भारत में धर्म आधारित हिंसा और अमरीका
अमेरिकी विदेश विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और पुलिस एवं सुरक्षा बल के दुव्र्यवहार के अलावा वर्ष 2014 में भारत में धर्म आधारित सामाजिक हिंसा सबसे बड़ी मानवाधिकार समस्या रही। इसकी सालाना ‘कांग्रेसनली मैनडेटेड कंट्री रिपोर्ट ऑन ह्यूमन राइट्स प्रैक्टिसेज फॉर 2014 रिपोर्ट’ के लंबे चौड़े इंडिया सेक्शन में मनमाने तरीके से गिरफ्तारी और हिरासत, गुमशुदगी, कैद में जोखिम भरे हालात और मुकदमे से पहले लंबी हिरासत सहित कई बातों का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि न्यायपालिका में पुराने मामलों का अंबार लगा हुआ है जिससे न्याय प्रक्रिया में देर हो रही है।
इसमें कहा गया है कि न्यायेत्तर हत्याओं, प्रताडऩा और बलात्कार, व्यापक भ्रष्टाचार सहित पुलिस और सुरक्षा बलों के व्यवहार सर्वाधिक गंभीर मानवाधिकार समस्याएं हैं जिसने उन अपराधों के प्रति निष्प्रभावी भूमिका निभाई है जिसमें महिलाएं एवं अनुसूचित जाति या आदिवासी तथा लिंग, धर्म और जाति शामिल हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी द्वारा जारी रिपोर्ट में कल अन्य रिपोर्ट का जिक्र किया गया है जिसे महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु के वरिष्ठ अधिकारियों और आईबी के एक प्रतिनिधि ने सरकार को सौंपा था।
इस रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि मुसलमानों के प्रति पुलिस बल में पूर्वाग्रह है और मुसलमानों के प्रति पुलिस की धारणा साम्प्रदायिक, पक्षपातपूर्ण और असंवेदनशील है। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में मई और जुलाई के बीच करीब 50 ग्राम परिषदों ने प्रस्ताव पारित कर गैर हिंदू धार्मिक दुष्प्रचार, प्रार्थनाएं और अपने गांवों में भाषणों को प्रतिबंधित किया। जब अमरीका भारत जैसे सर्वाधिक समन्वयवादी और पंथनिरपेक्ष देश के विषय में ऐसी अनर्गल बातें करता है तो उसकी बातों पर हंसी आती है। क्योंकि अमरीका का इतिहास नस्लभेदी रहा है और वहां आज भी नस्लभेद की समस्या सर्वाधिक है। जो देश अपनी समस्याओं को नही सुलझा सका और जो स्वयं अपने अंतर्विरोधों से ग्रस्त है वह उस भारत को शिक्षा देता है जिसका आदर्श ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का है। वैसे भारत अपनी समस्याओं को सुलझाने में स्वयं समर्थ है, तो अमरीका की यह दादागीरी क्यों?