वेदों के पारायण यज्ञ से राष्ट्र यज्ञ की ओर

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आर्य जाति की अधोगति और आर्य समाज के सिकुड़ने के क्या कारण हैं ? जाति वही जीवित रहती है जो अपनी रक्षा स्वयं कर सकती है। जाति वही सुरक्षित है जिसमें बुद्धि भी है और बल भी है । बल और बुद्धि का सम्मिश्रण केवल मनुष्य जाति ही नहीं प्रत्युत प्रत्येक प्राणी के जीवित रहने के लिए भी आवश्यक साधन है। इस आर्य जाति से कब क्यों और कैसे बुद्धि और बल को पृथक किया गया ? वह घड़ी इस आर्य जाति के एवं देश के घोर विनाश और अंधकार की थी , जब सहिष्णुता और अहिंसा का प्रचार आरंभ हुआ। यह दोनों धारणाएं कर्मशील जीवन को पथ च्युत करते हैं। यह दोनों धारणाएं जीवन के लिए सरल और सरस अवगुण हैं। यह देश और जाति को स्वत्व विहीन करती हैं। शारीरिक निर्बलता देती हैं । पराक्रम का लोप होता है। साम्राज्य का विनाश होकर देश की सीमाएं सिकुड़ती हैं। शत्रु को आपके ऊपर हावी होने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। प्रत्येक कार्य में असहिष्णुता और हिंसा का आश्रय भी नहीं लिया जा सकता। परंतु सहिष्णुता और अहिंसा पर असीम निर्भरता के कारण जाती निराश्रित हो गई। परिणाम आर्य देश शत्रुओं के आधिपत्य में चला गया। जातियों का जीवन और विकास बल तथा बुद्धि दोनों पर आश्रित है। यत्र ब्रह्म च क्षत्रम च।
ब्रह्मत्वहीनता बुद्धि विनाश को और क्षात्र धर्म का त्याग जाति के विनाश को आवाहन करता है। यही इस देश के साथ हुआ है, हो चुका है और आगे भी हो सकता है। अतः भारतीयों को अपने बौद्धिक विनाश और शारीरिक दुर्बलता को दूर करने के लिए असीम अनथक परिश्रम करना होगा। आर्य साम्राज्य कहां तक फैला हुआ था ? कहां तक इसकी सीमाऐं थीं,? आर्य सभ्यता कैसे प्रत्येक देश के धर्म और आचरण की जन्मदात्री थी ? यह भारत वासियों को समझना होगा।
आज देश में पार्टी तंत्र है। सभी पार्टियां एक दूसरे पर कीचड़ उछालती हैं । एक दूसरे को गलत, बेईमान, लुटेरा, भ्रष्ट कहते लड़ते दिखाई देती हैं। किंतु सबका एक ही उद्देश्य है मात्र सत्ता प्राप्त करना और राज्य सत्ता का सुख भोगना। सब का एक ही तरीका है। उसके रहते देश का न भला हुआ है और ना होगा। विधायक और सांसदों को विकास के नाम पर मिलने वाले धन का कम से कम 80% धन बंदरबांट में चला जाता है। ज्यों ज्यों दवा दी जा रही है त्यों त्यों रोग बढ़ता ही जा रहा है। देश की जनता दलों के दलदल में फंसी छटपटा रही है। उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। देश जातिवाद, संप्रदायवाद, आरक्षणवाद, आतंकवाद, घोटालावाद ,भ्रष्टाचारवाद, चरित्रहीनता, महंगाई भुखमरी की चक्की में पिस रहा है । देश आज बारूद के ढेर पर खड़ा नजर आ रहा है। फिर भी सभी दल दावा कर रहे हैं कि हम उपचार करेंगे।
काश स्वतंत्रता के बाद भारत देश की राजनीति भारतीय राजनीति से प्रेरित योग्य विद्वानों के हाथों में गई होती तो भारत पुनः विश्व का प्रेरणास्रोत बन सकता था। भारत की राजनीति एवं राज व्यवस्था क्या थी और क्या होनी चाहिए ? आज की संपूर्ण व्यवस्था को इस विषय पर सोचना चाहिए । यदि इस दिशा में सोचकर सही कदम उठाए गए तो तभी वेदों की यज्ञ परंपरा और वैदिक संस्कृति की रक्षा होना संभव है।
मैं इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त करता हूं कि उगता भारत समाचार पत्र परिवार ने यज्ञों की इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए इस शानदार यज्ञ का आयोजन किया। मेरा मानना है कि अब राष्ट्र यज्ञ के लिए भी हम सबको उठ खड़ा होना चाहिए।

मोहन देव शास्त्री
(विद्यावाचस्पति, आयुर्वेद रत्न, साहित्य रत्न संस्कृत)

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