भारत की राज्य व्यवस्था भी रही है लोक हितकारी : ठाकुर विक्रम सिंह
यजुर्वेद पारायण यज्ञ में मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित हुए राष्ट्र निर्माण पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष ठाकुर विक्रम सिंह ने 18 अप्रैल के अंतिम सत्र में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत ने प्राचीन काल में मानवता के कल्याण को अपना आदर्श बनाया। वेद के संदेश को अपने लिए आदेश मानकर हमारे पूर्वजों ने प्राणी मात्र के हितचिंतन के लिए काम किया। उन्होंने जो भी आविष्कार किए उनका उद्देश्य मानवता का विनाश करना नहीं ना अपितु उत्थान करना था । आर्य जगत के भामाशाह के रूप में विख्यात ठाकुर विक्रम सिंह ने कहा कि आज के भौतिक विज्ञानियों ने कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए रासायनिक खादों व कीटनाशकों की खोज की। उससे एक बार तो लगा कि धरती के हर व्यक्ति के हिस्से में समृद्घि आने वाली है-पर कुछ देर पश्चात पता चला कि समृद्घि नहीं आकर विनाश की भयंकर आंधी आ चुकी है। आज कृषि उत्पादन भी विषयुक्त हो चुके हैं। इस प्रकार पश्चिम के विज्ञानियों की खोज ही उनके गले की हड्डी बन गयी है। जिस खोज से जीवन मिलने की आशा थी-वही जीवन ज्योति को बुझाने का कार्य कर रही है।
उन्होंने कहा कि भारत की न्यायप्रिय और लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को भुलाकर या उसकी उपेक्षा करके विश्व के देशों ने अपने साम्प्रदायिक विचारों को फैलाने के लिए मजहब का दुरूपयोग किया और साम्प्रदायिक राजतंत्र को अपनाया। इस प्रयास में बड़ी-बड़ी सुप्रसिद्घ विश्व सभ्यताओं को मिटा दिया गया, लोगों की आंखों में एक सपना बसाया गया कि ऐसा करके ही संसार स्वर्ग बनेगा, परंतु परिणाम आशातीत नहीं आये। राजनीति लोगों की आकांक्षाओं, आशाओं और अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर सकी। उसने संप्रदाय के साथ गठबंधन करके जनसंहार करने आरंभ कर दिये। इससे लोगों का मन राजनीति से भी ऊब गया है। जबकि वेद मानवता के उत्थान के लिए राजा और राज्य व्यवस्था को लोकहितकारी बनाने पर बल देता है।
आज राजनीति लोककल्याणकारी राज्य देने की बात करती है, परंतु उसके पास इस व्यवस्था को स्थापित करने के लिए कोई चिंतन नहीं है। संसार में राजनीति पर्याप्त हो रही है-पर फिर भी सर्वत्र अराजकता है। राजनीतिज्ञों ने विश्व में समस्या उत्पन्न करने के लिए ठेके पर खेती करनी आरंभ की (संप्रदाय से गठबंधन करके) और आज समस्याओं का उत्पादन इतना बढ़ गया है कि हर गोदाम में उनका ढेर लग गया है, और वे सड़ रही हैं। जिन देशों में भुखमरी फैली हुई है-उनमें राजनीति के गोदाम में लगे समस्याओं के ढेर में पड़े सड़ाव का ही परिणाम इस भुखमरी को मानना चाहिए। जहां ऐसी स्थिति है-वहां संप्रदाय या मजहब के ठेकेदार सियासत को गाली देकर जनता को भ्रमित कर रहे हैं कि इसमें हमारा दोष नहीं है। हमने तो सियासत को अपना समर्थन इसलिए दिया था कि धरती पर स्वर्ग (जन्नत) लाएंगे। यदि यह ऐसा नहीं कर पायी है तो इसमें हमारा दोष न होकर इसी का दोष है। इसलिए इसी को गोली मारो और इसी को गाली दो।