कुछ लोगों ने रीढ़ की हड्डी पर कुंडलिनी की ऊपर की ओर जाती हुई पिक्टोरल रिप्रजेंटेशन देखी होगी और उनकी योग में रुचि जग गई। जबकि कोई अन्य व्यक्ति योग स्टूडियो में जाकर शीशे के सामने योग एरोबिक्स करता है। वह अपने शरीर को देखता है, अपने आसन को ध्यान से देखता है और उन्हें लगता है कि योग शारीरिक होता है और यह उनके शरीर के आकार को बनाकर रखता है। आजकल हिन्दू बनाम मुस्लिम के दायरे में योग को लेकर बहस हो रही है लेकिन योग आपको किसी दल के अधीन नहीं करता है। योग के नाम पर किसी धार्मिक राजनीतिक विचारधारा का प्रोपेगंडा नहीं किया जाना चाहिए। योग की उत्पत्ति धर्म की आधुनिक समझ पर छपी किताबों के किसी भी पन्ने से नहीं होती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून विश्व योग दिवस के रूप में स्वीकार होने पर इस पर सबका ध्यान गया है।
योग को किसी साम्प्रदायिक चश्मे से देखने की आवश्यकता नही है यह हमारे शरीर मन और भावनाओं को नियंत्रित करने वाली एक ऐसी जीवन शैली है जिसे अपनाकर मनुष्य अपने जीवन को गतिशील और प्रगतिशील बना सकता है। ऐसी जीवनशैली का विरोध करना अज्ञानता है।