि आज के समय मे लोगो की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याये बढ़ती जा रही है। यह गम्भीर चिंता की बात है कि बीमार बच्चो की संख्या भी बढ़ रही है। कंप्यूटर, मोबाईल, फोन, टीवी की वजह से बच्चो का खेलना कम हो रहा है। इसलिए विद्यालयों मे योग शिक्षा अनिवार्य करने से बच्चो का शारिरिक-मानसिक विकास होगा। उनमे तनाव कम होगा साथ ही उनका चारित्रिक विकास भी होगा।
गौरतलब है कि भारतवर्ष में कुछ मुस्लिम परस्त संगठन योग को धार्मिक कर्मकाण्ड बताकर इसका विरोध करते रहे हैं, और पिछले दिनों देश के कई हिस्सों से इस तरह की खबरें आ रही थी कि मुस्लिम समुदाय को सूर्य नमस्कार के बारे मे कुछ आपत्तियाँ है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विद्यालयों में कराए जा रहे योग से भी सूर्य नमस्कार को हटाने की माँग की है। मुस्लिम समुदाय के विरोध को देखते हुए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के कार्यक्रम से सूर्य नमस्कार को हटाने का फैसला कर लिया है। यह कितनी हास्यास्पद स्थिति है कि जो योग भारतवर्ष की प्राचीन गौरवमयी सभ्यता-संस्कृति की अनमोल देन व पुरातन गौरवमयी अस्मिता की पहचान है और जिसके महत्व को आज सम्पूर्ण विश्व स्वीकार कर रहा है अर्थात जिसको वैश्विक स्वीकृति प्राप्त हो चुकी हो, उस योग के राष्ट्रीय कार्यक्रम का विरोध उसके मूल जन्मदातृ देश में ही किया जा रहा है। योग की आध्यात्मिकता को छोड़ भी दिया जाये तो भी योग के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ के लिए उपयोगी होने से किसी की भी कोई असहमति नहीं हो सकती है। यह बात सभी जानते हैं कि योग बिना आर्थिक व्यय के ही अनेक व्याधियों को नष्ट अर्थात दूर करने की क्षमता रखता है। परन्तु यह जानकर भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के दिन सामूहिक योग करने का व इसके ही एक आसन सूर्य नमस्कार के बहाने कुछ मुस्लिम नेता और उनकी सहयोगी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष संस्थाएँ इसका विरोध कर रहे हैं और मोदी सरकार इस मामले में देश में सर्वमान्य स्थिति बनाने में असमर्थ , असफल होकर विरोधियों के सामने झुकती नजर आ रही है ।
यह कितनी हैरत की बात है कि भारतवर्ष में मुस्लिम और अन्य तथाकथित धर्म निरपेक्ष संगठनों के द्वारा सूर्य नमस्कार का विरोध किये जाने के समक्ष देश के प्रधानमंत्री जहाँ झुकते नजर आ रहे हैं वहीँ दूसरी ओर भारतीय योग पद्धत्ति को वैश्विक स्वीकृति मिल रही है। भारतवर्ष में योग को धार्मिक कर्मकाण्ड से जुड़ी प्रक्रिया बताने की भले ही कितनी कोशिशें होती हों, लेकिन एक अमेरिकी अदालत ने ऐसे दावों को बेबुनियाद करार दिया है। कैलिफोर्निया की अपीलीय अदालत का कहना है कि योग साम्प्रदायिक नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है और इसे करने या सिखाने से किसी भी तरह से धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होता। अमेरिका के सैन डियागो के एक विद्यालय इंकिनिटास डिस्टि्रक्ट स्कूल में योग की कक्षा को लेकर दो छात्रों और उनके अभिभावकों ने आपत्ति जताई थी और मुकदमा दायर करते हुए दावा किया था कि योग कार्यक्रम से हिन्दू और बौद्ध मत को बढ़ावा दिया जा रहा है और ईसाई धर्म के लिए असुरक्षा पैदा हो रही है। इस मामले में डिस्टि्रक्ट कोर्ट ने एक निचली अदालत का फैसला बरकरार रखते हुए अभिभावकों के दावे को खारिज कर दिया। यह अप्रैल के पहले सप्ताह की बात है। अदालत ने कहा कि योग कुछ सन्दर्भों में धार्मिक हो सकता है लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि विद्यालय में सिखाए जा रहे योग में ऐसा कोई प्रयास हो रहा है। डिस्टि्रक्ट कोर्ट ने कहा कि विद्यालय में सिखाया जा रहा योग किसी धार्मिक या आध्यात्मिक कर्मकाण्ड से सम्बद्ध नहीं है। योग शरीर और मन को शान्ति देने की पाँच हजार से भी अधिक वर्ष पुरानी भारतीय शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है। अदालत ने अपना फैसला देने से पहले योग विशेषज्ञों द्वारा पारम्परिक जिम की कक्षाओं की बजाय योग की कक्षाएँ संचालित करने का वीडियो भी देखा। अदालत ने कहा, सभी तथ्यों को देखते हुए हमने पाया कि योग प्रशिक्षण अपने उद्देश्य के स्तर पर पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है। इसके माध्यम से किसी भी धर्म को प्रचारित या प्रसारित नहीं किया जा रहा। अमेरिका के कई स्कूलों में इन दिनों योग की कक्षाएँ संचालित की जा रही हैं।
