भेद – दृष्टि मिटा मन से …..
तर्ज : बचपन की मोहब्बत को …..
हर प्राणी का स्वामी वही ईश्वर कहलाता ।
सम – दृष्टि रखो सबमें, है वेद यही गाता ।। टेक।।
आंधी और तूफाँ में किश्ती ना भटक जाए ।
नजरों से कभी ओझल भगवान ना हो पाए।।
कण कण में वही प्यारा , है दिखलायी आता …
हर प्राणी का स्वामी वही ईश्वर कहलाता …..
जितने भर भी प्राणी , एक नूर से सब चमकें।
समदर्शी जो होता , सब में उसको देखें ।।
उसे अपना बना कर के फिर छोड़ नहीं पाता ….
हर प्राणी का स्वामी वही ईश्वर कहलाता …..
अपने जैसा सबको जो मान चले जग में।
वही योगी श्रेष्ठ होता पाता सम्मान जगत में ।।
हो शोक – हर्ष से दूर , आनंद वही पाता …
हर प्राणी का स्वामी वही ईश्वर कहलाता …..
भेद – दृष्टि मिटा मन से , सम – दृष्टि को ले आ।
मन के सब मनकों को एक माला में ले आ।।
‘राकेश’ मिटा संशय, मस्ती में गीत गाता ….
हर प्राणी का स्वामी वही ईश्वर कहलाता …..
( ‘गीता मेरे गीतों में’ नमक मेरी नई पुस्तक से)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत