भारत के गर्वनर जनरल रहे वारेल हेस्टिंग्स ने मार्च 1813 में संसद के दोनों सदनों की समिति के समक्ष कहा था-‘‘हिंदू सौम्य, सुशील और परोपकारी हैं। उनका कोई उपकार करता है तो उसके लिए वे कृतज्ञता ज्ञापित करने को सदैव तत्पर रहते हैं। इसके विपरीत यदि कोई उनके प्रति बुराई करता है तो वे उससे बदला लेने के विषय में बहुत कम सोचते हैं। इस भूमंडल पर विद्यमान अन्य जातियों की अपेक्षा हिंदू लोग कहीं अधिक, स्वामी भक्त, प्रेम एवं सौहार्दपूर्ण तथा न्याय के आदर्शों और सिद्घांतों का पालन करने वाले हैं।’’
ऐसे अनेकों स्थल हैं जहां विदेशियों ने भारत की संस्कृति और भारतीय समाज की उच्च मान्यताओं का खुले मन से गुणगान किया है। वास्तव में विदेशियों को हमारे संस्कृति के उच्चआदर्शों ने समय-समय पर प्रभावित किया ही इस स्तर तक है कि वे हमारी प्रशंसा किये बिना रह ही नही सकते थे।
आज मोदी विश्व नेता बनकर उभरे हैं तो उसके पीछे भारत भी सनातन ज्ञान परंपरा ने विशेष योगदान दिया है। मां भारती आज प्रफुल्लित है कि ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ का विश्व स्तर शुभारंभ कराके हमने भारत को ‘विश्वगुरू’ बनाने की ओर विशेष पहल की है। 21 जून को जब राजपथ पर सारा देश योगदिवस मना रहा था और उसके साथ एक स्वर से विश्व के 190 से अधिक देश ‘‘सर्वे भवंतु सुखिन:….और वेद के संगठन सूक्त को दोहराकर वसुधैव कुटुम्बकम् के उस महान आदर्श की ओर एक कदम बढ़ा रहा था जो भारत का सनातन सिद्घांत रहा है, और जिसमें छिपी है विश्वशांति की वास्तविक कुंजी।
सारे विश्व ने समझा और हमने समझाया है, यह संयोग भारत के इतिहास में हजारों वर्ष के बाद बना है, जब हमने विश्व को शांति प्रदान करने और इहलोक और परलोक को सुधारने के लिए अपनी जीवन शैली में उसे ढालने का पुन: अभ्यास कराना शुरू किया है। 190 से अधिक देश एक साथ यदि एक पंक्ति में आकर भारत के पीछे खड़े हो गये हैं तो इससे स्पष्ट होता है कि भारत के सनातन मूल्यों में विश्व के देशों की आज भी कितनी निष्ठा है? जिन लोगों ने योग को किसी सम्प्रदाय विशेष से जोडक़र देखने का जो दुष्प्रचार किया है वह अकेले पड़ गये हैं। इसका अभिप्राय है कि लोगों को वास्तविकता का बोध हुआ है, और अब उन्हें कोई भी व्यक्ति या समुदाय यूं ही अपने हितों के लिए प्रयोग नही कर सकता।
यह इतिहास के लिए बड़े दुर्लभ क्षण होते हैं, कि जब उनका नेता अथवा देश का प्रधानमंत्री एक साधारण व्यक्ति की भांति लोगों के साथ मिलकर योग करे। नरेन्द्र मोदी को राजपथ पर आम लोगों के बीच देखकर उमा भारती को भी असीम प्रसन्नता की अनुभूति हुई होगी।
वास्तव में विश्व स्तर पर इतने भव्य आयोजनों के मिले समाचारों ने सिद्घ कर दिया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस समय भारत के योग गुरू बनने पर कोई आपत्ति नही है। विश्व एक स्वस्थ, स्वच्छ और ऐसी सर्वस्वीकृति व्यववस्था को अपनाने के लिए आतुर हुआ दिखाई देता है, जो उसके लिए प्रत्येक प्रकार से उत्तम सिद्घ हो।
भारत का अभिप्राय ही यह है कि जो निरंतर ज्ञान की ज्योति में, दीप्ति में, रत हो। ऐसे आभा में रत देश को भारत कहा जाता है, इसी भारत ने कभी भी विश्व के किसी भी देश पर अपना वर्चस्व स्थापित कर अथवा उसे डरा धमकाकर उस पर शासन करने का प्रयास नही किया, अपितु इसने विश्व को अपने ज्ञान बल से अपना अनुयायी बनाने का प्रयास किया। उस ज्ञानबल से विश्व के देशों को और लोगों को सही दिशा मिली और विश्व ने वास्तविक विश्वशांति की अनुभूति की। जब तक भारत की यह सनातन ज्ञान परंपरा विश्व में सक्रिय रही, तब तक समस्त विश्व वास्तविक शांति का आनंद उठाता रहा। वास्तविक विकास भी वही होता है, जिसमें मनुष्य का आत्मिक मानसिक और बौद्घिक विकास हो सके। आर्थिक विकास तो इन सबके समक्ष बहुत छोटी चीज है। पश्चिमी चिंतन में भौतिक और आर्थिक विकास को मनुष्य के आत्मिक, मानसिक और बौद्घिक विकास से पहले माना गया है, परंतु चिंतन की इस गलत दिशा के परिणाम हमने देख लिये हैं, पश्चिम आज हताश, निराश और उदास है। जबकि भारत अपने योग गुरू पतंजलि इस शिक्षाओं का अनुकरण करते हुए बाबा रामदेव के माध्यम से और नरेन्द्र मोदी के सक्षम नेतृत्व के कारण पुन: ‘विश्वगुरू’ रहा है क्योंकि वह उत्साहित है। ब्रह्म बल, (स्वामी रामदेव) और क्षात्र बल (नरेन्द्र मोदी) का उचित समन्वय ही राष्ट्र की उन्नति का सेतु होता है। परिस्थितियों ने यह सिद्घ कर दिया है।