रमजान में गोमांस—त्याग
उत्तर प्रदेश के कई नामी—गिरामी मौलानाओं और मुस्लिम जमातों ने इस बार कमाल का ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि रमजान का महिना शुरू हो रहा है। इस पवित्र अवधि के दौरान वे गोमांस का सेवन नहीं करेंगे। यों भी उत्तर प्रदेश के मुसलमान गोमांस कम खाते हैं लेकिन यह शायद पहला मौका है, जब उ.प्र.मुस्लिम व्यापारी संघ ने ऐसी घोषणा की है। उसकी घोषणा का समर्थन सुन्नी और शिया, दोनों संप्रदायों के नेताओं ने किया है। कई मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर दोनों संप्रदायों पर गहरे मतभेद हो जाते हैं लेकिन गोमांस के मुद्दे पर उनकी एक राय होने का असाधारण महत्व है।
क्यों है? क्योंकि दोनों चाहते हैं कि रमजान के पवित्र माह में, जबकि देश के लगभग सभी मुसलमान उपवास रखते हैं, वे अपने हिन्दू भाइयों की भावना का ध्यान रखें। उन्हें गोमांस या किसी भी प्रकार का मांस खाने से कोई नहीं रोक सकता लेकिन वे स्वेच्छा से यह त्याग कर रहे हैं, यह अपने आप में बड़ी बात है। इस बात का एक दूसरा पहलू भी है। उनके गोमांस छोड़ने से हिन्दुओं और सिखों के दिल में रमजान के प्रति सम्मान का भाव अपने आप पैदा होगा। उपवास तो किसी भी नाम से रखा जाए, वह शरीर और आत्मा के लिए फायदेमंद होता है। उससे सेहत भी बुलंद होती है और संयम भी बढ़ता है। यही हर धर्म की शिक्षा भी है। खुद इमाम अली को उद्धृत करते हुए मुस्लिम व्यापारी संघ के अध्यक्ष शमीम शम्सी ने कहा है कि “ गोमांस तो जहर है जबकि गाय का दूध अमृत है।”
मैं तो इससे भी थोडा आगे जाना चाहता हूँ । मांस तो मांस है। क्या गाय का मांस और क्या सूअर का मांस? क्या मुर्गी का मांस और क्या बकरी का मांस? कोई भी मांस खाना जरूरी क्यों है? जो व्यक्ति मांस नही खाता, क्या वह अच्छा मुसलमान नही हो सकता? क्या शाकाहारी होना, इस्लाम में मना है? सारी दुनिया के डॉक्टर मानते है कि शाकाहार मनुष्य का स्वाभाविक आहार है। कुछ पशु जरूर ऐसे हैं, जो मांस के बिना नहीं रह सकते। वे प्रायः हिंसक और आक्रामक होते हैं। मनुष्यों को वैसा क्यों होना चाहिए? यदि रमजान जैसे पवित्र और आध्यात्मिक मौके पर दुनिया के सारे मुसलमान संकल्प कर लें कि वे शराब की तरह मांस का भी सेवन नहीं करेंगे तो वे अपने स्वास्थ्य और संयम को तो सबल बनाएँगे ही, वे दुनिया के सभी हिन्दुओं, इसाईयों, यहूदियों और नास्तिकों के लिए भी एक मिसाल पेश करेंगे।