कश्मीर का सौंदर्य संसार में अप्रतिम है। यही कारण है कि आज भी यहां संसार भर से लोग पर्यटन के लिए आते हैं। आध्यात्मिक उन्नति और शांति प्राप्ति के लिए सबसे अधिक उपयुक्त मानकर हमारे अनेकों ऋषि-मुनियों ने यहां रहकर तप किया। उनके पुण्य प्रताप का ही परिणाम है कि आज आतंकवाद की भट्टी में धधकते कश्मीर में भी हमें असीम शांति की अनुभूति होती है। अपनी विलासिता और कामी भावना के लिए विख्यात मुगल बादशाह जहांगीर तो यहां पर वर्ष का अधिकांश समय व्यतीत करता था। यह दृष्टि और दृष्टिकोण का ही अंतर है कि हमारे ऋषि मुनि जहां कश्मीर की शांति को आध्यात्मिक शांति और उन्नति की प्राप्ति के लिए प्रयोग करते थे, वहीं कामी बादशाह जहांगीर इसे अपने व्यसनों की पूर्ति के लिए प्रयोग करता था। सृष्टि और दृष्टिकोण का ही अंतर है कि भारत के ऋषि मुनियों की संताने आज भी कश्मीर को शांति का प्रतीक बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं जबकि जहांगीर की संतानें कश्मीर का अपने ढंग से उपयोग करना चाहती हैं।
सृष्टि के प्रारंभ से ही कश्मीर का अपना गौरव पूर्ण इतिहास रहा है । यहां के कुछ प्रमुख शहरों, नगरों और ऐतिहासिक स्थानों के बारे में जानना बहुत आवश्यक है।
अनंतनाग
प्राचीन काल से अनंतनाग के रूप में जाना जाने वाला यह शहर बीच में इस्लामाबाद के नाम से भी पुकारा जाने लगा। हिंदू और सिख इसे आज भी अनंतनाग के नाम से ही पुकारने में गौरव की अनुभूति करते हैं । जबकि मुसलमान इसे इस्लामाबाद के रूप में पुकारते हैं।
कश्यप ऋषि को कश्मीर का पहला राजा माना जाता है।
उनकी एक से अधिक कई रानियों में से एक रानी का नाम कद्रू था। इस रानी के 8 पुत्र नाग के रूप में विख्यात हुए। इन आठ पुत्रों के नाम थे – अनंत नाग या शेष नाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। आज भी कश्मीर ही नहीं , भारतवर्ष के दूसरे भागों में भी इन नाग राजकुमारों के नाम पर शहरों, नगरों ,कस्बों या स्थानों के नाम मिलते हैं । जिनमें अनंतनाग, कमरू, कोकरनाग, वेरीनाग, नारानाग, कौसरनाग आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
कश्मीर का अनंतनाग प्राचीन काल से ही एक प्रसिद्ध और ऐतिहासिक नगर रहा है। इसे नागवंशी शासकों की राजधानी होने का गौरव भी प्राप्त रहा है । भारत के ऋषियों की जीवन यात्रा ‘अनंत से अनंत की ओर’ चलती है। वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति पर ही यह बात लागू होती है, परंतु ऋषियों के संदर्भ में यह और भी अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि ऋषि लोग जीवन के सार तत्व को समझ जाते हैं। मोक्ष की प्राप्ति भी अनंत से मिलने का पड़ाव मात्र है। मोक्ष की दीर्घावधि समाप्त होने के उपरांत यात्रा फिर आरंभ हो जाती है। इस प्रकार इस यात्रा का कहीं अंत नहीं। इस प्रकार अनंतनाग बहुत ही गहरे और आध्यात्मिक अर्थ रखता है। जिससे हमारे ऋषियों की वैज्ञानिक, तार्किक और दार्शनिक बुद्धि का बोध होता है। पुराणों के अनुसार अनंतनाग ही वह शेषनाग है जिसकी शय्या पर भगवान विष्णु आसीन होते हैं। पुराणों की भाषा में इसके चाहे जो अर्थ हो , परंतु वास्तव में इसके भी बहुत गहरे और आध्यात्मिक अर्थ हैं। वास्तव में परमपिता परमेश्वर ही वह ‘अनंतनाग’ है।
जब भारत में विभिन्न मत मतांतर फैले और भारत के वैज्ञानिक और वैदिक ज्ञान का अर्थ का अनर्थ करके लोग उनकी अपनी – अपनी व्याख्या करने लगे तब अनंतनाग या नागवंश के बारे में भी कई प्रकार की मिथ्या कल्पनाएं कर ली गईं।
उपरोक्त वर्णित 8 नागों ने ही नागवंश की स्थापना की। नाग वंश के इन शासकों के द्वारा अनंतनाग को विशेष महत्व और सम्मान दिया गया। यही कारण रहा कि अनंतनाग नाग वंश की राजधानी बना। राजधानी के रूप में इस शहर ने बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की थी।
कमरूनाग
अनंतनाग के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में स्थित कमरुनाग भी नागवंशी शासकों के काल का एक महत्वपूर्ण शहर है। कमरूनाग में एक बहुत ही प्रसिद्ध झील है। जिसे कमरू झील के नाम से जाना जाता है । यहां पर अभी भी श्रद्धालु बहुत दूर-दूर से आते हैं। यह झील हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से 51 किलोमीटर दूर करसोग घाटी में स्थित है। इस स्थान पर कमरूनाग बाबा की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। जिसके बारे में लोगों की कई प्रकार की धारणाएं हैं। हर वर्ष जून में कमरूनाग मंदिर में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। जिससे इस स्थान का और भी अधिक महत्व बढ़ जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि यह झील यक्षों के राजा को सम्मान देने के दृष्टिकोण से बनाई गई थी। इसका महाभारत में भी उल्लेख किया गया है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत