गीता मेरे गीतों में ,गीत संख्या =11ज्ञान की अग्नि जले तो …..
ज्ञान की अग्नि जले तो भस्म करती पाप को।
कर्म बन्धन भस्म होता दूर करती है ताप को।। टेक।।
ज्ञान के सदृश धरा पर ना पवित्र कोई वस्तु है।
कर्म योग को सिद्ध करती अनमोल प्यारी वस्तु है।।
हृदय में तू ज्ञान उपजा और जीत ले संसार को …
ज्ञान की अग्नि जले तो भस्म करती पाप को…..
सब कर्म जाकर नष्ट होते ज्ञान की अग्नि में ही।
‘कर्म’ का उद्देश्य पाना ‘ज्ञान’ को जीवन में ही ।।
गुरु सेवा से शीघ्र मिलता मिटा ले अपने आपको …
ज्ञान की अग्नि जले तो भस्म करती पाप को…..
जैसे दर्पण साफ़ होकर उठता दमक बड़े चाव से।
वैसे ही मल दूर करके मानव दमकता ज्ञान से ।।
जितेंद्रियता को प्राप्त कर ले और अमृत ज्ञान को ….
ज्ञान की अग्नि जले तो भस्म करती पाप को…..
अज्ञान का संशय मिटा दे, ज्ञान की तलवार ले ।
जुट जा ‘अर्जुन’ योग में और निकल मोह जाल से ।।
ज्ञान का आनंद ले , क्यों छानता है खाक को ….
ज्ञान की अग्नि जले तो भस्म करती पाप को…..
( ‘गीता मेरे गीतों में’ नमक मेरी नई पुस्तक से)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत