हमें सत्यार्थ प्रकाश क्यों पढ़ना चाहिए ?

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*”ओ३म्”*
*सत्यार्थप्रकाशः क्यों पढ़ें ?* इसका उत्तर निम्नलिखित है :–
१. जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त (तक) मानव जीवन की लौकिक – परालौकिक समस्त समस्याओं को सुलझाने के लिए यह ग्रन्थ एक मात्र अमूल्य ज्ञान का भण्डार है |
२. यह एक ऐसा ग्रन्थ है, जो पाठकों को इस ग्रन्थ में प्रतिपादित सर्वतंत्र, सार्वजनीन, सनातन मान्यताओं के परीक्षण के लिए आह्वान करता है |
३. इस ग्रन्थ में ब्रह्मा से लेकर जैमिनी मुनि पर्यन्त ऋषि मुनियों के वेद प्रतिपादित सारभूत विचारों का संग्रह है |
४. अल्पविद्यायुक्त स्वार्थी, दुराग्रही लोगों ने जो वेदादि सत्य शास्त्रों के मिथ्या अर्थ करके उन्हें कलंकित करने का दुःसाहस किया था, उनके मिथ्या अर्थों का खण्डन और सत्यार्थ (सत्य अर्थों) का प्रकाश अकाट्य युक्तियों और प्रमाणों से इस ग्रन्थ में किया गया है | किसी नवीन मत की कल्पना इस ग्रन्थ में लेशमात्र भी नहीं है |
५. वेदादि सत्य शास्त्रों के अध्ययन के बिना सत्य ज्ञान की प्राप्ति सम्भव नहीं | उनको समझने के लिए यह ग्रन्थ कुञ्जी का काम करता है | इस ग्रन्थ के अध्ययन करने से वेदादि सत्य शास्त्रों का सत्य – सत्य अर्थ समझना सरल हो जाता है |
६. अत्यन्त समृद्धिशाली, सर्वदेश शिरोमणि भारत देश का पतन किस कारण से हुआ एवं पुनः उत्थान कैसे हो सकता है, इस विषय पर पूर्ण प्रकाश डाला गया है |
७. मानव जाति के पतन का कारण जो मतवादियों की मिथ्या धारणाएँ हैं, उनका पूर्णतया निष्पक्ष, सप्रमाण और युक्तिपूर्ण खण्डन इसमें किया गया है |
८. इसमें मूल दार्शनिक सिद्धान्तों को ऐसी सरल रीति से समझाया गया है कि इसे पढ़कर साधारण शिक्षित व्यक्ति भी एक अच्छा दार्शनिक बन सकता है | जिस ने इस ग्रन्थ को न पढ़कर नव्य (नये) महाकाव्य अनार्ष ग्रन्थों के आधार पर दार्शनिक सिद्धान्तों को पढ़ा है उस की मिथ्या धारणाओं का खण्डन और सत्य मान्यताओं का मण्डन इस ग्रन्थ का अध्ययन करने वाला कर सकता है |
९. ऋषि मन्तव्यों पर इस ग्रन्थ को पढ़ने से पूर्व जितनी भी शंकाएं किसी को होती हैं, वे सब इस के पढ़ने से समूल नष्ट हो जाती है, क्योंकि उन सब शंकाओं का समाधान इसमें विद्यमान है |
१०. धर्म के मौलिक और वास्तविक स्वरूप का पूर्ण परिचय केवल इस ग्रन्थ में मिलता है |
११. इसकी एक विशेषता यह भी है कि अध्याय शब्द के स्थान पर समुल्लास शब्द का प्रयोग किया गया है, जो दो शब्द
(सम् + उल्लास = समुल्लास) हुआ है, जिसका अर्थ है (सम्) यानि समान और (उल्लास) यानि प्रसन्नता | इनको मिलाने पर समुल्लास का अर्थ हुआ समान प्रसन्नतापूर्ण | अर्थात् सत्यार्थप्रकाश में सभी समुल्लासों को लिखते समय एक जैसा प्रसन्न भाव रखा गया है | किसी भी विषय की व्याख्या करने, खण्डन – मण्डन करने अथवा समीक्षा करने में एक जैसा प्रसन्न भाव रखा गया है | लेशमात्र भी कहीं कोई नाराजगी, द्वेष, ईर्ष्या, अन्यथा भाव या पूर्वाग्रह युक्त होकर इस ग्रन्थ को नहीं लिखा गया है |
१२. ऋषि दयानन्द से पूर्ववर्ती ऋषियों के काल में संस्कृत की व्यापक रूप में व्यवहार था और वेदों के सत्य अर्थ का ही प्रचार था | उस समय के सभी आर्ष ग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध होते हैं | महाभारत के पश्चात् सत्य वेदार्थ का लोप और संस्कृत का अति ह्रास हुआ | विद्वानों ने अल्प विद्या और स्वार्थ के वशीभूत होकर जनता को भ्रम में डाला एवं मतवादियों ने बहुत से आर्ष ग्रन्थ नष्ट करके ऋषि – मुनियों के नाम पर मिथ्या ग्रन्थ बनाये | उन के ग्रन्थों में प्रक्षेप किया जिस से सत्यविज्ञान का लोप हुआ | उस नष्ट हुए विज्ञान को महर्षि ने इस ग्रन्थ में प्रकट किया है | महर्षि ने इस ग्रन्थ में बहुमूल्य मोतियों को चुन-चुनकर आर्यभाषा में अभूतपूर्व माला तैयार की, जिस से सर्वसाधारण शास्त्रीय सत्य मान्यताओं को जानकर स्वार्थी विद्वानों के चंगुल से बच सकें |
१३. महर्षि दयानन्द कृत ग्रन्थों में सत्यार्थप्रकाश प्रधान ग्रन्थ है | इसमें उनके सभी ग्रन्थों का सारांश आ जाता है |
१४. इसके पढ़े बिना कोई भी आर्य ऋषि के मन्तव्यों और उनके कार्यक्रमों को भली प्रकार नहीं समझ सकता एवम् अन्यों के उपदेशों में प्रतिपादित मिथ्या सिद्धान्तों को नहीं पहचान सकता | जिसे अनेक भ्रान्त धारणाएं मस्तिष्क में बैठ जाती हैं जिनके निराकरण के लिए इस ग्रन्थ का अनेक बार अध्ययन सर्वथा अनिवार्य है |
१५. इस में आर्य समाज के मत – मतान्तरों के अन्तर को अनेक स्थानों पर एवम् एकादश समुल्लास में विशेष रूप से खुलकर समझाया गया है |
१६. द्वादश समुल्लास में, नास्तिक और बौद्ध, जैन, तथा
त्रयोदश समुल्लास में,
ईसाई मत और
चतुर्थ समुल्लास में,
मुस्लिम मत
की समीक्षा किया गया है |
१७. सत्यार्थप्रकाश को पढ़ने से मन में राष्ट्रभक्ति की भावना जागृत होती है और देश के लिए मर – मिटने के लिए व्यक्ति को शिक्षा मिलती है | इसमें हमारे देश के गौरव के बारे में बतलाया गया है | इसे पढ़ने से क्रान्तिकारी विचार उत्पन्न होते हैं और देश के लिए कुछ करने के विचार आते हैं | इसे पढ़ने वाला व्यक्ति अपने देश, संस्कृति से प्रेम करने लगता है |
इस पुस्तक से निम्नलिखित क्रान्तिकारियों को राष्ट्र के लिए मर मिटने की शिक्षा मिली —
# रामप्रसाद बिस्मिल
# शहीद भगत सिंह
# चन्द्रशेखर आजाद
# लाला लाजपत राय
# वीर सावरकर
# स्वामी श्रद्धानन्द
# श्याम जी कृष्ण वर्मा
# भाई परमानन्द
# पंडित गुरूदत्त
# हंसराज
आदि |
इन क्रान्तिकारियों, राष्ट्रभक्तों की जीवनी, आत्मकथा में उन्होंने स्वयं यह लिखा है कि सत्यार्थप्रकाश ने उनके जीवन का तख्ता पलट दिया और उन्होंने स्वयं यह लिखा है कि वे सत्यार्थप्रकाश से प्रेरित है |
१८. सत्यार्थप्रकाश को पढ़ने वाला व्यक्ति सत्य को जान जाता है, वह सभी तरह के पाखण्डों, अंधविश्वासों, कुरीतियों, मिथ्या बातों को जान जाता है और उस व्यक्ति को कभी भूत – प्रेत नहीं सताते, कभी किसी ग्रह का योग उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाता | जो इस ग्रन्थ को पढ़ लेता है, वह समस्त पाखण्डों, अंधविश्वासों और मिथ्या बातों से पूर्णतः मुक्त हो जाता है |
१९. सत्यार्थप्रकाश में वैदिक जीवन पद्धति की सारी विशेषताओं का वर्णन किया गया है |
२०. सत्यार्थप्रकाश को पढ़ने वाला व्यक्ति ईश्वर का सच्चा स्वरूप जान जाता है |
ईश्वर क्या है ?
ईश्वर के क्या – क्या कार्य हैं ?
ईश्वर कैसे इस जगत का पालन करता है ?
इस ग्रन्थ में वेदों और अनेक वैदिक ग्रन्थों से प्रमाण दिये गये हैं |
…….. वैदिक विचार

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