सम्प्रदायवाद का अंत कर सकता है वेद का मानवतावाद : बाबा नंद किशोर मिश्र
यजुर्वेद पारायण यज्ञ के अंतिम सत्र 18 अप्रैल को मुख्य वक्ता के रूप में अपना वक्तव्य रखते हुए अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबा पंडित नंदकिशोर मिश्र ने कहा कि संप्रदायवाद का अंत वेद के मानवतावाद से ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि जब मानव मानवतावादी होकर कार्य करने लगता है तो संप्रदायवाद का भूत उसके ऊपर से उतर जाता है। आज हिंदू समाज से इतर जितने भी संप्रदाय हैं उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के लिए उनकी सांप्रदायिकता का अंत करने के लिए वेद की मानवीय शिक्षाओं को दिया जाना आवश्यक है। हिंदू महासभा के नेता ने कहा कि संप्रदायवादअंधविश्वास पर आधारित है। यह असहिष्णुता पर आधारित है। उन्होंने कहा कि असहिणुता का अर्थ अन्य जाति, धर्म और परंपरा से जुड़े व्यक्ति के विश्वासों, व्यवहार व प्रथा को मानने की अनिच्छा हैं। जबकि वेद का मानवतावाद सबका साथ सबका विकास में विश्वास करता है । वसुधैव कुटुंबकम की पवित्र भावना यदि किसी आदर्श संस्कृति के पास है तो वह केवल वैदिक संस्कृति के पास है।
बाबा नंद किशोर मिश्र ने कहा कि अपने जन्म से ही ईसाई और इस्लाम धर्म के मानने वाले लोग दूसरे धर्मों के प्रति असहिष्णु रहे हैं। उनका उद्देश्य संसार से अन्य सभी सभ्यताओं को मिटाकर अपने अपने धर्म का झंडा फहराना रहा है। मजहब को मानने वाले लोग दूसरे संप्रदायों के विरुद्ध हिंसा सहित अतिवादी दृष्टिकोण को अपनाने पर बल देते हैं। जबकि वैदिक संस्कृति सबको गले लगा कर चलने में विश्वास रखती है। उसका मानना है कि संसार में सर्वत्र शांति हो जिसके लिए मानव को मानव बना कर आगे बढ़ा जाए।
बाबा नंद किशोर मिश्र ने कहा कि उगता भारत समाचार पत्र के द्वारा इतिहास की जिस प्रकार सटीक व्याख्या की जा रही है उससे देश की युवा पीढ़ी को बहुत लाभ मिल रहा है ।
उन्होंने कहा कि धर्म की संकीर्ण व्याख्या लोगों को धर्म के मूल स्वरूप से अलग कर देती है। धर्म की संकीर्ण व्याख्या ही साम्प्रदायिकता का कारण है । इसी प्रकार की व्याख्या से इतिहास को गलत ढंग से लिखे जाने के लिए मानव प्रेरित होता है।
हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि भारत के धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों ने भी वेद के मानवतावाद और दूसरे मजहबों की किताबों के सांप्रदायिक दृष्टिकोण को गलत ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उन्होंने वेद की मानवतावादी शिक्षा को सांप्रदायिक माना है और मजहब की तोड़ने वाली प्रवृत्ति को मजहब का उदार स्वरूप माना है। जिससे भारत में दंगे, फसाद , उत्पात, उग्रवाद, आतंकवाद आदि आज आवश्यकता इस बात की है कि वेद की धार्मिक शिक्षाओं को लागू कर मजहब की उत्पाती सांप्रदायिक शिक्षाओं को विद्यार्थियों से दूर रखा जाए।