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हरित क्रांति के साथ देश में नारा दिया गया अधिक अनाज पैदा करो नतीजा निकला देश में अनाज के भंडार लग गए अनाज उत्पादन में देश आत्मनिर्भर हो गया.. देश में गेहूं की सैकड़ों संकर प्रजाति के बीज तैयार किए गए जिनसे रिकॉर्ड अनाज उत्पादन मिला | देश के हर व्यक्ति को अनाज की उपलब्धता सुनिश्चित हो पाई लेकिन इसके गंभीर परिणाम आज हम भुगत रहे हैं हमने बिना सोचे विचारे अनुसंधान किए अपने देसी किस्म की गेहूं की फसल सैकड़ों प्रजातियों की उपेक्षा की.. जिनमें यह शामिल थी.. शरबती, ग्वाला, कठिया, वांझिया, बंसी, काली बालीवाला, दाबती, पिस्सी आदि गेहूँ| हजारों वर्षों के अनुभव व परीक्षण से हमारे पूर्वज ने देसी गेहूं की किस्में विकसित संवर्धित की थी.. अपने थोड़े से लालच में हमने उनकी मेहनत को मिट्टी में मिला दिया| देसी गेहूं की यदि जैविक खेती की जाए तो आज भी शंकर गेहूं को उत्पादन में भी मात दे सकता है कीमत में तो मात दे ही रहा है|
आखिर कुछ तो अंतर होगा ईश्वर द्वारा निर्मित गेहूं व मनुष्य द्वारा प्रयोगशाला में निर्मित गेहूं अनाज में.. जी हां अंतर है स्वाद का पौष्टिकता का प्राकृतिक आपदाओं को सहने का.. देसी गेहूं मौसमी मार ओलावृष्टि तेज हवाओं वर्षा को सह लेता है.. इसका तना लंबा होता है जो पानी को संचित कर लंबे समय तक सिंचाई के लिए इस्तेमाल करता है| बहुत कम जल सिंचाई उपलब्धता में में भी देसी गेहूं हो जाता है| स्वाद व पोस्टिकता के मामले में विदेशि संकर नस्ल का अनाज इसकी कभी बराबरी नहीं कर सकता.. वही बात कीमत की करें तो देसी गेहूं का दाम आज भी संकर नस्ल के गेहूं से 2 गुना 3 गुना है है| देसी गेहूं की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है शंकर गेहूं की अपेक्षा| देसी गेहूं का दाम ₹2500 कुंटल से लेकर ₹4000 कुंटल तक है मध्य प्रदेश के देसी गेहूं की तो कोई बराबरी ही नहीं कर सकता|
70 के दशक तक जनपद गौतम बुध नगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित हरियाणा पंजाब में देसी गेहूं का उत्पादन होता था.. आज बुजुर्ग व शौकीन लोग देसी गेहूं की रोटी खाने के लिए तरसते हैं उसका स्वाद ही निराला होता था|
अधिक गेहूं तो हमने उत्पादित किया लेकिन स्वाद स्वास्थ्य पोषण से हाथ धो बैठे..!
आर्य सागर खारी✒✒✒