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विशेष संपादकीय

योग को साम्प्रदायिक रंग मत दो

yogaयोग चित्त की वृत्तियों के निरोध का नाम है। चित्त की वृत्तियां हर व्यक्ति को समान रूप से दुखी करती हैं। यदि उन पर व्यक्ति नियंत्रण स्थापित कर लेता है तो व्यक्ति महानतम कार्यों का निष्पादन करने में सफल हो जाता है। आज इसी योग को विश्व स्तर पर स्थापित करने की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं। भारत के विश्वगुरू बनने के ये शुभ संकेत हैं। जब भी आप योग के बारे में सुनते हैं तो आप इसके बारे में अपने दिमाग में एक खाका तैयार करते हैं कि आखिर यह आपके लिए क्या है? योग का नाम आते ही कुछ के दिमाग में कांटों के बिस्तर पर बैठा फकीर याद आता होगा, जो ध्यान में लीन है और उन्हें लगता होगा कि यही योग है। कुछ लोग किसी पहाड़ की गुफा में बैठे किसी साधु के बारे में सोचते हैं और योग को उससे जोड़ कर देखते हैं।

कुछ लोगों ने रीढ़ की हड्डी पर कुंडलिनी की ऊपर की ओर जाती हुई पिक्टोरल रिप्रजेंटेशन देखी होगी और उनकी योग में रुचि जग गई। जबकि कोई अन्य व्यक्ति योग स्टूडियो में जाकर शीशे के सामने योग एरोबिक्स करता है। वह अपने शरीर को देखता है, अपने आसन को ध्यान से देखता है और उन्हें लगता है कि योग शारीरिक होता है और यह उनके शरीर के आकार को बनाकर रखता है। आजकल हिन्दू बनाम मुस्लिम के दायरे में योग को लेकर बहस हो रही है लेकिन योग आपको किसी दल के अधीन नहीं करता है। योग के नाम पर किसी धार्मिक राजनीतिक विचारधारा का प्रोपेगंडा नहीं किया जाना चाहिए। योग की उत्पत्ति धर्म की आधुनिक समझ पर छपी किताबों के किसी भी पन्ने से नहीं होती है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून विश्व योग दिवस के रूप में स्वीकार होने पर इस पर सबका ध्यान गया है।

योग को किसी साम्प्रदायिक चश्मे से देखने की आवश्यकता नही है यह हमारे शरीर मन और भावनाओं को नियंत्रित करने वाली एक ऐसी जीवन शैली है जिसे अपनाकर मनुष्य अपने जीवन को गतिशील और प्रगतिशील बना सकता है। ऐसी जीवनशैली का विरोध करना अज्ञानता है।

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