प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सामान्य सी वस्तु में भी विशिष्टता ढूंढ लेते हैं। फिर उसका उपयोग कैसे करना है, उनसे बेहतर कोई नहीं जानता।
अभी हाल में अहमदाबाद के रोड-शो में वह एक खास तरह की भगवा टोपी में दिखे और यही टोपी बीजेपी के स्थापना दिवस पर पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं के सिर चढ़कर बोलने लगी।
गणतंत्र दिवस समारोह में भी वह महरून कलर की डिजाइनिंग टोपी पहनकर पहुंचे थे, तब भी इसकी खूब चर्चा हुई थी। उस टोपी पर पिन के रूप में उत्तराखंड का राजकीय पुष्प ब्रह्मकमल क्लिप किया हुआ था। अब ब्रह्मकमल की जगह ‘कमल’ और तिरछी रंगीन पट्टी पर ‘बीजेपी’ अंकित कर दिया गया है। मूल रूप से टोपी का यह आइडिया उत्तराखंड की पारंपरिक टोपी (टुपली) से लिया गया है। जानकार बताते हैं कि इस बार का गणतंत्र दिवस चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल विपिन रावत समेत भारतीय सेना के आठ योद्धाओं की असामयिक मृत्यु के साए में संपन्न होने जा रहा था, और आहत देश अपने इन नायकों खासकर सीडीएस के सम्मान में शोकग्रस्त था। ऐसे में पीएम ने उस प्रतीक को चुना जो पारंपरिक रूप से जनरल रावत की पुश्तैनी पहचान को इंगित करने वाला था।
पहाड़ में पुराने जमाने में हलवाहों से लेकर चरवाहों तक और शिक्षकों से लेकर पंडित-पुरोहितों और फौजी भाइयों तक पहाड़ी टोपी ने सबकी शान को सिरमौर रखा। बदलते दौर के साथ जिस तरह गांधी टोपी रस्मी होकर रह गई, पहाड़ी टोपी भी सिरों से गायब होने लगी। लेकिन इधर राजधानी दिल्ली में पहाड़ी उत्पादों के नामचीन विक्रय केंद्र ने परिवर्तित रूप में डिजाइनिंग पहाड़ी टोपी को बाजार में उतारा तो इसे जोरदार रिस्पॉन्स मिला। पारंपरिक टोपी में परिवर्तन महज इतना किया गया कि इसके अगले सिरे पर एक रंगीन आड़ी पट्टी और पट्टी के बराबर ब्रह्मकमल का प्रतीक जड़ दिया गया। मूल रूप से इसे मसूरी में सुरकंडा क्षेत्र के जगदम नामक दर्जी बनाते थे।
राजधानी दिल्ली में पर्वतीय प्रशासनिक अधिकारियों की सामाजिक संस्था के कार्यक्रमों में भी इस डिजाइनिंग टोपी को खूब जगह मिली और यही संपर्क इसे राजपथ तक ले आया। नरेंद्र मोदी अपनी पोशाकों और खास प्रतीकों के लिए चर्चा में रहते हैं। इस बार गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसी पर्वतीय प्रतीक के बारे में पीएमओ की दिलचस्पी की भनक मिलते ही प्रधानमंत्री तक पर्वतीय टोपी की सिफारिश पहुंचा दी गई। पीएमओ को यह सुझाव भा गया और फौरन उक्त नामचीन पहाड़ी स्टोर के निदेशक दीपक ध्यानी से पहाड़ी टोपी के सभी डिजाइन वट्सऐप करने को कहा गया। ध्यानी बताते हैं कि 24 जनवरी की सुबह पीएमओ से संदेश आया कि फाइनल की गई टोपी पर ब्रह्म कमल का प्रतीक चिह्न दो से ढाई गुना बड़ा चाहिए। आनन-फानन इसे मसूरी से संपर्क कर उपलब्ध करा दिया गया।
इस बार की 26 जनवरी चूंकि उत्तराखंड सहित चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के सरगर्म माहौल में मनाई जा रही थी, लिहाजा मोदी के सिर पर सजी उत्तराखंडी टोपी को सीधे चुनाव से जोड़ कर देखा गया और तमाम अखबारों समेत सोशल मीडिया पर यही चर्चा होती रही। उत्तराखंड के चप्पे-चप्पे में बड़े-बड़े चुनावी होर्डिंग लगे, जिसमें मुख्यमंत्री धामी सहित मैदान में उतरे बीजेपी नेताओं की तस्वीरें इसी टोपी के साथ देखी गईं। खुद पीएम मोदी ने उत्तराखंड की अपनी चुनाव सभाओं को ‘टुपली’ पहनकर ही संबोधित किया। यह सिलसिला यहीं नहीं रुका। अब नरेंद्र मोदी ने इसे बीजेपी कार्यकर्ताओं के नए गणवेश का अंग बना दिया है। बताते हैं कि सूरत की एक फर्म को ऐसी दस करोड़ से अधिक टोपियां तैयार करने का ऑर्डर मिला है।
खास बात यह है कि जहां पहाड़ी टोपी ने राजपथ से लेकर सूरत तक का सफर तय किया है, वहीं अपने पारंपरिक स्वरूप यानी गैर भगवा रंग और ब्रह्म कमल वाले पिन के साथ इसका एक नया बाजार भी पनपा है। दिल्ली में भी कई दर्जी इसे बना रहे हैं। ध्यानी बताते हैं कि हम सबके लिए यह गौरव की बात है कि प्रधानमंत्री ने गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर उत्तराखंडी टोपी को इतना सम्मान दिया। वह कहते हैं कि यह सिलसिला टोपी तक सीमित नहीं रहना चाहिए। पहाड़ के अन्य पारंपरिक उत्पादों को भी इसका लाभ मिलना चाहिए।