भारतवर्ष की प्राचीन विधा योग को संयुक्त राष्ट्र की भी स्वीकृति मिल चुकी है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून ने इस बात की स्वीकृति प्रदान करते हुए कहा कि योग भेदभाव नहीं करता है । जब अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने अपना पहला आसन करने की कोशिश की तो इससे उन्हें एक संतुष्टि की अनुभूति हुई। योग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सेहत और तंदुरूस्ती के लिए एक सरल, सुलभ और समावेशी साधन उपलब्ध करवाता है ।बान ने कहा कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में प्रमाणित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस शाश्वत अभ्यास के लाभों और संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों एवं मूल्यों के साथ इसके निहित तालमेल को मान्यता दी है। योग शारीरिक एवं आध्यात्मिक सेहत और तंदुरूस्ती के लिए एक सरल, सुलभ और समावेशी साधन उपलब्ध करवाता है। यह साथी इंसानों और हमारे इस ग्रह के प्रति सम्मान को बढ़ावा देता है। बान ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का विचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मस्तिष्क की उपज बताते हुए कहा कि योग को जन स्वास्थ्य में सुधार लाने, शांतिपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने और सभी के लिए सम्मानजनक जीवन में प्रवेश के रूप में ही देखें ।गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व समुदाय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग को प्रसारित करने की अपील करते हुए अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की पैरवी की थी। दिसम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम कुटेसा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। भारत द्वारा लाए गए इस प्रस्ताव के समर्थन में 170 देशों ने मत दिया था।
भारतवर्ष में योग का प्रचार-प्रसार कोई नई बात नहीं है। आपातकाल अर्थात इमरजैंसी में उभरे धीरेन्द्र ब्रह्मचारी उस दौरान नियमित रूप से दूरदर्शन अर्थात सरकारी टीवी पर योग प्रशिक्षण देते थे जिसे टीवी की कम व्याप्ति के बाबजूद बहुत से लोग देखा करते थे। यद्यपि आपातकाल में श्रीमती इंदिरा गाँधी का साथ देने के कारण बहुत लोग उनसे नाराज थे परन्तु उस नाराजगी की स्थिति में भी योग कभी निशाना नहीं बना, परन्तु जैसे ही भारतीय जनता पार्टी ने योग की लोकप्रियता से प्राचीन भारतीय सभ्यता- संस्कृति को मिलती वैश्विक स्वीकृति को नेतृत्व देने की कोशिश शुरू की कीं तो समाज के एक हिस्से को योग से भी अरुचि होने लगी। और योग के नाम पर वे लोग अभी नाक भों सिकोड़ रहे हैं और अपनी मजहबी आस्थाओं में से तर्क तलाशने लगे हैं।
21 जून को विश्व भर मे आयोजित होने जा रही अन्तरराष्ट्रीय योग का मुख्य कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र संघ के न्यूयार्क स्थित मुख्यालय एवं भारतवर्ष मे राजपथ पर होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत करीब 45 हजार लोग दिल्ली के राजपथ पर योग करेंगे। संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को विश्व योग दिवस घोषित किया है। केन्द्र सरकार इस अवसर पर भव्य आयोजन करने जा रही है। प्रधानमंत्री चालीस हजार लोगों के साथ योग कर विश्व रिकॉर्ड भी बनायेंगे । कार्यक्रम के आयोजनकर्ता आयुष मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को 192 देशों की तरफ से समर्थन मिला है। देश के 651 जिलों में योग कैंप लगवाए जा रहे हैं। लगभग 11 लाख एनसीसी कैडेट्स देश भर में योग करेंगे। राजपथ पर आयोजित होने वाले मुख्य कार्यक्रम में सूरक्षा बलो के भी 5 हजार जवान योग करेंगे। अमेरिका में योग दिवस 21 जून पर आयोजित होने जा रही कई कार्यक्रमों की तैयारी के बीच एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक न्यूयॉर्क में भारत के महावाणिज्यदूत दयानेश्वर मुलय ने कहा है कि पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का मकसद इस प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को आधुनिक समय का मंत्र बनाना है। योग दिवस इस बात की स्वीकारोक्ति है कि योग भारत से शुरू हुई सभ्यता-संसृति की विरासत है।