शिक्षा में सुधार करती स्मृति ईरानी
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए स्कूलों के पाठ्यक्रम में 25 फीसदी हिस्सा योग, संगीत और खेल के लिए नियत किया है। इस एक निर्णय के दूरगामी परिणाम आएंगे। हमारे बच्चों को स्कूलों से ही अपने देश और संस्कृति के विषय में सीखने समझने को तो कुछ मिलेगा ही साथ ही बच्चों के माध्यम से देश को स्वस्थ और स्वच्छ रखने की दिशा में भी विशेष उपलब्धि हमें मिलनी निश्चित है। आज हमारे युवा वर्ग में कई चीजों की कमी आ रही है, जिन्हें ठीक करने के लिए योग-प्राणायाम बहुत सहायक सिद्घ होगा।
इन कमियों में सबसे बड़ी कमी है-धैर्य की। युवा वर्ग हर कार्य का परिणाम समय से पहले चाहता है। ‘माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय’ यह बात उसके लिए पुरानी हो गयी है। जब व्यक्ति योग से जुड़ता है तो उसके भीतर सर्वप्रथम उत्साह, आनंद, सुखानुभूति, प्रसन्नचित्तता, धैर्य, आत्मविश्वास जैसे उत्कृष्ट मानवीय गुणों में वृद्घि होती है। जिससे व्यक्ति अनावश्यक हड़बड़ी की स्थिति से बच सकता है। यह सर्वमान्य और विज्ञानसम्मत सत्य है कि व्यक्ति के हृदय में यदि उत्साह, आनंद, सुखानुभूति प्रसन्नचित्तता, धैर्य, आत्मविश्वास इत्यादि की उत्कृष्ट पूंजी है तो वह स्वस्थ रहेगा। क्योंकि ये मानवीय गुण व्यक्ति के मन पर बड़ा अच्छा प्रभाव डालते हैं। जहां इन गुणों की पूंजी होती है वहां व्यक्ति निरोग रहता है, इसलिए योग और रोग का छत्तीस का आंकड़ा है। जहां योग है वहां से रोग का नाश होना निश्चित है।
आज की युवा पीढ़ी रोगी हो रही है, क्योंकि आत्मसंयम का उसमें अभाव है। पर जब योग के माध्यम से उसके भीतर उत्कृष्ट मानवीय गुणों का विकास किया जाएगा, तो उसमें आत्मसंयम का विश्वास भी बढ़ेगा। वास्तव में देश में जिस प्रकार का राष्ट्रवादी परिवेश इस समय बना है, उसी के लिए तो हमारे शहीदों के लिए ये पंक्तियां बड़ी प्रेरक हो गयी थीं :-
‘‘उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्तां होगा।
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियां होगा।।
चखाएंगे मजा बर्बादिये गुलशन का गुलशीं को।
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बागबां होगा।।’’
हमारा उजड़ता यौवन पुन: आबाद हो और हर प्रकार से संपन्न हो, वास्तव में हर सरकार का अपने युवा वर्ग के प्रति यह प्रथम कत्र्तव्य होता है। क्योंकि आज का युवा ही कल के भारत का कर्णधार है। इसलिए आज के युवा का निर्माण करना मानो कल के भारत का निर्माण करना है। शिक्षा का उद्देश्य भी व्यक्ति को ‘रोजगार के कोल्हू’ से बांधकर उसी के इर्द गिर्द चक्कर लगाते-लगाते मरने के लिए तैयार करना नही है, अपितु शिक्षा का उद्देश्य भी व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र निर्माण से विश्व निर्माण करना है। हमारी प्राचीन शिक्षा पद्घति का यही उद्देश्य होता था।
आज उस मानव निर्माण से विश्व निर्माण करने वाली शिक्षा प्रणाली की ओर मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी कुछ सक्रिय होती दिख रही हैं तो इसके लिए वह साधुवाद की पात्र हैं। उनके प्रयासों में जिन्हें साम्प्रदायिकता दिख रही है, उन्हें भारत के शत्रु माना जाना चाहिए। ये वही लोग हैं जो भारतीयता और भारतीय चेतना शक्ति से घृणा करते रहे हैं। इनके सिर पर ‘बर्बादिये गुलशन के गुलशीं’ को सम्मानित करने का आरोप है। इन्होंने अपने आकाओं (अंग्रेजों) के सपनों को साकार करते हुए पिछले 68 वर्ष में देश की सदपरंपराओं का और संस्कृति का सत्यानाश करने में कोई कमी नही छोड़ी है। इसलिए इनसे श्रीमती ईरानी के किसी श्रेष्ठ कार्य की प्रशंसा की अपेक्षा नही की जा सकती।
‘‘तुझसे उम्मीदें वफा जिसे होगी उसे होगी
हमें तो देखना ये है कि तू जालिम कहां तक है?’’
श्रीमती ईरानी ‘जालिमों’ के कीचड़ उछाडऩे को भी अपने लिए ‘फूल’ समझ कर लें। क्योंकि देश की जनता उनके साथ है। देश के भविष्य को सुधारने के लिए वह शिक्षा नीति में व्यापक फेरबदल करें सारा देश उनकी ‘स्मृति’ को अमरत्व में ढालने के लिए तैयार बैठा है। किसी की साम्प्रदायिक मान्यता को ठेस पहुंचाये बिना सावधानी से अपनी क्यारी की गुड़ाई करती रहें। सारे ‘खरपतवार’ समाप्त हो जाएंगे बहुत सुंदर सर्व समन्वयवादी परिणाम उन्हें प्राप्त होंगे।
मुख्य संपादक, उगता भारत