अगर योग करने से भर से तेरा मजहब खतरे मे है तो छोड दो ऐसे मजहब को
रचना-कवि गौरव चौहान इटावा
सूरज से नफरत करते ये चाँद सितारा देखो जी,
गंगा को गाली देती जमुना की धारा देखो जी,
संविधान की शीतलता पर चढ़ता पारा देखो जी,
बैर-कपट से भरा हुआ है भाई चारा देखो जी.
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई नारे,सुनते आये हैं
भारत माँ की आँखों के दो तारे,सुनते आयें हैं,
भारत माँ की आँखों की सच्चाई को पहचान लिया,
दो आँखों में एक आंख कानी है सबने जान लिया,
छोटी सोच नज़र छोटी ने फिर बईमानी कर डाली
कानी आँखों ने फिर देखो आनाकानी कर डाली,
कायनात के हर ज़र्रे में खुदा बसा,कुरआन कहे,
धरती अम्बर,सूरज चन्दा,सब में ही रहमान रहे,
वो धरती जिसके सीने से हमें निवाला मिलता है
वो सूरज जिसके दम से भरपूर उजाला मिलता है,
मेरा धर्म सनातन कहता कुदरत का सम्मान करो,
कुदरत में भगवान बसे हैं,कुदरत का गुणगान करो,
कैसा है इस्लाम तुम्हारा,कुदरत कुफ्र बताता है,
मज़हब है या कोई जिद है,जबरन ही मनवाता है,
हम तुमको भाई मानें तुम दुश्मन सा व्यवहार करो,
हम ख्वाजा पर सर पटकें, तुम ओमकार पर वार करो,
जिस पर दुनिया गर्व करे वो योग तुम्हे बदनाम लगा,
छोटी छोटी बातों से ही खतरे में इस्लाम लगा,
गीत मातरम वन्दे दिल पर चोट दिखाई देता है,
सूरज के अभिनन्दन में भी खोट दिखाई देता है,
गंगा जमुनी तहजीबों के ड्रामे सारे बंद करो
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई वाले नारे बंद करो
तुलसी के गमले में बस दो चार फूल ही खिलते हैं
सौ में दो अब्दुल कलाम अब्दुल हमीद ही मिलते है
सच तो ये है,गाजी का अरमान बना कर रहते हैं,
ये भारत में खुद का पाकिस्तान बना कर रहते हैं…..